मखमली रस्सी

मनुष्य बड़ा भावुक होता है। परन्तु मनुष्य से अधिक निर्दयी भी कोई नहीं है। ये दोनों लक्षण हर मनुष्य में होते हैं। अलग बात है कि जिसमें भावुकता अधिक होती है, उसमें निर्दयता कम होती है; तथा जिसमें निर्दयता अधिक होती है, उसमें भावुकता कम होती है। परन्तु यह कला हर व्यक्ति को नहीं आती कि उसे कहाँ भावुक होना चाहिए और कहाँ निर्दयी बन जाना चाहिए। यही वजह है कि मनुष्य को जहाँ भावुक होना चाहिए, वहाँ वह निर्दयी हो जाता है और जहाँ निर्दयी होना चाहिए, वहाँ भावुक हो जाता है।

वास्तव में अधिकतर लोगों की ये दोनों अवस्थाएँ अपने-पराये का भेद करते हुए उजागर होती हैं। यही कारण है कि अधिकतर लोग न्यायसंगत व्यवहार नहीं करते। ये लोग अपनी तथा अपनों की ग़लतियों पर परदा डालने का प्रयास करते हैं, तो दूसरों की ग़लतियों का बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार-प्रसार करते हैं। यहाँ तक कि कई बार कुछ लोग बिना ग़लती के भी दूसरे को दण्डित करने की कोशिश में रहते हैं। सामने वाले को सिर्फ़ इसलिए बदनाम करते हैं, क्योंकि उन्हें उस व्यक्ति से अकारण ही चिढ़ होती है।

आजकल तो हाल यह है कि अगर कोई सच बोलता है, तो लोग उसका खुलकर या छिपकर विरोध करते हैं। अगर मामला दूसरे धर्म से जुड़ा हो या कोई समतावादी-मानवतावादी हो, या फिर दूसरे धर्म का व्यक्ति हो, तो यह घृणाग्नि और अधिक धधकने लगती है। भले ही सामने वाले से कोई लेना-देना न हो। आजकल अलग-अलग धर्मों के लोगों में जिस तरह से वैमनस्यता बढ़ती जा रही है, वह इसी घृणाग्नि का परिणाम है। परन्तु लोग शायद नहीं समझ रहे हैं कि यह घृणाग्नि भवष्यि में किसी भी धर्म को मानने वालों के लिए हितकर नहीं होगी। आजकल दुनिया में हर धर्म में कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपने-अपने धर्म के लोगों को धर्म के नाम पर एक भावनात्मक अधर्म-चक्र में फँसाकर भड़का रहे हैं, ताकि वे लोग दूसरे धर्म के लोगों पर हमलावर हो सकें, और धर्म के इन ठेकेदारों की दूकान चलती रहे।

लोग लड़ते-मरते हैं, तो लड़ते-मरते रहें; इससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। लेकिन जो लोग अपने इन पूज्यनीयों अर्थात् धर्म के ठेकेदारों के कहने पर अपने धर्म और कथित रूप से अपने ईश्वर या देवता / पैगम्बर / दूत की रक्षा के लिए ख़ून-ख़राबा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, वे यह भी नहीं जानते कि इसकी अनुमति न उनका धर्म देता है और वे जिस ईश्वर / देवता / पैगम्बर / दूत को मानते, न वे इसकी अनुमति देते हैं। लेकिन फिर भी लोग घृणा, रक्तपात व वैनस्य करने से बाज़ नहीं आते।