बढ़ते जा रहे ठगी के मामले, बेरोज़गारों से लेकर आम लोग तक हो रहे ठगी का शिकार

कोई युवा बेरोज़गार हो, तो उसे दिन-रात एक ही चिन्ता सताती रहती है कि किसी भी तरह से उसकी नौकरी लग जाए। लेकिन दुर्भाग्य से नौकरी पाने की इच्छा रखने वाले बेरोज़गार युवाओं में बड़ी संख्या में ठगी का शिकार हो जाते हैं। ठगों द्वारा नौकरी दिलाने के झाँसे में आने वालों में विदेशों में नौकरी पाने के नाम पर ठगी का ज़्यादा युवा शिकार होते हैं।

दुर्भाग्य से न तो बेरोज़गारों से ठगी करने वालों के आँकड़े किसी के पास होते हैं और न ही इन ठगों में से अधिकतर के असली नाम और असली पते ही पुलिस और क्राइम ब्रांच के हाथ लग पाते हैं। नतीजतन ऐसे ठगों पर कार्रवाई भी ठीक से नहीं हो पाती। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि बेरोज़गार युवाओं में हर 11वाँ युवा ठगी का शिकार हो जाता है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र से नौकरी की तलाश में शहर आने वाला हर छठा-सातवाँ युवा ठगी का शिकार हो जाता है। हैरानी की बात है कि बेरोज़गार युवाओं से ठगी करने वाले ठग ख़ुद को बड़ी-बड़ी कम्पनियों से ताल्लुक़ रखने वाले एजेंट (अभिकर्ता) अथवा कर्मचारी बताते हैं और कई बार कुछ ठग मिलकर फ़र्ज़ी प्लेसमेंट सेंटर से लेकर फ़र्ज़ी कम्पनियाँ तक बना लेते हैं, जिनके जाल में बेरोज़गार युवा आसानी से ठगी का शिकार हो जाते हैं। हर महीने बीसियों मामले बेरोज़गारों से ठगी के सामने आते हैं। बेरोज़गारों के अतिरिक्त अच्छे ब्याज का झाँसा देकर भोले-भाले लोगों से ठगी के मामले भी ख़ूब सामने आते रहते हैं।

हाल ही में बिहार में इसी तरह अच्छा ब्याज देने के नाम पर 321 निधि कम्पनियों द्वारा नौकरी देने के नाम पर भोले-भाले लोगों से ठगी के मामले सामने आये हैं। अब तक प्राप्त अनुमानित डाटा बताता है कि इन कम्पनियों ने भोले-भाले लोगों से फंड जमा करने के नाम पर अब तक 200 करोड़ रुपये से अधिक रुपये रख लिये हैं। दो साल पहले भी बिहार के 34 जिलों में 342 निधि कंपनियों द्वारा लोगों के 250 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि जमा कराये जाने का मामला सामने आया था। दरअसल पूरे बिहार राज्य में ऐसी निधि कम्पनियों का जाल फैला हुआ है। जैसे ही केंद्र सरकार के संज्ञान में यह बात आयी, उसने बिहार सरकार को इन कम्पनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। केंद्र सरकार के आदेश के बाद राज्य सरकार के वित्त विभाग ने ज़िलाधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि वे अपने-अपने ज़िले की निधि कम्पनियों का सर्वे करके उन पर उचित कार्रवाई करें।

बता दें कि किसी भी निधि कम्पनी को स्थापित करने के लिए उसका निबंधन अर्थात् नियमों के तहत एक प्रकार का रजिस्ट्रेशन कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) में ऑनलाइन होता है। इस रजिस्ट्रेशन के लिए निधि कम्पनी बनाने वालों को निधि (संशोधन) अधिनियम-2019 के तहत एनडीएच-4 फॉर्म भरना अनिवार्य होता है, जो एक प्रकार का घोषणा-पत्र है। एनडीएच-4 फॉर्म इसलिए भरना होता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो कम्पनी बनायी जा रही है, वो असली तरीक़े से सही लोगों द्वारा बनायी जा रही है और कम्पनी केंद्र सरकार के नियम-क़ानूनों का अक्षरश: पालन कर रही है और करती रहेगी। एनडीएच-4 फॉर्म में कम्पनी के सभी संचालकों का सही नाम और सही पता दर्ज किया जाता है, जिससे ये लोग कम्पनी के ज़रिये कोई ठगी अथवा हेराफेरी न कर सकें। ऐसे में जिन लोगों ने बग़ैर एनड़ीएच-4 फॉर्म भरे बग़ैर निधि कम्पनियाँ स्थापित कर रखी हैं, उन्हें लोगों का पैसा जमा करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन बिहार में लगभग 321 कम्पनियों का नाम सामने आया है, जिन्होंने एनडीएच-4 फॉर्म नहीं भरे हैं, लेकिन बिना किसी डर के क़ानून और केंद्र सरकार के निर्देशों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से भोले-भाले लोगों का पैसा जमा कर रही हैं। इसके अतिरिक्त निधि कम्पनी शुरू करने के लिए न्यूनतम 10 लाख रुपये की सुरक्षा राशि कम्पनी के पास होनी चाहिए और एक साल में कम्पनी के 200 सदस्य होने चाहिए।

भले ही इन कम्पनियों को भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती; लेकिन इन्हें केंद्र सरकार के कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के लाइसेंस के बग़ैर भी नहीं चलाया जा सकता। साथ ही मंत्रालय ही इन कम्पनियों को संचालित करने के निर्देश जारी करता है। लेकिन बिहार में चल रही 321 निधि कम्पनियों ने न तो इस मंत्रालय से लाइसेंस लिया है और न ही इन्होंने मंत्रालय से कोई निर्देश मिला है। ये निधि कम्पनियाँ स्थायी निधि, लाभ निधि, म्युचुअल बेनिफिट फंड और म्यूचुअल बेनिफिट का झाँसा लोगों को देकर ठगी के नये-नये रास्ते निकालती रहती हैं। हालाँकि ध्यान रहे कि ऐसी कम्पनियाँ केवल शेयरधारकों और कम्पनी के सदस्यों के बीच ही लेन-देन का अधिकार रखती हैं। इन कम्पनियों को आम लोगों से सीधे पैसे लेने का अधिकार ही नहीं होता।

हैरानी की बात यह है कि इन कम्पनियों में से अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित हैं। भोले-भाले लोगों से अधिक धन जमा कराने के लिए ये अवैध निधि कम्पनियाँ ग्रामीण क्षेत्रों के ही पढ़े-लिखे युवाओं को कमीशन पर रखती हैं और उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करती हैं कि वे लोगों से अधिक-से-अधिक पैसा जमा कराएँ, ताकि उनका कमीशन ज़्यादा बन सके। कमीशन के लालच में फँसे ये युवा बिना किसी तय वेतन के दिन-रात लोगों को यही समझाने में लगे रहते हैं कि किस प्रकार उनकी कम्पनी लोगों का पैसा जमा करके कम समय में उस पर मोटा ब्याज दे रही है। इन कम्पनियों में लगे ये युवा अपने रिश्तेदारों, पास-पड़ोसियों, अपने घर के लोगों और जान-पहचान वालों का ही पैसा जमा कराते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इन अवैध निधि कम्पनियों की नीयत के बारे में न तो इनमें नौकरी करने वाले युवा जानते हैं और न ही वे भोले-भाले लोग, जो इन युवाओं के कहने और समझाने पर अपनी ज़रूरतों को रोककर पैसा इकट्ठा करने की सोच से इन कम्पनियों में पैसा जमा करते जाते हैं। इन निधि कम्पनियों ने छोटी-से-छोटी राशि जमा करने तक की लुभावनी योजनाएँ बनायी होती हैं, जो कम आय वाले लोगों को भी लालच में फँसाकर पैसे जमा करने के लिए प्रेरित करती हैं। पिछले कुछ दशकों में अगर ऐसी कम्पनियों के रिकॉर्ड जाँचने पर पता चलता है कि देश में ऐसी कई दर्ज़न कम्पनियाँ लोगों का पैसा लेकर भाग चुकी हैं। बिहार में ही बक्सर, समस्तीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर ज़िलों में ऐसी ही कई फ़र्ज़ी कम्पनियाँ भोले-भाले लोगों की कई-कई वर्षों की जमा पूँजी लेकर भाग चुकी हैं।

हाल ही में केंद्र सरकार के संज्ञान में आयीं 321 फ़र्ज़ी निधि कम्पनियों में से सबसे अधिक 85 कम्पनियाँ अकेले पटना ज़िले में स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त समस्तीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर में अधिक कम्पनियाँ स्थापित हैं। बिहार में खुली इन फ़र्ज़ी निधि कम्पनियों का मामला केवल केंद्र सरकार के ही संज्ञान में नहीं आया है, बल्कि पटना उच्च न्यायालय ने भी इसे संज्ञान में लिया है। पटना उच्च न्यायालय इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामले के सचिव से जवाब तलब भी कर चुका है।

ग़ौरतलब है कि इन दिनों पूरी दुनिया की अर्थ-व्यवस्था डाँवाडोल है। मंदी की आशंका पूरी दुनिया को डराये हुए हैं। इसी आशंका से बेरोज़गारी का $खतरा और मँडराने लगा है। कोरोना महामारी के दौरान यह माना जा रहा था कि जल्द ही बाज़ार खुलेंगे और बेरोज़गार हुए लोगों को बेरोज़गार मिल सकेगा। लेकिन हाल ही में ट्विटर, फेसबुक और कई बड़ी कम्पनियों द्वारा अपने कर्मचारियों की गयी छँटनी से यह साफ़ हो गया है कि बेरोज़गार बढऩे की जगह घट रहे हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कोरोना महामारी के समय से अब तक नये बेरोज़गार सृजित नहीं हुए हैं। लेकिन इनकी रफ़्तार काफ़ी धीमी है, जबकि बेरोज़गारी बढऩे के आँकड़े तेज़ी से बढ़ रहे हैं। मौज़ूदा समय में विकट वैश्विक बेरोज़गारी दर है।

संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में पूरी दुनिया में लगभग 47 करोड़ लोग या तो बेरोज़गार हैं या फिर उनके पास ज़रूरतें पूरी करने भर की आय नहीं है। आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले एक दशक से बेरोज़गारी दर स्थिर है; लेकिन बेरोज़गारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सुस्त होती अर्थ-व्यवस्था के चलते बेरोज़गारों की संख्या बढ़ती जा रही है। ध्यान रहे साल 2019 में दुनिया भर में बेरोज़गारों की संख्या लगभग 18.80 करोड़ थी।

बेरोज़गारों से ठगी होने के मामले ज़्यादा भी इसलिए ही हैं, क्योंकि कोई भी बेरोज़गार युवा किसी भी हालत में एक ऐसी नौकरी चाहता है, जो उसका और उसके परिवार का भरण-पोषण करने के अतिरिक्त उसके जीवन स्तर को बेहतर बना सके। लेकिन बेरोज़गार दिलाने का झाँसा देकर कुछ ठग ऐसे युवाओं से ठगी कर लेते हैं, जिसके चलते कई युवा तो आत्महत्या तक कर लेते हैं। ठगी का शिकार होने वालों में ग्रामीण क्षेत्रों के युवा और युवतियों की संख्या काफ़ी अधिक होती है। कई युवा तो नौकरी की आस में अपने घर की चल-अचल सम्पत्ति तक बेच देते हैं। किसी भी प्रकार ऐसे ठगों पर रोक लगनी ही चाहिए।

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)