महिला विश्व कप हॉकी कितनी तैयार है भारतीय नारी

भारतीय महिला हॉकी टीम पिछले साल टोक्यो ओलिंपिक खेलों में चौथा स्थान लेने के बाद अब विश्व की बड़ी टीमों में शुमार हो गयी है। इससे पूर्व भारत ने सन् 1980 के मास्को ओलिंपिक में चौथा स्थान हासिल किया था। आजकल यह टीम गोलकीपर सविता पूनिया के नेतृत्व में एफआईएच महिला प्रो लीग हॉकी टूर्नामेंट में भाग ले रही है। 01 जुलाई से 17 जुलाई तक होने वाले विश्व कप से पहले यह आख़िरी टूर्नामेंट है। विश्व कप की मेज़बानी स्पेन और नीदरलैंड मिल कर कर रहे हैं।

प्रो लीग में अभी तक भारत 10 मैच खेल चुका है। उसने 10 में से चार मैच जीते, तीन मैच ड्रा किये और तीन हारे। पिछले दिनों भारत के दो मैच बेल्जियम के ख़िलाफ़ हुए। पहले मैच में मेज़बान बेल्जियम ने 2-1 से जीत दर्ज की जबकि दूसरे में वह 5-0 के बड़े अन्तर से जीता। वैसे अगर आँकड़ों पर नज़र डालें, तो सन् 2012 से लेकर अब तक दोनों टीमों के बीच सात मुक़ाबले हो चुके हैं, जिनमें से छ: बेल्जियम ने जीते हैं और एक मुक़ाबला 1-1 से ड्रा रहा था। बराबरी पर ख़त्म हुआ मैच भी सन् 2013 का है। इन मुक़ाबलों के दौरान कुल 27 गोल हुए, जिनमें से 21 बेल्जियम ने किये, जबकि भारत केवल छ: गोल कर सका।

अभी एफआईएच प्रो लीग में खेले गये पहले मैच में भारत ने शुरुआत बहुत तेज़ी से की थी। शुरू के एक डेढ़ मिनट तक उसने बेल्जियम की डी को दबाये रखा। पर उसके बाद मैच बेल्जियम की पकड़ में जाता रहा। वैसे तो भारत की पूरी टीम ही उखड़ी दिख रही थी, पर रक्षा पंक्ति बहुत-ही धीमी थी। यह तो कप्तान सविता पुनिया का शानदार प्रदर्शन था कि बेल्जियम केवल दो ही गोल कर पाया, नहीं तो स्कोर कहीं अधिक हो सकता था। इस मैच का यदि विश्लेषण करें, तो पाएँगे कि शारीरिक और मानसिक तौर पर भारतीय टीम यूरोपीय टीम के सामने कमज़ोर नज़र आ रही थी। मिड फील्ड पर बेल्जियम की खिलाड़ी क़ब्ज़ा बनाये हुए थीं। भारत के लिए फ्री हिट लेना भी कठिन था। बेल्जियम की खिलाड़ी अक्सर भारतीय खिलाडिय़ों की स्टिक पर से भी गेंद छीनकर ले जातीं। इस मैच में भारत को केवल एक ही पेनल्टी कॉर्नर मिला, जिसे पूर्व कप्तान रानी रामपाल ने बाहर मारकर गँवा दिया। असल में टीम की कोई रणनीति नज़र नहीं आ रही थी। इस दौरान भारतीय टीम कैसे हमला करेगी? इसका पूर्व अनुमान लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था। इनका खेल लेफ्ट बैक से शुरू होता। लेफ्ट से गेंद राइट बैक के पास जाती वहाँ से लाइन के साथ राइट हाफ को तलाशती और फिर राइट आउट तक भेजी जाती। राइट आउट गेंद को कोने में ले जाती और वहाँ से डी में प्रवेश की कोशिश करती। इसी तरह लेफ्ट फ्लेंक में होता। सेंटर हाफ वाली पोजीशन से गेंद को राइट या लेफ्ट में दिया जाना कम ही देखने को मिला। भारत ने तेज़ी से कभी फ्लेंक नहीं बदले। इसका नतीजा यह हुआ कि विपक्षी टीम की रक्षा पंक्ति उसी फ्लेंक पर पूरा ज़ोर लगाकर भारतीय हमले को बेकार कर देती। अगर कभी खिलाड़ी उनकी डी में पहुँच भी गये, तो भी कोण इतना तीखा कर लेते कि वहाँ से गोल में गेंद डालना नामुमकिन न सही, पर कठिन ज़रूर हो जाता। किसी भारतीय फॉरवर्ड को गोल लाइन से गेंद माइनस करते नहीं देखा गया। इस पूरी प्रक्रिया में में भी हमारे फॉरवर्ड ख़ुद ही फाउल कर बैठते। यही वजह है कि हमें अधिक पेनल्टी नहीं मिल पायी।

इसके अलावा गेंद को अपने पास रहने में भी भारतीय खिलाड़ी नाकाम रहे। बड़ी आसानी से बेल्जियम के खिलाड़ी उनसे गेंद छीन लेते थे। अपनी तेज़ गति के कारण जवाबी हमलों में वे कहीं बेहतर साबित हुए। इन दो मैचों में जो सात गोल उन्होंने किये उनमें से चार जवाबी हमलों में आये। भारत की अनुभवी खिलाड़ी दीपा ग्रेस इक्का और गुरजीत कौर ने भी कई ग़लतियाँ की। उनमें और मिड फील्ड के बीच कोई तालमेल नज़र नहीं आया। इसका पूरा लाभ विरोधी टीम उठाती रही।

इसके अतिरिक्त बेल्जियम के दायें छोर से होने वाले हमलों को रोकने की कोई कोशिश नज़र नहीं आ रही थी। उस छोर से उनके फॉरवर्ड बड़ी आसानी से भारत की डी में प्रवेश कर जाते। दूसरी ओर भारत की पुरानी कमज़ोरी एक बार फिर देखने को मिली। भारतीय खिलाड़ी गेंद को ज़रूरत से अधिक अपने पास रखने की कोशिश करते। इस चक्कर में उनके साथ बेहतर पोजीशन में खड़े खिलाड़ी गेंद से वंचित हो जाते, साथ ही विपक्षी टीम को अपनी रक्षा पंक्ति को मज़बूत करने का टाइम मिल जाता। आज की हॉकी में तेज़ी और गति का ज़ोरदार महत्त्व है। गेंद को फुर्ती से इधर-उधर करना भी ज़रूरी है।

नये खिलाडिय़ों में इशिका चौधरी, संगीता, दीपिका, बलजीत से भविष्य में आशा की जा सकती है। इन मुक़ाबलों में यह बात भी देखने को मिली कि रानी रामपाल अभी पूरी तरह तंदरुस्त नहीं हैं। उनकी गति भी धीमी है और शायद अब बहुत समय तक वह अंतरराष्ट्रीय हॉकी नहीं खेल पाएँगी। उनका विकल्प संगीता या दीपिका में तलाशना पड़ेगा।