महज़ सात साल में ग़ायब हुए चलती मालगाड़ी के खाद्यान्न से भरे 500 से अधिक डिब्बे
देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं है। खाद्यान्न भ्रष्टाचार भी ऐसा ही एक बड़ा भ्रष्टाचार है, जिसकी गहरी जड़ों तक पहुँचना आसान नहीं है। हद तो यह है कि खाद्यान्न ले जाने वाली मालगाडिय़ों के डिब्बे तक भ्रष्टाचारियों द्वारा ग़ायब किये जा रहे हैं। हैरानी की बात है कि यह सब वर्षों से हो रहा है और सरकार को इसकी भनक तक नहीं है। यहाँ तक कि अधिकारी भी इसका जवाब तलाश रहे हैं। इसी रहस्यमय कथा पर तहलका एसआईटी की जाँच रिपोर्ट :-
भारतीय खाद्य निगम (एफएसआई) से सम्बन्धित एक मालगाड़ी गेहूँ और चावल लेकर ट्रैक पर तेज़ी से दौड़ रही है। इसे दो-तीन दिन में हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करके अपने गंतव्य तक पहुँचना है। लेकिन जब यह ट्रेन गंतव्य पर पहुँचती है, तो पता चलता है कि इस मालगाड़ी के 40 डिब्बे ग़ायब हैं! यह किसी फ़िल्म की कहानी नहीं है, और न ही कोई सपना; बल्कि यह एक हक़ीक़त है। वर्षों से भारत में खाद्य निगम के खाद्यान्न ले जाने वाली मालगाडिय़ों के कुछ डिब्बे बीच में ही ग़ायब हो रहे हैं। हम सभी ने ट्रक, कार, मोटरबाइक, ट्रैक्टर आदि के लापता होने की घटनाओं के बारे में ज़रूर सुना है। इसके मामले भी दर्ज होते हैं; मगर कभी ट्रेन की बोगियों (डिब्बों) के लापता होने की ख़बर नहीं सुनी होगी। लेकिन अविश्वसनीय रूप से ऐसा वर्षों से होता आ रहा है।
‘तहलका’ के इस ख़ास ख़ुलासे को पढऩे के बाद आप सोच में पड़ जाएँगे कि ट्रेन के डिब्बों की चोरी भला कैसे सम्भव है? क्या इतने वर्षों तक लोहे के इन बड़े डिब्बों को कहीं छिपाना सम्भव और आसान है? इस अपराध के लिए कौन लोग ज़िम्मेदार हैं? ये भरी हुई बोगियाँ आख़िर गयीं कहाँ? यह सब रहस्य बना हुआ है। ट्रेन के डिब्बों के ग़ायब होने की रहस्यमय कथा किसी जादू भरी रहस्यमय कथा से कम नहीं लगती। लेकिन यह सच है।
‘तहलका एसआईटी’ ने कई आरटीआई के जवाबों के आधार पर की अपनी श्रमसाध्य जाँच की मदद से भारत में मालगाड़ी के लापता डिब्बों की दास्ताँ सामने रखी है। इस तरह की जाँच न पहले कभी हुई है, और न ही अब तक इस तरह की ख़बर सुनने को मिली है।
आमतौर पर मालगाडिय़ों में 42 से 58 डिब्बे होते हैं। इन्हें स्पेशल ट्रेन और रैक भी कहा जाता है। जब भी डिब्बों के लापता होने की ये घटनाएँ होती हैं, तो एफसीआई के लोग मामले की जाँच शुरू कर देते हैं। भारतीय रेलवे को भी इसकी जानकारी दे दी जाती है। इसके बाद मामला एफसीआई और भारतीय रेलवे के बीच फँस जाता है। ट्रेन की बोगियों के लापता होने की गुत्थी को सुलझाने के लिए दोनों विभाग इस मामले की जाँच में जुट गये हैं। कुछ मामलों में तो घटना को हुए 35 साल से ज़्यादा हो चुके हैं; लेकिन डिब्बों के लापता होने का मामला अनसुलझा है। जब एफसीआई अपने लापता (गेहूँ और चावल से भरे) डिब्बों का कोई सुराग़ पाने में विफल रहता है, तो विभाग भारतीय रेलवे के समक्ष खोये हुए सामान के मुआवज़े के लिए एक मामला बनाता है।
जानकारों के मुताबिक, एक बोगी (डिब्बे) में क़रीब 60 टन अनाज होता है। हमारे देश में गेहूँ और चावल की विभिन्न क़िस्में हैं। इन अनाजों की क़ीमत ट्रेन में लदे गेहूँ और चावल की गुणवत्ता के हिसाब से तय की जाती है। अनुमान है कि एक डिब्बे में कम-से-कम 15 से 20 लाख रुपये का माल होता है। डिब्बों के लापता होने की ऐसी घटनाएँ वर्षों से होती आ रही हैं; लेकिन पिछले चार साल से आरटीआई दाख़िल होने के बाद ही यह मामला सामने आया है। न्यायालयों में अभी भी आरटीआई दायर की जा रही हैं।
हालाँकि यह एक गम्भीर मामला है। लेकिन एफसीआई के बहुत कम क्षेत्रीय (जोनल) कार्यालय इस मामले की रिपोर्ट देने के लिए आगे आये हैं। अभी तक कुछ अंचल कार्यालयों की शिकायतों के आधार पर ही आरटीआई दायर की गयी है। गुवाहाटी के क्षेत्रीय कार्यालयों ने अन्य की तुलना में अधिक शिकायतें दर्ज करायी हैं।
भारत में रेल पटरियों पर मालगाड़ी का गुज़रना एक जाना-पहचाना दृश्य है। इन ट्रेनों के माध्यम से भारी मात्रा में मुख्य रूप से माल का परिवहन किया जाता है। एफसीआई की वेबसाइट पर जाने के बाद हमने पाया कि गेहूँ और चावल का परिवहन मुख्य रूप से मालगाडिय़ों के माध्यम से किया जाता है। हालाँकि हमने इन अनाजों का परिवहन रोडवेज के ज़रिये भी देखा है; लेकिन मालगाडिय़ों की तुलना में उसकी क्षमता बहुत कम है। इसका पूरा डाटा एफसीआई की वेबसाइट से प्राप्त किया जा सकता है।
साल 2021-22 में गेहूँ और चावल के अनाज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाली रेलों की संख्या 39,773 थी। एफसीआई के पाँच क्षेत्रीय कार्यालय हैं- उत्तर-पूर्व, पूर्वी क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र, उत्तर क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र। ये सभी स्पेशल मालगाडिय़ाँ इन्हीं क्षेत्रों में गयीं। उत्तर पूर्व क्षेत्र में पहुँचने वाली विशेष ट्रेनों की संख्या 2,333 थी, जबकि 15,762 को उत्तर क्षेत्र में भेजा गया था।
इस मामले में 14 जून, 2022 को दायर आरटीआई के अनुसार, गुवाहाटी स्थित एफसीआई के उत्तर-पूर्व क्षेत्र कार्यालय ने डिब्बों के गुम होने की शिकायत दर्ज करायी गयी थी। उनके द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, 21 जून, 2003 को एक विशेष ट्रेन / रैक नंबर / 23/342612 (केएनएन) पंजाब के खन्ना रेलवे स्टेशन से असम में (एनबीक्यू) नये बोंगाईगाँव जंक्शन के लिए रवाना हुई। इस विशेष ट्रेन में थोक में चावल ले जाया जाता था। प्रत्येक डिब्बे में चावल के क़रीब 1,156 से 1,184 बड़े बोरे होते थे। एक बोरे का वज़न 50 किलोग्राम था। इन ट्रेनों में केएनएन से एनबीक्यू का सीक्रेट कोड लिखा हुआ था। हालाँकि एफसीआई द्वारा प्रदान की गयी जानकारी यह स्पष्ट नहीं करती है कि ट्रेन में कुल कितने डिब्बे थे, ट्रेन के असम पहुँचने के बाद ही पता चला कि इस मालगाड़ी के 40 डिब्बे ग़ायब हो गये थे। कुछ लापता डिब्बों, जैसे- एससी-38655, एसई-108285 और एसआर-181117 आदि की संख्या आरटीआई में दर्ज है।
सात साल में 500 से अधिक डिब्बे ग़ायब
14 जून, 2022 को इस सम्बन्ध में एक आरटीआई दायर की गयी थी। इसके जवाब में दी गयी जानकारी में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि 2003-04 में उत्तर पूर्व क्षेत्र में पहुँची मालगाडिय़ों के 143 डिब्बे ग़ायब पाये गये थे। गुवाहाटी डिवीजन का कहना है कि 17 साल से अधिक समय बीत चुका है; लेकिन इन खोये हुए डिब्बों का अब तक कोई सुराग़ नहीं है। एफसीआई, गुवाहाटी के उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय कार्यालय ने 2000-01 से 2005-06 तक आरटीआई में खोये हुए डिब्बों की पूरी सूची दी है, जिसका उल्लेख नीचे किया गया है :-
साल 2000-01 : इस साल अनाज के 66 डिब्बे अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पाये, जिनमें से 59 चावल के और सात डिब्बे गेहूँ के थे। 01 दिसंबर, 2000 को आरआर03/054367 नंबर वाली एक विशेष ट्रेन से 16 डिब्बे ग़ायब पाये गये। प्रत्येक डिब्बे में चावल की 620-639 बोरियाँ थीं। प्रत्येक डिब्बे का वज़न 95 किलोग्राम था।
साल 2001-02 : इस साल विशेष ट्रेनों से 68 डिब्बे ग़ायब पाये गये, जिनमें से 54 में चावल और शेष 14 में गेहूँ लदा हुआ था। 03 सितंबर, 2001 को 20 डिब्बों का पता नहीं चल सका और वे सभी एक ही समय में लापता हो गये। इस स्पेशल ट्रेन का नंबर, जिसने अपने 20 डिब्बों को खो दिया, वह आरआर13/211770 था। प्रत्येक डिब्बे में 610 से 1,158 बोरियाँ चावल की थीं और ये बोरियाँ 50 किलो, 75 किलोग्राम और 95 किलोग्राम के अलग-अलग वज़न की थीं।
साल 2002-03 : इस साल 111 डिब्बे अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पाये, जिसमें 99 चावल के थे; जबकि 12 डिब्बे गेहूँ के थे। इसी तरह 21 जून, 2002 को 11 डिब्बे एक साथ ग़ायब पाये गये। इस स्पेशल ट्रेन का नंबर आरआर04/119643 था। प्रत्येक डिब्बे में 1,162 से 1,195 बोरियाँ चावल की थीं, जिनमें से प्रत्येक का वज़न 50 किलोग्राम था। इसी वर्ष 01 अगस्त को आरआर 08/138029 नंबर वाली एक अन्य विशेष ट्रेन से 11 डिब्बे ग़ायब पाये गये। प्रत्येक डिब्बे में 1,097 से 1,204 चावल की बोरियाँ थीं, जिसमें प्रति बोरी का वज़न 50 किलोग्राम था। 02 अगस्त, 2002 को आरआर15/211921 नंबर वाली एक अन्य ट्रेन की 11 डिब्बे ग़ायब हो गये। प्रत्येक डिब्बे में चावल की 742-758 बोरियाँ थीं, जिनमें से प्रत्येक का वज़न 75 किलोग्राम था। 09 नवंबर, 2002 को एक और विशेष ट्रेन के 12 डिब्बे ग़ायब पाये गये, जिसमें प्रत्येक डिब्बे में 884 से 1,180 बोरियाँ चावल की थीं और प्रत्येक बोरी का वज़न 75 किलोग्राम था।
साल 2003-04 : इस वर्ष के दौरान क़रीब 143 डिब्बे ग़ायब पाये गये। इनमें से 132 डिब्बों में चावल की बोरियाँ थीं, जबकि 11 में गेहूँ की बोरियाँ लदी थीं। वहीं 21 जून, 2003 को विशेष ट्रेन (आरआर 23/342612) के 40 डिब्बे ग़ायब हुए, जिनका कोई सुराग़ नहीं मिला। इसमें क़रीब 1,156 से 1,184 बोरियाँ चावल की थीं और प्रत्येक बोरी का वज़न क़रीब 50 किलोग्राम था।
साल 2004-2005 : इस साल भी एक मालगाड़ी की 96 डिब्बे ग़ायब पाये गये। इसमें 83 चावल की थीं; जबकि शेष 13 गेहूँ की बोरियाँ थीं। विशेष ट्रेन (आरआर06/030994) के 18 डिब्बे क़रीब 1,163 से 1,186 बोरी चावल के साथ ग़ायब हो गये।
साल 2005-2006 : इस साल एक विशेष ट्रेन के 28 डिब्बे ग़ायब हुए। इनमें चावल के 23 डिब्बे और गेहूँ के पाँच डिब्बे थे।
साल 2006-07 : इस साल एक मालगाड़ी के सात डिब्बे ग़ायब हो गये। इनमें चार डिब्बे चावल के थे और तीन गेहूँ के थे।
ऊपर दी गयी सूची से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह चोरी कितनी गम्भीर है और इस मामले को सुलझाना कितना मुश्किल है। ऐसे सभी लापता डिब्बों का विवरण एफसीआई के पास पंजीकृत है। उनके दस्तावेज़ों में इस कथित चोरी की सारी जानकारी है। एफसीआई विभाग अपनी ओर से शोध करने के बाद भारतीय रेलवे में शिकायत दर्ज कराते हैं। दोनों विभागों के आला अधिकारी आपस में बैठकर मामले पर चर्चा करते हैं, जिसे वे सुलह बैठक कहते हैं। बैठक में दोनों विभागों के सम्बन्धित अधिकारियों ने विशेष ट्रेनों के लापता डिब्बों और इस मार्ग से ले जाये जा रहे खाद्यान्न के विवरण पर चर्चा की। सुलह बैठक और आपसी समझ के बाद एफसीआई भारतीय रेलवे के पास खोये / लापता डिब्बों की शिकायत दर्ज कराता है, और उनके खोये हुए खाद्य भण्डार के लिए मुआवज़े की माँग करता है। ऐसे डाटा का विवरण नीचे दिया गया है।
भारतीय रेलवे के अधिकारियों और क्षेत्रीय कार्यालय गुवाहाटी की पहली बैठक 3 मई, 2005 को मालेगाँव में मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक (दावा) कार्यालय में हुई थी। बैठक में भाग लेने वाले एफसीआई के अधिकारी संयुक्त प्रबंधक आन्दोलन एम.एल. सोलंकी, एजी प्रथम (डी) और एस.बी. शर्मा थे; जबकि डिप्टी सीसीएम (दावा), एस.के. करमाकर और सीआईजी गुहा राय ने रेलवे का प्रतिनिधित्व किया।