
डॉक्टरों के कमरे में यह वाली प्रार्थना इतनी बार की जाती है कि यदि कभी झाड़ू मार कर प्रार्थनाओं को बुहारने की कोई तकनीक निकल आए तो उनके चैंबर से रोज बड़ा-सा ढेर इसी प्रार्थना का निकले. मैं खुद भी नहीं जानता परंतु यदि चिकित्सा क्षेत्र में बहते, लहराते हुए टॉनिकों के इस दरिया की कभी नपती की जा सके तो मामला जरूर अरबों रुपये का निकलेगा. इनमें से ज्यादातर वे टॉनिक होंगे जिनकी मरीज को जरूरत ही नहीं होती. प्राय:इन इधर-उधर के टॉनिकों को लेते-लेते मरीज इतनी देर कर देता है कि उसकी बीमारी पकड़ में आते-आते बहुत देर हो चुकी होती है. याद रहे कि भूख न लगना, स्वयं में किसी तरह की बीमारी नहीं है लेकिन यह अन्य बीमारियों का लक्षण जरूर है. भूख खत्म करने वाली इतनी बीमारियां हैं कि कोई सहृदय, सक्षम और चुस्त डॉक्टर ही उसकी जड़ तक पहुंच सकता है. भूख अर्थशास्त्रियों के लिए जितना जटिल विषय है उससे जटिल यह चिकित्साशास्त्र के लिए है.
पहले तो यह समझ लें कि हमें भूख क्यों लगती है? यूं मान लें कि ईश्वर चाहता है कि आपके जीवन का कार्य-व्यापार चलता रहे. इसलिए भूख लगती है. आप जीवन में जो भी काम करते हैं (इसमें श्वास और हृदय का लगातार चलते रहना भी शामिल है) उसके लिए ऊर्जा की जरूरत होती है. आप रात-दिन शारीरिक ऊर्जा खर्च कर रहे हैं लेकिन इसे आप पाएंगे कहां से? भोजन से. ईश्वर चाहता है कि आप भोजन करें. आपको ऊर्जा मिले. यह जीवन चले. इधर मनुष्य मूलत: आलसी प्राणी है. ईश्वर को पता है कि यदि इसे भोजन की तड़प पैदा न हो तो यह तो पांव फैलाकर लेटा रहेगा. तभी भगवान ने भूख पैदा की. जो प्रगतिशील शायर शिकायत करते फिरते हैं कि खुदा, तूने भूख पैदा ही क्यों की…तो बेटा वह इसलिए ताकि तुझमें जिंदा रहकर शायरी करने की ऊर्जा बची रहे. भूख एक जीवनरक्षक प्रणाली है. हर जीव में यह अपनी तरह से काम करती है. हम मनुष्य की इसी भूख की चर्चा करेंगे.
याद रहे कि चिकित्सा विज्ञान को अभी भी इस बात का अंतिम उत्तर नहीं मिला है कि हमें भूख क्यों लगती है? कुछ मोटा-मोटी बातें पता हैं जिन्हें मैं यहां आपको बताता हूं. भूख को समझेंगे तो मेरी आगे आने वाली बाकी बातें आपकी समझ में आएंगी. वास्तव में भूख मन और मस्तिष्क का खेल है. आपका मस्तिष्क भूख पैदा करता है पेट नहीं. भरपेट भोजन के बाद यही आपको तृप्ति भी महसूस कराके आगे खाने से रोकता है. और मन का खेल अलग है. वह अपनी पर आ जाए तो मस्तिष्क भी उसके बस में. मन का मतलब है आपका चेतन तथा अवचेतन मानसिक जगत. यह मनोवैज्ञानिक पथ है भूख का. तभी तो पचासों ऐसी मनोवैज्ञानिक बीमारियां हैं जिनमें भूख लगनी बंद हो सकती है. शरीर स्वस्थ्य और मन बीमार तो भी भूख लगनी बंद हो सकती है. तो भूख मन के कब्जे में है. हां, इसका कंट्रोल स्टेशन बना है मस्तिष्क के हाईपोथैलेमस नामक हिस्से में. एक बेहद जटिल-सा कंप्यूटर है आपका मस्तिष्क. इसमें हाईपोथैलेमस नामक ड्राइव में दो प्रोग्राम बने हुए हैं. एक हिस्से में भूख महसूस होने का प्रोग्राम है तो दूसरे में तृप्ति का. इन्हीं को चिकित्सा की तकनीकी भाषा में क्रमश: ‘हंगर (Hunger) ‘ और सेटाइटी (Satiety) सेंटर्स कहा जाता है.