मनरेगा के कम बजट से घटेगा रोज़गार

मनरेगा में बढ़ी आवंटन और व्यय के बेमेल होने की आशंका ग़रीबी उन्मूलन की प्रमुख योजना महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के केंद्रीय बजट में 2023-24 में इसके परिव्यय (बजट) को काफ़ी ज़्यादा घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। प्रमुख ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम के लिए यह प्रावधान छ: वर्षों में सबसे कम है। याद रहे मनरेगा के लिए केंद्र ने 2020-21 में 1,11,170 करोड़ रुपये, 2021-22 में 98,468 करोड़ रुपये और 2022-23 में 89,400 करोड़ आवंटित किये थे। भले ही मोदी सरकार ने अपनी दलीलें दी हैं; लेकिन वो मूल रूप से सामान्य स्थिति लौटने या लौट आने की धारणा पर टिकी हैं। हालाँकि प्रधानमंत्री किसान योजना, जिसके तहत 11 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों को 6,000 रुपये वार्षिक आय सहायता प्राप्त होती है, परिव्यय को 2022-23 के 60,000 करोड़ रुपये के स्तर पर बनाये रखा गया है। आश्चर्यजनक रूप से बजट 2023-24 में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के लिए आवंटन में भारी कटौती की गयी है। इसे चालू वित्त वर्ष में कार्यक्रम के संशोधित अनुमान से 32 फ़ीसदी से अधिक कम कर दिया गया। सरकार ने 31 जनवरी, 2023 को ग्रामीण रोज़गार दर 6.5 फ़ीसदी होने के बावजूद मनरेगा के लिए बजटीय आवंटन घटा दिया। माना जाता है कि प्रति व्यक्ति आय में लाभ होता है; लेकिन बजट आवंटन की तुलना में अधिक व्यय को देखते हुए कम-से-कम 15 राज्यों में वर्तमान में ऋणात्मक शेष है। उच्चतम ऋणात्मक शेष राशि राजस्थान के मामले में 620 करोड़ है, इसके बाद उत्तर प्रदेश में यह 323 करोड़ है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर लगभग 2,000 करोड़ रुपये के बक़ाया भुगतान के लिए तत्काल धनराशि जारी करने की माँग की थी। पत्र में मज़दूरी के भुगतान की 848 करोड़ और सामग्री की 1,102 करोड़ रुपये की देनदारी बक़ाया होने का ज़िक्र है। देखा जाए, तो मनरेगा ने ग्रामीण मज़दूरी और आय को बढ़ाया है और ग्रामीण बुनियादी ढाँचे का भी निर्माण किया है और देश की ग्रामीण आबादी को बहुत ज़रूरी रोज़गार प्रदान किया है। हालाँकि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करने में असमर्थ रहा है, क्योंकि धन आवंटन का बढ़ती मुद्रास्फीति और बढ़ती माँग के साथ तालमेल नहीं रखा गया है। सही मायने में श्रम प्रवासन (मज़दूरों का बाहर जाना) कम हो गया है, जिसके हिसाब से गारंटीशुदा रोज़गार प्रदान करने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होगी। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की गारंटी देने के लिए बनाया गया एक माँग-संचालित कार्यक्रम है, जिसमें अकुशल कार्य के लिए तैयार वयस्कों वाले प्रत्येक ग्रामीण परिवार को शामिल किया गया है। यह योजना 2 फरवरी, 2006 को शुरू की गयी थी और इसे अक्सर पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा एक कार्यक्रम के रूप में उजागर किया गया था, जिसने ग्रामीण आबादी को क़ानूनी रूप से न्यूनतम आजीविका सुरक्षा की गारंटी दी, ग्रामीण मज़दूरी बढ़ाने में योगदान दिया, संकटग्रस्त प्रवासन को कम किया और कमज़ोर लोगों को सशक्त बनाया। वित्तीय वर्ष 2022-23 में अब तक लगभग 6.49 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की माँग की, जबकि 6.48 करोड़ की पेशकश की गयी और उनमें से 5.76 करोड़ ने इसका लाभ उठाया। साल 2019-20 के दौरान मनरेगा को 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। हालाँकि यह उम्मीद की गयी थी कि धन आवंटन में उचित वृद्धि होगी। हालाँकि वास्तव में आवंटन में कमी आयी थी। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान केंद्र सरकार के फ्लैगशिप प्रोग्राम को 61,084 करोड़ (संशोधित अनुमान) मिले थे। इसके बाद मनरेगा के लिए बजटीय आवंटन 2014-15 में 34,000 करोड़ से बढक़र 2018-19 में 61,084 करोड़ हो गया था। साल 2014-15 को छोडक़र अब तक के सभी वर्षों में वास्तविक व्यय स्वीकृत बजटीय आवंटन से अधिक रहा है। ग़ैर-लाभकारी केंद्र फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी के अनुसार, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किये जाने पर आवंटन में वास्तव में गिरावट आयी है।