बिहार में आ ही गई नई मुसीबत

नीतीश कुमार का महागठबंधन छोड़ कर फिर से भाजपा के साथ आने और हिंदुत्व की शक्तियों को देशव्यापी उभार के कारण बिहार में इन शक्तियों को नई ताकत मिली है। राज्य साप्रदायिक हिंसा की चुनौती का सामना कर रहा है। औरंगाबाद, समस्तीपुर, भागलपुर तथा मुंगेर में स्थिति विस्फोटक बनती जा रही है। रामनवमी के अवसर पर औरगांबाद में बड़े पैमाने पर आगजनी और हिंसा भी हुई है। बाकी जब जगहों पर झड़प हुई और हिंसा हुई। भागलपुर में एक बड़े भाजपा नेता के बेटे की उपस्थिति से मामला और भी पेंचीदा हो चुका है।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अरिजीत शाश्वत के खिलाफ प्राथमिकी होने के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका। वह कानूनी दांचपेंच का सहारा ले रहे हैं और केंद्र व राज्य की पुलिस लाचार दिखाई दे रही है। लोगों को लग रहा है कि नौकरशाही पहले की तरह काम नहीं कर रही है। राज्य के नए राजनीतिक समीकरण उसके कामकाज पर असर डाल रहे हैं। इससे अल्पसंख्यगकों के बीच असुरक्षा बढती जा रही है।

बिहार में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने रामनवमी के अवसर का इस्तेमाल आक्रामक हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए किया। हथियारों के साथ जुलूस निकालने का सुनियोजित कार्यक्रम अपनाया गया। इन जुलूसों में भड़काने वाले नारे लगाए गए और उन्हें अल्पसंख्यकों के इलाके से ले जाया गया।

जाति के संघर्ष के कारण बिहार अपने पिछड़ेपन को दूर करने में विफल रहा है। यह उसे विपन्नता और बदहाली से निकलने नहीं देती है। नक्सलवाद और लोहियावाद के लंबे संघर्षो के बाद भी बिहार जिस तरह के जातिभेद, स्वार्थ और शोषण में फंसा है उसकी तुलना किसी भी राज्य की सामाजिक बनावट से नहीं हो सकती है। इसने दलितों पर अत्याचार के ऐसे कारनामे किए हैं जिसे इतिहास में शायद ही कभी भुलाया जा सके।

कोढ़ में खुजली की तरह सांप्रदायिकता भी अब इसमें घुस आई है। देश की समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। शोषण और बेरोजगारी, गरीबी तथा बीमारी से ध्यान हटाने का इससे अच्छा उपाय अभी की सरकार को नज़र नहीं आ रहा है।

ठेकेदारी और भ्रष्ट तंत्र के सहारे पैसा कमाने वाला वर्ग इसका नेतृत्व कर रहा है। वह जातिवादी है और सांप्रदायिक भी। इसे राजनीति और नौकरशाही का संरक्षण मिला हुआ है। यह अपनी सुविधा से कभी जेडीयू, कभी आरजेडी और कभी बीजेपी में चला जाता है। हिंदुत्व इन्हीं शक्तियों को इक_ा कर रहा है।

बिहार में आज नई चुनौतियां हैं। सांप्रदायकिता से नीतीश लड़ते हैं या हथियार डालते हैं, यह देखना है। वे बिहार को विशेष दर्जा दिला पाते हैं या नहीं वे राज्य की आर्थिक स्थिति सुधार पाते हैं या नहीं। अपने नेताओं के नेतृत्व में बिहार सालों पीछे जा रहा है।

 

दिल्ली लाए गए लालू

राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को पुलिस पहरे में ट्रेन से नई दिल्ली के आल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साईसेज में विशेष इलाज के लिए 28 मार्च को एडमिट किया गया।

लालू इस समय 71 साल के हैं और 23 दिसंबर से बिरसा मुंडा जेल में हैं। उनके स्वस्थ्य की समुचित देखभाल के लिए उन्हें रांची में राजेंद्र इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साईसेज में 17 मार्च को दाखिल किया गया था। लालू डायबिटीज, ब्लडप्रेशर किडनी इंफेक्शन और हाई क्रिएटिनिनि लेवेल की शिकायत है।

लालू प्रसाद पर मुख्यमंत्री रहते हुए चारा घोटाला कांड के आरोप रहे हैं। उन्हें चारा घोटाले के चार मामलों में 2013 से सीबीआई की विशेष अदालत ने सजाएं दी हैं। अभी हाल उन्हेंं 14 साल की सजा दुमका टेजरी मामले पर सुनाई गईं थी। हालांक अदालत ने कहा है कि उन्होंने पैसे नहीं लिए। उनकी जमानत याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट को छह अप्रैल को सुनवाई करनी है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमों के बीच पहले बिहार चुनाव के समय महागठबंधन बना था। मुख्यमंत्री के उस गठबंधन को तोड़ कर भाजपा के साथ जाने से लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें अब बढ़ गई हैं। उनके परिवार के हर सदस्य पर केस हैं और उनकी पत्नी और बच्चों को सरकारी एजंसियां बुला कर पूछताछ करती रहती हैं। लालू प्रसाद हमेशा बहुजनों में एकता और सामाजिक न्याय की बात करते रहे हैं।