मेरा जुर्म क्या है?

imgआइए, इंस्पेक्टर साहब. मुझे शुबहा था कि आप लोग मेरे घर भी जरूर आएंगे. इलाके में जितने मुसलमान हैं, उनमें से ज्यादातर के दरवाजों पर आप पहले ही दस्तक दे चुके हैं. खैर, यह तो बता दीजिए कि मेरा जुर्म क्या है?

क्या कहा? आपको मुझ पर भी शक है? तो आइए और मेरे घर की तलाशी भी ले लीजिए, हालांकि मैं पहले ही बता दूं कि मैं एक गरीब दर्जी हूं. शहर में हुए बम-धमाकों से मेरा कोई लेना-देना नहीं.

जनाब, उधर तसबीह लिए बैठे सहमे बुजुर्गवार मेरे वालिद हैं. नहीं-नहीं, उनका भी शहर में हुए बम-धमाकों से कुछ भी वास्ता नहीं. पुलिसवालों को अपने घर में घुस आया देखकर जैसे कोई भी आम इंसान सहम जाता है वैसे ही वो भी सहम गए हैं.

जी, जनाब! ये दोनों बच्चे मेरे ही हैं. मदरसे में पढ़ते हैं. आप लोगों को देखकर डर गए हैं. उस कोने में मेरी बच्ची है जो बुर्के में खड़ी अपनी मां की टांगों से चिपकी हुई है. घर में किसी को समझ नहीं लग रही है कि हमारे यहां पुलिस क्यों घुस आई है. पर आप अपना काम कीजिए, जहां चाहे तलाशी लीजिए.

क्या कहा, जनाब? आप अलमारी खोलकर देखना चाहते हैं? शौक से देखिए. हर घर में जो आम चीजें होती हैं, बस वैसी ही कुछ चीजें अलमारी में रखी हैं. वह हमारी ऐल्बम है, साहब. आप जानना चाहते हैं कि उसमें यह फोटो किसकी है? यह मेरा छोटा भाई है, हुजूर, जो हाल ही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में मारा गया था. नहीं-नहीं, आप गलत समझ रहे हैं. वह दंगाई नहीं था. वह पुलिस-फायरिंग में नहीं मारा गया था. वह बेचारा तो शहर के कॉलेज में पढ़ता था. दंगाइयों ने उसे फसाद के समय छुरा मार दिया था. मेरे वालिद इस सदमे से अपनी आवाज खो बैठे. वो आपके सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे. आप अपने सारे सवाल मुझसे पूछिए.

अच्छा, आप जानना चाहते हैं कि कोने में पड़े ट्रंक में क्या है? जनाब, एक गरीब दर्जी के यहां आपको क्या मिलेगा? कुछ पुराने कपड़े-लत्ते हैं एक-दो पुरानी दरियां हैं. एक-दो फटे हुए कम्बल हैं, जो सर्दियों में काम आते हैं.

आइए, आइए, आप खुद ही तलाशी ले लीजिए. हुजूर, वह कुरान शरीफ है और अब जो किताबें आपने उठा रखी हैं वो मेरे बच्चों की किताबें हैं. आप किताबें खोलकर देख रहे हैं. देखिए, देखिए. किताबों में और कुछ नहीं है.

ये किताबें उर्दू में क्यों हैं? साहब, हमारे यहां तो उर्दू में लिखी किताबें ही मिलेंगी. ये किताबें आपने जब्त कर ली हैं? क्यों, हुजूर? क्या उर्दू किताबें घर में रखना जुर्म है? क्या कहा? आपको उर्दू नहीं आती और आप किसी उर्दू के जानकार से ये किताबें पढ़वाएंगे. कहीं इनमें मुल्क के खिलाफ कुछ न लिखा हो, इसलिए? आप ख्वामखाह शक कर रहे हैं. लाइए, मैं ही पढ़ देता हूं. ये ऊपर वाली तो अलिफ, बे वाली किताब है. नीचे वाली किताब में कुछ नज्में हैं. क्या कहा? आपको मेरी बात पर यकीन नहीं. जैसी आपकी मर्जी, साहब. अब मैं आपको कैसे यकीन दिलाऊं?

नहीं, नहीं, जनाब! मैंने कहा न, वो मेरी बीवी है. बुर्के में क्यों है? जनाब, हमारे यहां घर की औरतें गैर-मर्दों के सामने बुर्के में ही रहती हैं. ये हमारा रिवाज है. नहीं, आप उसका चेहरा नहीं देख सकते. माफ कीजिएगा, मैं इस बात की इजाजत आपको नहीं दूंगा. क्या कहा? आपको मेरी बीवी पर शक है? आप उसकी तलाशी लेना चाहते हैं. इसके लिए आप जनाना-कांस्टेबल लेकर आइए.

अरे, आप तो नाराज हो गए. मेरी बात का बुरा मत मानिए, इंस्पेक्टर साहब. मोहल्ले वाले पहले ही गली में खड़े हैं. इलाके में आपकी तलाशी की वजह से लोगों में पहले ही जबर्दस्त गुस्सा भरा है. अगर मोहल्ले के लोगों को पता चला कि घर की औरत की बेइज्जती हुई है तो इसी बात पर यहां दंगा हो जाएगा, जो मैं नहीं चाहता.

नहीं-नहीं, हुजूर, मैं आपको डरा नहीं रहा, सिर्फ हालात से वाकिफ करवा रहा हूं. क्या कहा? आप लेडी-पुलिस बुला रहे हैं? जरूर बुलाइए, साहब. इसमें मुझे क्या एतराज हो सकता है.

illहां, इंस्पेक्टर साहब, यह हिंदोस्तान का झंडा है. क्या कहा, जनाब? हमने अपने घर में मुल्क का परचम क्यों रखा है? साहब, क्या अपने मुल्क का परचम अपने घर में रखना जुर्म है? यह झंडा मेरा भाई ले कर आया था. उसे क्रिकेट का बहुत शौक था. जब भी हिंदोस्तान की टीम का कोई मैच शहर में होता था, वह मुल्क का परचम ले कर मैच देखने जरूर जाता था. जब हमारी टीम जीत रही होती थी, तब मेरा भाई शान अपने मुल्क का झंडा लहराता था. जब से भाई दंगे में मारा गया है, यह परचम घर में यूं ही पड़ा हुआ है. क्या करूं, जनाब? भाई की याद आती है तो रोना आ जाता है.

क्या कहा, साहब? झंडे को इस तरह से मोड़कर कोने में रखना झंडे की बेइज्जती है? उसका अपमान है? इस बात के लिए आप हमारे खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं? इंस्पेक्टर साहब, मैं तो एक गरीब दर्जी हूं. मुझे मुल्क के कायदे-कानून की बारीकियां नहीं पता. पर हमारे यहां सभी अपने मुल्क के परचम की इज्जत करते हैं. देश के झंडे की बेइज्जती की बात हम सोच भी नहीं सकते. जनाब, एक बात पूछूं? आपकी वर्दी कैसे फट गई है? इस पर कालिख और दाग-धब्बे कैसे लग गए हैं? आपको नई वर्दी की सख्त जरूरत है. आप जब वर्दी सिलवाएं तो मेरे पास आइएगा. मैं आपके लिए एक उम्दा वर्दी सिल दूंगा.

5 COMMENTS

  1. इंस्पेक्टर साहब, आप मुझ पर बिना सबूत के शक क्यों कर रहे हैं? मेरा जुर्म क्या है? क्या यह कि मैं इस मुल्क में कम पढ़ा-लिखा मुसलमान हूं? या यह कि मेरा नाम अब्दुल्ला है, रामनारायण नहीं?
    धमाकों के बाद आप ओंकारनाथ, हरिनारायण और श्यामसुंदर जैसों के घरों की तलाशी लेने कभी नहीं जाते. ऐसा क्यों है साहब? आम आदमी चुपचाप सहते रहने के सिवा कर ही क्या सकता है?

  2. यह मेरा छोटा भाई है, हुजूर, जो हाल ही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में मारा गया था. नहीं-नहीं, आप गलत समझ रहे हैं. वह दंगाई नहीं था. वह पुलिस-फायरिंग में नहीं मारा गया था. वह बेचारा तो शहर के कॉलेज में पढ़ता था. दंगाइयों ने उसे फसाद के समय छुरा मार दिया था. मेरे वालिद इस सदमे से अपनी आवाज खो बैठे. वो आपके सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे

  3. पुलिस अफसर हैं. आप कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं. पर आपकी ऐसी बातें मुझे चुप भी तो नहीं रहने देतीं. कुछ लोग औरंगजेब के कामों की सजा अब हमें देना चाहते हैं. आप ‘लश्कर -ए-तयबा’ या ‘हूजी’ के दहशतगर्दों की तलाश में हम जैसे बेकसूर आम लोगों के घर पर छापे मारते हैं. अंधाधुंध गिरफ्तारियां करने लगते हैं. हम पर क्या बीतती है, कभी आपने सोचा है?

  4. kya kaha, Hindu ke gharo ki bhi talashi li? lekin unko arrest those hi karoge…
    Kya kaha, arrest bhi kiya? to iska ye matlab nahi hai ki musalman ko bhi arrest karo.
    achha lo…. hamare MLA Saab se baat karo.
    Kya kaha, kisi MLA we nahi date?
    Yaad rakho sahab,aap char police wale ho aur bahar 100musalman khade hai…..jinda nahi bachoge.
    Kya kaha? firing karoge?
    Ya Allah….. is desh me musalman chain se nahi jee sakta. Secularism khatre main hai. maaro sale police walo ko….
    allaaaaahoooo Akbar…

  5. 🙁 🙁 🙁
    सिर्फ नाम ही काफी है
    जालिम होने के लिए अक्छरधाम सब आरोपी बरी
    और बहुत से ऐसे केसेस में बरी हुए हैं
    जब पकड़ते है तो मिडिया वाले ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाते है
    जब छूटते है तो पता नहीं क्यों नहीं फिखाते
    की
    वाह रे लोकतंत्र

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