आख़िर में कहाँ चूक हो रही है कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण हर साल अक्टूबर महीने में विकराल रूप लेता है और जनवरी महीने के अन्त तक चलता है। इसके कारण बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को साँस लेने में परेशानी के साथ-साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक़्क़तें हो रही हैं।
सन् 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के मुताबिक मानक तय किये थे। भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण को समय रहते नहीं रोका गया, तो आने वाले दिनों में शहरों, ख़ासकर दिल्ली-एनसीआर में दिक़्क़तें और बढ़ेंगी। डब्ल्यूएचओ के चेताने के बाद से अब तक इन 16 वर्षों में देश में वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले साधन भी बढ़े हैं। तंत्र की नाकामी का नतीजा यह है कि शहरों में तो ट्रैफिक पुलिस पूछताछ कर वाहनों की जाँच भी करती है। लेकिन गाँवों में तो 20 से 25 साल पुराने वाहन धड़ल्ले से चल रहे हैं।
वायु प्रदूषण के जानकार डॉ. दिव्यांग देव गोस्वामी का कहना है कि वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार तब हरकत में आती है, जब प्रदूषण से बढ़ जाता है और लोग बीमार पडऩे लगते हैं। हो-हल्ला मचने लगता है। तब शासन से प्रशासन तक अपनी ज़िम्मेदारी से बचाव के लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने लगने हैं। व्यवस्था ठीक नहीं होती और स्थिति जस-की-तस रहती है और लोगों को प्रदूषित हवा में साँस लेने को मजबूर होना पड़ता है।
डॉ. दिव्यांग देव का मानना है कि पराली ही अकेली वायु प्रदूषण को लेकर ज़िम्मेदार नहीं है। अन्य साधन भी ज़िम्मेदार हैं; जिसको सरकार अक्सर नज़रअंदाज़ करती है। कई दशक पुराने वाहन जिन पर रोक है, वो धड़ल्ले से सडक़ों पर ज़हरीला धुआँ छोड़ते हुए दौड़ रहे हैं। इन पर क़ानूनी तौर पर रोक लगनी चाहिए।