भारत को चीन से कितना ख़तरा!

सीमा पर चीन करता जा रहा निर्माण, लड़ाकू विमान लगातार भर रहे उड़ानें

क्या साल के आख़िर में तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शी जिनपिंग भारत के साथ युद्ध की तैयारी कर रहे हैं? पूर्वी लद्दाख़ के ग़ैर-विवादित क्षेत्र में नो फ्लाई ज़ोन में चीन के लड़ाकू विमानों ने हाल के दो हफ़्तों में एक से ज़्यादा बार भारतीय क्षेत्र के ऊपर उड़ानें भरी हैं। इसके अलावा भूटान के रास्ते भारत को घेरने के इरादे से चीन डोकलाम से नौ किलोमीटर दूर भूटान की अमो चू नदी घाटी में पिछले साल जो गाँव बसाना शुरू किया था, अब वहाँ पूरा गाँव बस गया है। चीन ने इसके अलावा सीमा पर कई निर्माण किये हैं, जिन्हें उसकी भविष्य की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है। यह सब घटनाएँ तब हो रही हैं, जब चीन भारत के साथ कोर कमांडर स्तर की बातचीत के 16 दौर हो चुके हैं।

चीनी सेना अपनी पहुँच डोकलाम पठार की रणनीतिक लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण चोटी तक बनाना चाहती है। जुलाई के मध्य में भारत ने भूटान को डोकलाम पठार के पास विवादित त्रि-जंक्शन क्षेत्र में चीन के कार्यों को लेकर सचेत किया था। दरअसल चीन का बड़ा उद्देश्य दबाव की स्थिति बनाकर भारत के साथ 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और थिंपू के साथ 477 किलोमीटर की विवादित सीमा के साथ दशकों से उठाये जा रहे अपने सीमा दावों को ताक़त देना है।

चीन की गतिविधियों को लेकर चिन्ता केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी जता रहे हैं। सीमा के भीतर चीन के लड़ाकू जहाज़ों के उड़ान भरने की रिपोट्र्स के बीच सुब्रमण्यम स्वामी ने एक ट्वीट करके कहा- ‘चीन की सेना भारतीय सीमा में घुस चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। क्या आप (मोदी) इसका परिणाम समझते हैं?’

सन् 2017 में सिक्किम के पास डोकलाम पठार पर भारत और चीन की सेना का आमना-सामना हुआ था। सैटेलाइट से हाल में ली गयी जो तस्वीरें सामने आयी हैं, उनसे ज़ाहिर होता है कि एलएसी के पास भूटान के साथ विवादित क्षेत्र में चीन ने पिछले साल जो निर्माण शुरू किया था, वहाँ अब पूरा गाँव बस गया है और वहाँ उसने बड़ी संख्या में पूर्व सैनिकों को बसाया है। तस्वीरों में दिखता है कि वहाँ काफ़ी घरों के आगे कारें और अन्य वाहन खड़े हैं। दरअसल चीन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण डोकलाम पठार को वैकल्पिक मार्ग के रूप में तैयार कर रहा है।

अब ये रिपोट्र्स पुख़्ता हो चुकी हैं कि चीन अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जीओसी-इन-सी, लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता का कहना है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अरुणाचल प्रदेश सीमा पर बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ अपनी क्षमताओं को बढ़ा रही है।

लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता कहते हैं- ‘तिब्बत में भी एलएसी के पार बुनियादी ढाँचे में बहुत विकास हुआ है और हो रहा है। दूसरी ओर सडक़ों और पटरियों, कनेक्टिविटी और नये हवाई अड्डों और हेलीपैडों का निर्माण कार्य हो रहा है। सशस्त्र बलों सहित हमारी सभी एजेंसियाँ लगातार इन हालात की निगरानी कर रही हैं।’
उनका कहना है कि चीन की इन गतिविधियों को देखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेशनल मामलों में हम भी अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। तकनीक (टेक्नोलॉजी) के तेज़ी से विकास के साथ ही वेलफेयर की प्रकृति बदल रही है, इसलिए तकनीक के साथ तालमेल रखने के लिए हमें अपनी ख़ुद की कार्यप्रणाली और विभिन्न चुनौतियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने की भी ज़रूरत है।’

साल के आख़िर में चीन में अपने नेता (राष्ट्रपति) पद का चुनाव वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी को करना है। ज़्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि शी जिन पिंग तीसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। उसके बाद वह अपनी कुछ योजनाओं को अमलीजामा पहनाना चाहते हैं। क्या इसमें भारत के ख़िलाफ़ युद्ध करना भी शामिल है? यह एक जटिल सवाल है, क्योंकि भारत की पिछले दशकों में बढ़ती ताक़त से भी चीनी नेतृत्व बेचैनी महसूस करता है। ख़ुद चीन के ख़राब आर्थिक हालात की रिपोट्र्स अब आने लगी हैं।

यह कहा जाता है कि जिनजिंग अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सीमा पर विवाद खड़े करते हैं। हालाँकि बहुत-से रक्षा विशेषज्ञ चेताते हैं कि चीन की गतिविधियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। तनाव वाली तमाम गतिविधियों के बावजूद एक सच यह भी है कि चीन के साथ भारत का व्यापार आज भी जारी है। यूक्रेन में युद्ध के चलते हाल में भारत ने चीन की एक निजी कम्पनी ताइयुआन को 500 करोड़ के रेल पहियों का ऑर्डर दिया है। वैसे यूक्रेन की कम्पनी को यह ठेका इससे कहीं कम क़ीमत पर दिया गया था।

लिहाज़ा चीन के सीमा पर तनाव बढ़ाने के बावजूद कुछ विशेषज्ञ उसके व्यापारिक हितों का हवाला देते हुए मानते हैं कि वह युद्ध की सीमा तक शायद ही जाए। दूसरा भारत की सैन्य क्षमताओं को कम करके नहीं आँका जा सकता। वैसे भी चीन के भीतर ही शी जिनपिंग के लिए चुनौतियाँ कम नहीं हैं। इनमें आर्थिक चुनौतियाँ भी शामिल हैं। यह कुछ ऐसे बिन्दु हैं, जो उनके लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की राह में रोड़ा भी बन सकते हैं। क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में उनके विरोधी कम नहीं हैं; ख़ासकर उनकी आर्थिक नीतियों के। हाल में आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से बड़ी संख्या में व्यापारियों का दूसरे देशों को पलायन हुआ है।

पश्चिम भी चिन्तित
पश्चिमी देशों का रुख़ भी चीन के प्रति अविश्वास भरा है। हाल में अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई और ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई-5 के प्रमुखों ने एक बैठक के दौरान चीन को पश्चिमी देशों के लिए लम्बे समय का और सबसे बड़ा ख़तरा बताया था। उनका मानना था कि चीन पश्चिम देशों की गोपनीयता हासिल करने में जुटा है और उसकी विभिन्न तकनीकों को चुराने की फ़िराक़ में रहता है। दोनों देशों के ख़ुफ़िया विशेषज्ञों का मानना था कि चीन दुनिया को अपने पक्ष में बदलने की चालें चल रहा है और इसके लिए दमन का सहारा लेने से भी नहीं कतरा रहा। वे (प्रमुख) दुनिया को इसके प्रति आगाह करते हुए कहते हैं कि इन ख़तरों से निपटने की तैयारी ज़रूरी है।
चीन की ये गतिविधियाँ एशियाई देशों में भी उतनी ही हैं। स्थिति कितनी गम्भीर है इसका अंदाज़ा एफबीआई के प्रमुख क्रिस्‍टोफर रे की बातों से लगाया जा सकता है, जिनका कहना है कि एफबीआई प्रत्येक 24 घंटे में चीन से जुड़े एक मामले की जाँच करती है। क्रिस्टोफर का तो यह तक कहना है कि चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ नज़दीकी सम्बन्ध बनाने से कोई बदलाव आएगा, यह सोचना एक भूल ही होगी। एफबीआई प्रमुख चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के निरंकुश एकाधिकार की तरफ़ जाने को सबसे बड़ी चिन्ता मानते हैं।

इस बैठक का लब्बोलुआब यह रहा कि चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ख़ामोशी से पूरे विश्‍व में दबाव की नीति बनाने की योजना पर काम कर रही है। दो देशों के ख़ुफ़िया प्रमुख मानते हैं कि इस दबाव का मुक़ाबला करने के लिए चीन के ख़िलाफ़ कार्रवाई की ज़रूरत है। उन्हें यह भी लगता है कि रूस के यूक्रेन पर हमले की तर्ज पर चीन ताइवान पर कार्रवाई करके उसे जबरन अपने क़ब्ज़े में करने की कोशिश कर सकता है।

ख़ुफ़िया विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने जासूसों का विशाल नेटवर्क बना लिया है और वह पश्चिम सहित देश के अन्य हिस्सों, जिनमें भारत भी शामिल है; में बड़े पैमाने पर अपनी गतिविधियाँ जारी रखे हुए है। इनमें हैकिंग उसका सबसे बड़ा हथियार है। चीन आर्थिक लाभ उठाने के लिए लम्बे समय से हैकिंग और सूचनाओं को चोरी की गतिविधियों में लिप्‍त है। एफबीआई और एमआई-5 दूसरे देशों की एजेंसियों के साथ एक टीम बनाकर चीन को लेकर काम कर रहे हैं।

रिपोट्र्स से पता चलता है कि चीन दुनिया भर की तमाम बड़ी कम्पनियों में अपने एक इंटरनल सेल के ज़रिये काम करता है, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को रिपोर्ट करता है। यह सेल न सिर्फ़ राजनीतिक एजेंडा चलाता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कम्पनी राजनीतिक दिशा-निर्देशों का पालन करे। ख़ुद चीन के विशेषज्ञ यह स्वीकार करते रहे हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया के कई देशों में बिजनेस के ज़रिये सक्रिय है। इनमें कई गोपनीय तरीक़े से काम करते हैं।