कोरोना-काल में हुई तालाबंदी के दौरान देश की एक बहुत बड़ी आबादी ने अपने इलाज पर क़रीब 70,000 करोड़ रुपये जेब से ख़र्च किये
सर्वे संतु निरामया (सब स्वस्थ रहें)। यह कामना करना और इसे अमलीजामा पहनाना, दोनों ही अलग-अलग बातें हैं। केंद्र सरकार यह कामना तो करती है कि सब स्वस्थ रहें; लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसे पूरा करने के लिए कितनी ईमानदारी और किस इच्छाशक्ति से काम करती है, यह बात देशवासी भी समझते हैं। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 1 फरवरी को संसद में पेश आम बजट में स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी तो हुई है और आँकड़े बताते हैं कि 2021-2022 यानी चालू वित वर्ष में स्वास्थ्य बजट 73,931 करोड़ रुपये का था, जो अब 2022-2023 वित्त वर्ष में 86,200 करोड़ रुपये हो गया है, यानी गत वर्ष की तुलना में स्वास्थ्य के बजट में कुल 16.59 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। शायद आँकड़ों की इस बढ़ोतरी के मद्देनज़र केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने बजट के बाद टिप्पणी करते हुए कहा कि आत्मनिर्भर भारत का बजट देश में मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत करने, शोध को बढ़ाने, आमजन तक उत्तम स्वास्थ्य सुविधा पहुँचाने में मील का पत्थर साबित होगा। यह बजट 100 साल में विकास का नया विश्वास लेकर आया है।
दरअसल अमृत-काल में नया भारत गढऩे का जो मुहावरा देश की जनता के सामने पेश किया गया है, कह सकते हैं कि आमजन की रोज़ाना मुश्किलों का समाधान निकालने में विफल केंद्र में मौज़ूद सरकार ने देश की जनता का ध्यान अपनी विफलताओं से हटाकर उसे आने वाले 25 वर्षों के रोडमैप का सपना देखते रहने का सन्देश दिया है। किसी भी कल्याणकारी राज्य के लिए उसकी जनता का स्वास्थ्य बहुत अहमियत रखता है। क्योंकि स्वस्थ जनता राज्य पर बोझ नहीं होती, बल्कि अपने परिवार, समाज और देश की अर्थ-व्यवस्था में ठोस योगदान देती है। भारत आने वाले कुछ वर्षों में पाँच ख़रब की अर्थ-व्यवस्था बनने का सपना संजोये हुए है और सरकार का दावा है कि वह इस दिशा में आगे भी बढ़ रही है। लेकिन क्या सरकार के पास इस सवाल का जवाब है कि शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार आमजन अपने इलाज के लिए अपनी जेब से क्यों ख़र्च कर रहा है? यह ख़र्च इतना बड़ा है कि इस ख़र्च के चलते समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। कोरोना महामारी ने आमजन की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि सरकार आम बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य के ढाँचे का मज़बूती प्रदान करेगी। स्वास्थ्य बजट के आँकड़ों में बढ़ोतरी नाकाफ़ी है।
इससे देश के स्वास्थ्य तंत्र के कमज़ोर बुनियादी ढाँचे को मज़बूती नहीं मिल सकेगी। स्वास्थ्य बजट का सूक्ष्म विश्लेषण बताता है कि स्वास्थ्य शोध विभाग, जो कि भारत में कोरोना टीके के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उसके बजट में महज़ क़रीब चार फ़ीसदी की ही वृद्धि की गयी है। वित्त वर्ष 2021-2022 के लिए यह राशि 2,663 करोड़ रुपये थी, जो वित्त वर्ष 2022-2023 में बढक़र 3,200 करोड़ रुपये कर दी गयी है। जबकि महामारी ने सरकारों को सिखाया है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में निरंतर शोध के लिए काम करना कितना ज़रूरी है? दरअसल सरकार ने बजट में बढ़ोतरी कर यह सन्देश देने की कोशिश की है कि उसे अपनी जनता की फ़िक्र है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि स्वास्थ्य पर सरकार का फोकस एक दिखावा ही लगता है। कोरोना महामारी के दौरान जब तालाबंदी (लॉकडाउन) के कारण हज़ारों की नौकरियाँ ख़त्म हो गयीं, लाखों लोगों के वेतन में मोटी कटौती की गयी, जो अनेक जगह अब भी जारी है; ऐसे वक़्त में देश की एक बहुत बड़ी आबादी ने अपने इलाज पर क़रीब 70,000 करोड़ रुपये अपनी जेब से ख़र्च किये, जो कि वास्तव में सरकार को ख़र्च करने चाहिए थे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जो कि एक महत्त्वाकांक्षी योजना है; के तहत सभी बीमारियों पर नियंत्रण कार्यक्रम और प्रजनन व बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम आते हैं, जिसमें टीकाकरण भी शामिल है। ये कार्यक्रम भारत की अधिकांश ग़रीब जनता के लिए टूटती साँसों के बीच जीवन की आशा की एक मात्र किरण हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में 7.4 फ़ीसदी बढ़ोतरी तो कर दी गयी है; लेकिन ध्यान देने वाला बिन्दु यह है कि बीते साल कोरोना महामारी में इन सेवाओं का लाभ उठाने वालों की संख्या में क़रीब 30 फ़ीसदी की कमी दर्ज की गयी, इससे कई बीमारियों के बढऩे का ख़तरा जताया जा रहा है। यही नहीं, लाखों बच्चे निर्धारित समय पर अपनी टीका ख़ुराक से भी वंचित रह गये। ऐसे में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत चलाये जा रहे कार्यक्रमों में सरकार को अधिक रक़म आवंटित करनी चाहिए थी। भारत स्वास्थ्य पर अपनी जीडीपी का बहुत-ही कम ख़र्च करता है। यह आँकड़ा क़रीब 1.2 से 1.5 फ़ीसदी के दरमियान ही अटका हुआ है। जबकि इसे कम-से-कम जीडीपी का आठ फ़ीसदी होना चाहिए। वित्त वर्ष 2022-23 के स्वास्थ्य बजट में एक ऐलान ने अधिक घ्यान खींचा और वह ऐलान है कि देश में राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य योजना शुरू किया जाएगा।