‘ मैं पांच और 10 रु के टिकट बेचकर अपने चुनाव प्रचार के लिए खर्च जुटा रहा हूं’

के अर्केश. उम्र-60.
के अर्केश. उम्र-60 वर्ष. पूर्व डीआईजी, सीआरपीएफ. चिक्कबल्लापुर, कर्नाटक. फोटोः केपीएन

मैं एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुख रखता हूं. मैं 37 साल पुलिस सेवा में रहा हूं. उससे पहले मैं लेक्चरर और सामाजिक कार्यकर्ता हुआ करता था. जब भूमि सुधार लागू हुए तो मैंने कर्नाटक में किराएदारों को संगठित करने का काम किया था. पुलिस में रहते हुए मैं पूर्वोत्तर, पंजाब और कश्मीर में उग्रवादियों से लड़ा हूं और दंडकारण्य इलाके में नक्सलियों से भी. मैंने देश के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक हिस्सा को भी काबू किया है.

कानून तोड़ने वाले तो आसानी से पहचाने जा सकते हैं. लेकिन देश में कई राजनेता भी हैं जो सम्माननीय हैं, लेकिन अपराधों में संलिप्त हैं. भ्रष्ट राजनेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों में एक गुपचुप सहमति बनी हुई है. मैंने आम आदमी पार्टी को चुना क्योंकि इसने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई छेड़ी.

हमारे यहां पानी अहम मुद्दा है. यह एक शुष्क जलवायु वाला इलाका है जहां कुछ नलकूप तो 1200 फीट गहरे हो गए हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही हैं जिनमें वास्तव में पानी आता है. किसान पानी की कमी से त्रस्त हैं और राजनेता उनसे वादा कर रहे हैं कि पश्चिमी घाट में बहने वाली एक नदी का पानी उन तक पहुंचाया जाएगा और यह पानी का एक स्थायी स्रोत होगा. इसे नेत्रवती डाइवर्जन प्रोजेक्ट नाम दिया गया है.

इससे पहले भी कई बार पंप, सुरंग और नहरों के जरिये पश्चिमी घाट से पानी लाने के वादे किए गए थे. लेकिन वे वादे के वादे ही रहे.

विकास किसी भी तरह का हो, उसके कुछ असर होते हैं. हमें देखना पड़ेगा कि उसके कितने बुरे असर हैं और कितने अच्छे. पहले इस बात का आकलन हो कि ऐसे पानी लाने का पश्चिमी घाट के पर्यावरण पर कोई बुरा असर न हो. इस समस्या के व्यावहारिक हल भी हैं, लेकिन राजनेताओं और नौकरशाहों ने कभी उन पर गंभीरता नहीं दिखाई. मोइली ने सिंचाई परियोजना की किसी तकनीकी समझ के बिना ही इस परियोजना का वादा कर दिया. इसे आसान भाषा में धोखा कहा जाता है.

किसानों को फायदा मिले, इसे सुनिश्चित करने के कई रास्ते हैं. उदाहरण के लिए हम इस्राइल के किसानों से काफी कुछ सीख सकते हैं जिन्होंने किसानी के क्षेत्र में कई ऐसी ईजाद की हैं जिससे बहुत कम पानी में ही बहुत अच्छी खेती की जा सकती है. अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं?

मुझे दिख रहा है कि लोग अब बदलाव चाहते हैं. मैं पांच और 10 रु के टिकट बेचकर अपना प्रचार अभियान चला रहा हूं. लोगों को समझ में आ रहा है कि प्रचार के लिए नेता को पैसे देना बेहतर है बजाय इसके कि वह नेता पैसे देकर उनका वोट खरीदे.

(जी विष्णु से बातचीत पर आधारित)