कोरोना संक्रमण नामक इस महामारी ने केवल मौत ही नहीं दी, बल्कि चौतरफ़ा ख़ौफ़ भी पैदा किया है, जिसका शिकार हर वर्ग हुआ है। हालात ये हैं कि महामारी में बेरोज़गार हुए करोड़ों युवा और पहले से नौकरी की तलाश में करोड़ों बेरोज़गार युवा अब नौकरी के लिए इतने परेशान हैं कि कैसे भी नौकरी पाना चाहते हैं, जिसके चलते वे साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं।
अब तक हम देखते थे कि एक चपरासी पद पर नौकरी पाने के लिए लाखों युवा टूट पड़ते थे, जिसमें बीएड, पीएचडी, आईआईटियन तक होते थे। लेकिन अब कोरोना महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन में यह तक देखने को मिला कि इसी तरह उच्च शिक्षा प्राप्त युवा मनरेगा में मज़दूरी तक कर रहे हैं। यही वजह है कि कोरोना महामारी के दौर में नौकरी पाने की लालसा इतनी बढ़ी है कि उन्हें साइबर ठगों की साज़िश का पता ही नहीं चल पा रहा है और वे लगातार ऐसे बेरोज़गार युवाओं को ठगी का शिकार बनाते जा रहे हैं।
देश का गृह मंत्रालय भी बेरोज़गारों से साइबर ठगी का संकेत दे रहा है। हाल ही में जारी गृह मंत्रालय द्वारा एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोज़गार युवा नौकरी देने के लिए मिल रहे मैसेज, ईमेल और फोन कॉल्स पर आँख बन्द करके भरोसा न करें, बल्कि उसकी ठीक से पड़ताल कर लें। इन दिनों भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना महामारी ने पैर पसार रखे हैं, जिसकी आड़ में इंटरनेट की दुनिया के साइबर ठगों ने अपना जाल बिछा रखा है। इस ठगी के जाल में एक जाल है- लोगों का डेटा चुराना और दूसरा है- बेरोज़गारों को ठगी का शिकार बनाना। यह हमारे देश की विडम्बना है कि यहाँ बेरोज़गार बहुत जल्दी ठगी का शिकार होते हैं। इन बेरोज़गारों को कोई सरकारी नौकरी के नाम पर, तो कोई विदेश में नौकरी के नाम पर ठग लेता है। कोई अच्छी नौकरी के नाम पर, तो कोई घर बैठे नौकरी के नाम पर ठग लेता है।
आपने बड़े शहरों में बसों और दूसरे सार्वजनिक वाहनों में लोगों को दो तरह के पर्चे फेंकते अक्सर देखा होगा, इनमें एक होता है- तांत्रिक बाबाओं का और एक होता है- रोज़गार दिलाने का। शहरों की दीवारों पर भी इस तरह के इश्तिहारों की भरमार देखने को मिलती है, जिनमें लिखा होता है- ‘एक दिन में 500 से 3,000 रुपये तक कमाएँ। तुरन्त मिलें।’ और इसके बाद कुछ फोन नंबर लिखे होते हैं। एक पता लिखा होता है। इस तरह के इश्तिहारों के चक्कर में गाँव-देहात से आने वाले बेरोज़गार युवा-युवतियाँ बड़ी आसानी से आ जाते हैं और नौकरी के लिए चले जाते हैं, जहाँ उनसे शुल्क (फीस) के नाम पर ठगी कर ली जाती है और नौकरी नहीं मिलती। लेकिन यह ठगी का तरीक़ा पुराना हो चला है। आज ज़माना इंटरनेट का है, जहाँ साइबर ठग ईमेल, सन्देश, फोन कॉल्स, सोशल मीडिया के सहारे बेरोज़गारों को फँसाते हैं। यानी नौकरी का झाँसा देने वाले ठगों ने अपनी ठगी का धन्धा भी ऑनलाइन कर लिया है। महामारी में यह धन्धा तेज़ी फला-फूला है, इस बात की पुष्टि गृह मंत्रालय के हैंडल ‘साइबर दोस्त’ ने की है।
पिछले दिनों गृह मंत्रालय के हैंडल साइबर दोस्त ने अलर्ट जारी किया कि कोरोना महामारी के समय में ऑनलाइन इंटरव्यू (साक्षात्कार) के नाम पर बेरोज़गार युवाओं को ठगा जा रहा है। नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले साइबर अपराधी बेरोज़गारों को ईमेल, व्हाट्स ऐप, फेसबुक और मैसेज के ज़रिये रोज़गार देने की गारंटी देते हैं और बाक़ायदा साक्षात्कार भी लेते हैं। इसके बाद नौकरी के बदले कुछ पैसों की माँग पंजीकरण शुल्क (रजिस्ट्रेशन फीस) और संसाधन शुल्क (प्रोसेसिंग फीस) आदि के नाम पर की जाती है, जो बेरोज़गार युवा अच्छी तनख़्वाह वाली नौकरी के चक्कर में दे देते हैं और बाद में पता चलता है कि उनके साथ ठगी हुई है। गृह मंत्रालय ने नौकरी के नाम पर की जा रही ठगी की लगातार शिकायतें आने के बाद इस पर संज्ञान लिया है। नौकरी के नाम पर साइबर ठगी की शिकायतें पुलिस के पास बड़ी संख्या में पहुँच रही हैं।