
कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कालेज में अब सब कुछ पहले की तरह ही चलने लगा है. वही भीड़-भाड़, वही दर्द से कराहते चेहरे और वही भागमभाग, लेकिन पिछले दिनों समाजवादी सत्ता और उसकी पुलिस ने मिल-जुल कर जो अमानवीय, बर्बरतापूर्ण और अलोकतांत्रिक तांडव मचाया था उसकी अनुगूंज अब भी इस मेडिकल कालेज के गलियारों में सुनी जा रही है. सिर्फ कानपुर ही नहीं, इसका दर्द समूचे उत्तर प्रदेश को झेलना पड़ा और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुल 69 लोगों को इस कारण अपनी जान गंवानी पड़ी.
कानपुर का वाकया उत्तर प्रदेश सरकार के अक्षम नेतृत्व, चहेतों के प्रति अविवेकपूर्ण पक्षपात, परिस्थितियों के आकलन में बार-बार होने वाली चूक और समाजवादी नेताओं की दंभपूर्ण सोच के कारण हुआ. अन्यथा कानपुर में 28 फरवरी की जिस घटना के कारण सात दिन तक समूचे उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं अस्त-व्यस्त रहीं उसे बहुत छोटे-से प्रयास से तत्काल सुलझाया जा सकता था. मेडिकल कालेज के बाहर जूनियर डॉक्टरों और विधायक इरफान सोलंकी के बीच जो विवाद हुआ था अगर स्थानीय पुलिस उस विवाद में तार्किक और व्यावहारिक रवैया अपनाती तो निश्चित रूप से कुछ देर में ही बात खत्म हो जाती, लेकिन सत्ता का नशा सिर पर चढ़ाए विधायक इरफान सोलंकी ने इसे अपनी शान में गुस्ताखी मान लिया और रही-सही कसर कानपुर के स्वनामधन्य एसएसपी यशस्वी यादव ने पूरी कर दी. आनन-फानन में पुलिस ने मेडिकल कालेज के अंदर घुस कर अपने शौर्य और पराक्रम का जो परिचय दिया उसके कारण चार सौ से ज्यादा लोग घायल हुए और गंभीर रूप से घायल दो दर्जन से ज्यादा भावी डाक्टरों को अपना इलाज भी करवाना पड़ा. और इनमें से दो तो ऐसे हैं कि जिनके जख्म भरने में अब भी काफी समय लगेगा. विधायक का गुस्सा और पुलिस का तांडव इसके बाद भी स्थिति को लगातार बिगाड़ता रहा. विधायक की ओर से झूठी एफआईआर लिखाई गई. मेडिकल छात्रों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराए गए. विधायक के गंभीर रूप से घायल होने के फर्जी रिकार्ड बनाए गए और विधायक ने मेडिकल छात्रों की धरपकड़ के बाद सफाई दी कि वे तो एक बुजुर्ग और मेडिकल छात्रों के बीच हुए विवाद को सांप्रदायिक होने से रोकने के लिए बीच-बचाव करने आए थे. उन्होंने छात्रो पर अपने गनर की कारबाइन छीनने और खुद पर जानलेवा हमला करने जैसे आरोप भी लगाए. बात यहीं खत्म नहीं हुई. पुलिस ज्यादती के खिलाफ जब छात्रों ने रिपोर्ट लिखाने का प्रयास किया तो पुलिस ने उससे भी इनकार कर दिया. अगली सुबह छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करना चाहा तो उसकी भी इजाजत नहीं दी गई और नतीजा जूनियर डाक्टरों की हड़ताल के रूप में सामने आया.
छात्र रिपोर्ट लिखाने की मांग करते रहे. मगर विधायक और पुलिस मामले को झूठी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर उलझाते रहे, फिर मेडिकल कालेज के डाक्टरों सहित सूबे के सभी मेडिकल कालेजों में हड़ताल फैल गई और पहली बार मेडिकल कालेज की हड़ताल के समर्थन में आईएमए की पहल के बाद सारे निजी डाक्टर भी हड़ताल पर चले गए. इस हड़ताल का सीधा असर गरीब मरीजों पर पड़ा और मेडिकल कालेजों में इलाज के अभाव में मरीज दम तोड़ने लगे. लेकिन सूबे की समाजवादी सरकार लोहिया जी के आर्दशों और सिद्धांतों को ताक पर रख कर अपने विधायक और यशस्वी यादव के बचाव में ही जुटी रही. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि वे मामले की जांच करांएगे और दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा. फिर उन्होंने विधायक को पूछताछ के लिए अपने पास बुलाने की औपचारिकता भी पूरी की. मगर इस बीच पेट्रोल पंप के सीसीटीवी फुटेज की खबर ने विधायक और पुलिस दोनों के होश उड़ा दिए क्योंकि यह एक ऐसा सबूत था जिससे सरकारी थ्योरी की पूरी कलई खुल सकती थी. लेकिन पुलिस ने यहां भी अपना माल दिखाया और फुटेज में से अपने खिलाफ जाने वाले हिस्सों को एडिट कर दिया.
इधर हड़ताल बढ़ती जा रही थी और अस्पताल खाली होते जा रहे थे. मगर सरकार टस से मस नहीं हो रही थी और पुलिस के दमनकारी कदम बढ़ते जा रहे थे. उसने आईएमए अध्यक्ष आरती लाल चंदानी के खिलाफ भी मुकदमा लिखा दिया और डाक्टरों का दमन बंद नहीं किया. अंततः जब मौतों का आंकड़ा 40 से ऊपर पहुंच गया तो इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को तलब कर लिया और पूछा कि उसने हड़ताल खत्म करने के लिए अब तक क्या किया. अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए कानपुर के पुलिस अधिकारियों को तत्काल हटाने और एक न्यायिक आयोग बनाकर तीन सप्ताह में जांच पूरी कराने का निर्देश दिया.