धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के न रहने से किस दिशा में जाएगी समाजवाद की राजनीति?
राजनीति में लोहिया की राजनीतिक विचारधारा और योजना को लाने वाले धरती पुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव महज़ एक नेता भर नहीं थे। क़रीब 55 साल के राजनीतिक सफ़र में उन्होंने राजनीति के कई मुहावरे गढ़े और राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति में उनका दख़ल रहा। राज्य और केंद्र की राजनीति में मुलायम सिंह इतने लोकप्रिय रहे कि अपने आप में राजनीति का एक कोष थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में इन दशकों में कई नये प्रतिमान स्थापित किये।
धुर-विरोधी कांशीराम और मायावती के साथ मिलकर सरकार चलाने वाले मुलायम सिंह को सन् 1989 में भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने में सहयोग दिया। मुलायम सिंह मिलनसार थे। उम्र भर आरएसएस की विचारधारा के विरोधी रहने के बावजूद आरएसएस के कई नेता उनसे मिलते-मिलाते रहे।
मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक थे और कुश्ती के जबरदस्त शौक़ीन थे। अपने समर्थकों में नेता जी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह के जाने से निश्चित ही देश में सामजवाद की राजनीति को बड़ा झटका लगा है। काफ़ी दिन बीमार रहने के बाद 10 अक्टूबर को जब उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अन्तिम साँस ली, तो उनके साथ राजनीति की एक ऐसी शख़्सियत भी चली गयी, जिसने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक की राजनीति में दख़ल रखा और कई मौक़े पर विपक्षी एकता के सूत्रधार भी बने। भाजपा के बड़े नेताओं से लेकर कांग्रेस और दक्षिण तक के राजनीतिक दलों के नेताओं से उनका सीधा सम्पर्क था।
नेता जी का जन्म 22 नवंबर, 1939 को इटावा ज़िले के सैफई में हुआ था। राजनीति शास्त्र में एमए की पढ़ाई के बाद वह सन् 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के जसवंत नगर से विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुँचे। इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। मुलायम आठ बार विधायक, जबकि सात बार लोकसभा सदस्य चुने गये। सन् 1996 में उन्हें यूनाइटेड फ्रंट गठबंधन की सरकार में रक्षा मंत्री बनने का भी अवसर मिला। सन् 1977 में वह पहली बार जनता पार्टी से उत्तर प्रदेश के मंत्री बने, जबकि सन् 1989 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गये। सन् 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की और सन् 1993 में बसपा के साथ मिलकर सरकार बनायी। इसके बाद सन् 1993 में और फिर सन् 2003 में वह दूसरी और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। पक्ष-विपक्ष में उन्हें राजनीति का माहिर खिलाड़ी समझा जाता था और संसद में उनकी तकरीरों को महत्त्व दिया जाता था। कुल मिलाकर मुलायम का राजनीतिक करियर बेहतरीन रहा। सन् 2012 में उन्होंने अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया और सन् 2017 में अखिलेश के ही ऊपर डालकर उन्हें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बनने दिया; लेकिन मुलायम सिंह अन्तिम साँस तक संरक्षक की भूमिका में रहे। वह अन्तिम समय तक भी लोकसभा में मैनपुरी सीट से सांसद थे।