बर्बाद किसानों की कौन सुने?

अपनी रबी की फ़सलों को बर्बाद देखकर किसान देवेंद्र गंगवार द्रवित होकर हाथ जोडक़र आँखों में आँसू भरे भरभराई आँखों से बोले- ‘हे भगवान ये कौन से पाप की सज़ा दी है। सब बर्बाद हो गया।’ प्रदेश में ऐसे लाखों किसान हैं, जिनकी हालत देवेंद्र गंगवार जैसी है। जालिम नगला के किसान नत्थू लाल की दो एकड़ गेहूँ की फ़सल बर्बाद हो गयी। नत्थू लाल उदास होकर कहते हैं कि उनकी लगभग 1.5 लाख रुपये की हानि हुई है। यह हाल केवल उत्तर प्रदेश का ही नहीं है, उत्तर प्रदेश की तरह देश के कई अन्य प्रदेशों में भी बेमौसम वर्षा एवं ओलावृष्टि से लाखों किसान बर्बाद हो चुके हैं। कुछ किसानों ने हाथ जोडक़र सरकार से विनती की है कि वह उनकी मदद करे। देश के किसानों को चिन्ता है कि वे अपना ऋण कैसे चुकाएँगे एवं परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे। किसान चाहते हैं कि सरकार उन्हें उचित मुआवज़ा दे एवं जिन किसानों का फ़सल बीमा है उन्हें रबी की फ़सल बर्बाद होने से हुई हानि के एवज़ में बीमा राशि मिलनी चाहिए। किसान राम प्रसाद कहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसानों का दर्द समझते हुए उन्हें उचित मुआवज़ा देने की घोषणा करें, ताकि किसानों के आँसू पुछ सकें। रामवीर किसान कहते हैं कि उनके चार बीघा गेहूँ बर्बाद हो गये। अब उन्हें खाने तक के लिए गेहूँ ख़रीदने पड़ेंगे। यह माना कि प्राकृतिक आपदाओं को रोकना किसी के वश की बात नहीं है, मगर सरकार को चाहिए कि वो किसानों को मुआवज़ा दे। देश भर के किसानों से सरकारों को जब बड़ी राशि आयकर के माध्यम से मिलती है, तो सरकार का यह दायित्व बनता है कि वो किसानों के बारे में सोचे। किसान हमेशा ही घाटे में रहते हैं। किसानों को न तो उचित मूल्य उनकी फ़सलों का मिलता है तथा न ही आपदा के समय में उनके साथ कोई खड़ा होना चाहता है। सरकारी सूत्रों ने बताया है कि नुक़सान का मुआयना किया जा रहा है। नुक़सान के आधार पर मुआवज़ा राशि  वितरित की जाएगी। प्रदेश के सभी प्रभावित जनपदों की तहसीलों में प्रभावित गाँवों के किसानों की फ़सलों की क्षति का आकलन नियुक्त किये गये सर्वेक्षण दलों द्वारा किया जाएगा। जैसे ही सर्वे पूरे होंगे, किसानों को उनके नुक़सान के एवज़ में मुआवज़ा दिया जाएगा। किसान हरिओम का कहना है कि अधिकारी सर्वे के नाम पर केवल खानापूर्ति करते हैं। अधिकारियों के पास जिनकी सिफ़ारिश ग्राम प्रधानों एवं पंचायत सदस्यों द्वारा जाती है, उन्हें थोड़ा-बहुत मुआवज़ा मिल जाता है, जिनकी सिफ़ारिश नहीं होती, उन्हें कुछ हाथ नहीं लग पाता। इस काम में भी दलाली का खुला खेल चलता है किसान राजेंद्र कहते हैं कि मुआवज़ा देने में सरकार को कुछ सोचने की आवश्यकता ही नहीं है, उसे इस काम में सीधा-सीधा तरीक़ा यह अपनाना चाहिए कि जिसके जितने खेत में रबी की फ़सल बर्बाद हुई हो, उसे उस फ़सल की एमएसपी के आधार पर मुआवज़ा सीधे बैंक अकांउट में भेज देना चाहिए। मान लीजिए मेरी 10 बीघा गेहूँ की फ़सल बर्बाद हुई, तो इस आधार पर प्रति बीघा अनुमानित गेहूँ 5 कुंतल निकलता। इस आधार पर मेरे 10 बीघा खेत में 50 कुंतल गेहूँ निकलना था, जो कि कम-से-कम 2,000 रुपये प्रति कुंतल बिकता। इस आधार पर सरकार को 1,00,000 रुपये मुझे देना चाहिए। कुछ किसानों का कहना है कि सरकार को कम-से-कम 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों को मुआवज़ा देना चाहिए। कुछ किसानों का कहना है कि मौसम बिगडऩे के चलते फ़सलें नष्ट होने से केवल खाद्यान्न का नुक़सान ही नहीं हुआ है, चारा भी नष्ट हुआ है। इससे अधिकारियों को महीनों के सर्वे की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। बेमौसम एवं ओलावृष्टि से केवल गेहूँ की ही फ़सल नष्ट नहीं हुई है, सरसों, जौ, चना, मसूर, अलसी, आलू, मिर्च और अन्य फ़सलें भी बर्बाद हुई हैं। इसके अतिरिक्त फलों की फ़सलों को भी बड़ी हानि हुई है। सरकार को उन सब फ़सलों का मुआवज़ा उनके तय भाव के हिसाब से किसानों को देना चाहिए। पूरे देश में अब तक किसानों को कितनी हानि हुई है, इसका आकलन अभी तक केंद्र सरकार ने नहीं कराया है। अनुमानित तौर पर कुछ जानकार कह रहे हैं कि 2,00,000 से 2,50,000 करोड़ रुपये की हानि इस बेमौसम की वर्षा एवं ओलावृष्टि से किसानों को हुई है। कृषि के जानकार जयवीर आर्य कहते हैं कि अगर किसी पूँजीपति को हानि होती है, तो सरकार उन्हें कई तरह से लाभ पहुँचाती है, यहाँ तक कि उनका ऋण माफ़ कर देती है। अब देश के अन्नदाताओं पर मुसीबत आयी है। अत: सरकार को अन्नदाताओं को मुआवज़ा देने के अतिरिक्त उनका ऋण माफ़ करना चाहिए।