बदल रहा है खादी ग्रामोद्योग

शुल्क बढ़ा; लेकिन आधुनिक मशीनों से दिया जा रहा प्रशिक्षण, सुविधाएँ भी हुईं बेहतर

ग्रामीण विकास के बग़ैर भारत के समग्र विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसी सोच से सन् 1956 में तब की केंद्र सरकार ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना की थी। खादी और ग्रामोद्योग आयोग यूँ तो दो अलग-अलग संस्थाओं की एक मिलीजुली स्वायत्त और स्वरोज़गार को बढ़ावा देने वाली संस्था है, जिसकी देश भर में कई शाखाएँ हैं। इन शाखाओं को बोर्ड कहा जाता है, जो ग्रामीण और शहरी लोगों को बहुउद्देश्यीय प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्वरोज़गार को बढ़ावा देने वाले इस खादी और ग्रामोद्योग आयोग को केंद्र सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय तहत रखा गया है।

हालाँकि इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि क़रीब 66 साल बाद भी खादी और ग्रामोद्योग को उतना बढ़ावा नहीं मिल सका, जिसकी कल्पना कभी महात्मा गाँधी और ग्रामीण विकास की सोच रखने वाले नेताओं ने की थी। लेकिन फिर भी पूरे देश में अब तक केंद्र और राज्यों में शासन करने वाली सरकारों और कुछ कर्मठ अधिकारियों व कर्मचारियों की लगन व मेहनत से खादी और ग्रामोद्योग आयोग आज एक बेहतर मकाम पर है।

दिल्ली के राजघाट पर स्थित खादी और ग्रामोद्योग की अगर बात करें, तो सन् 2006 आते-आते इसके कई प्रशिक्षण केंद्र क़रीब-क़रीब बन्द होने की हालत में थे। उस समय इस केंद्र के तत्कालीन निदेशक अमर सिंह ने अपने प्रयासों से इसे जीवंत करने की जो कोशिश की, उसे आगे बढ़ाने का काम अब इस केंद्र के मौज़ूदा निदेशक बलराम दीक्षित कर रहे हैं।

क़ाबिले-तारीफ़ बात यह है कि आज इस केंद्र का कायाकल्प हो चुका है और यहाँ कई नये प्रशिक्षण जुड़ चुके हैं। वर्तमान में यहाँ बेसिक कम्प्यूटर कोर्स, कम्प्यूटर (हार्डवेयर एवं नेटवर्क रिपेयरिंग), मोबाइल रिपेयरिंग से लेकर ब्यूटिशियन, मेकअप आर्टिस्ट, सिलाई-कु़ाई, हेयर स्टाइलिंग, कोस्मेटिक कोर्स, एडवांस फैशन डिजाइन कोर्स, फैशन डिजाइनिंग सहित फुटवियर डिजाइन मेकिंग सिखाने, मधुमक्खी पालन करने और प्लंबिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा बेकरी बनाना, फल प्रशोधन, पापड़ बड़ी बनाना, परफ्यूम / एसश्यिल ऑयल्स बनाने, मसाला बनाने, खाद्य तेल तैयार करने, अगरबत्ती और मोमबत्ती बनाने, नहाने और कपड़े धोने के साबुन व सर्फ बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके अलावा भी यहाँ कई प्रशिक्षण दिये जाते हैं और भविष्य में इनमें और इज़ाफ़े की उम्मीद है।

पहले यहाँ मसाला, मोमबत्ती, अगरबत्ती, सिलाई, मेकअप और मधुमक्खी पालन जैसे प्रशिक्षण दिये जाते थे। इन दिनों प्रशिक्षण के लिए न्यूनतम उम्र 16 साल की होनी चाहिए।

एक सप्ताह से एक महीने वाले प्रशिक्षणों में प्रत्येक प्रशिक्षण का शुल्क (कोर्सेज की फीस)सामान्य जाति के पुरुषों के लिए 1,534 रुपये है। इन्हीं प्रशिक्षणों के लिए महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और दिव्यांगों के लिए शुल्क 944 रुपये है। वहीं तीन महीने वाले प्रशिक्षणों में प्रत्येक प्रशिक्षण का शुल्क सामान्य वर्ग के पुरुषों के लिए 3,894 रुपये है। इन्हीं प्रशिक्षण कोर्सेज के लिए महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और दिव्यांगों के लिए शुल्क 2,124 रुपये है। इसके अतिरिक्त प्रवेश फॉर्म लेने के लिए इच्छुक अभ्यर्थी को 236 रुपये देने होंगे।

हालाँकि अब से क़रीब 10-11 साल पहले तक सामान्य वर्ग के पुरुषों के लिए शुल्क न के बराबर था। वहीं महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और दिव्यांगों को प्रशिक्षण लेने के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता था। वहीं उस दौरान प्रशिक्षण लेने वालों को प्रशिक्षण के दौरान ज़रूरी कच्चा माल खादी और ग्रामोद्योग आयोग कराता था; लेकिन अब कच्चा माल प्रशिक्षण लेने वालों को लाना पड़ता है।

सन् 2014 से शुल्क में धीरे-धीरे वृद्धि शुरू हुई, जो अब काफ़ी हो चुकी है। हालाँकि अब सुविधा यह है कि अगर प्रशिक्षण लेने का कोई इच्छुक अभ्यर्थी एक साथ शुल्क नहीं दे सकता, तो वह क़िस्तों में भी उसे दे सकता है। वहीं पहले शुल्क सिर्फ़ नक़द जमा करना होता था, जबकि अब ऑनलाइन भुगतान ऐप के ज़रिये भी शुल्क जमा किया जा सकता है।

हालाँकि इसके पीछे खादी और ग्रामोद्योग आयोग की सोच यह भी हो सकती है कि पहले जब कच्चा माल आयोग की तरफ़ से उपलब्ध कराया जाता था और प्रशिक्षण की शुल्क नहीं लिया जाता था, तब लोगों में प्रशिक्षण के प्रति ख़ास रुचि होती थी। क्योंकि उन्हें उसकी क़द्र नहीं होती थी। लेकिन अब जब वे उस पर पैसा ख़र्च करते हैं, तो अपने कच्चे माल से बेहतर-से-बेहतर उत्पाद बनाने का प्रयास करते हैं।