पूरे आसमां की तलाश करती नारी

‘अबला तेरी यही कहानी आंचल

में दूध और आंखां में पानी

मैथिलीशरण गुप्त ने ये पंक्तियां आज़ादी की लड़ाई के दौरान लिखी थी। सोच यह थी कि आज़ादी के बाद महिलाओं का जीवन बदलेगा। इसमें कुछ बदलाव तो आया हैमहिलाओं ने बहुत कुछ कर दिखाया है। पर क्या उनके प्रति पूरी दुनिया की सामाजिक सोच बदली है- इसका जायला ले रही हैं- अलका आर्य

आधी दुनिया यानी स्त्रियों की दुनिया। आधी जमीं हमारी,आधा आसमां हमारा। क्या यह हकीकत है? नहीं। कड़वी हकीकत यह है कि लैंगिक भेदभाव की वैश्विक खाई इतनी गहरी है कि बदलाव की मौजूदा दर से इसे भरने में एक सदी से भी अधिक समय लग जाएगा। विश्व आर्थिक मंच की हाल में ही जारी स्त्री-पुरुष असमानता सूचकांक रिपोर्ट-2017 आगाह करती है कि भेदभाव का यह फासला लैंगिक न्याय वाली दुनिया बनाने वाले संघर्ष को और अधिक कड़ा बना देता है।

विश्व आर्थिक मंच में शिक्षा और जेंडर विभाग की प्रमुख सादिया जाहिदी का कहना है कि बड़े देशों में असमानता कम करने की रफ्तार घटी है। स्त्री-पुरुष में असमानता विश्व स्तर पर बढ़ी है। स्त्री-पुरुष असमानता सूचकांक के 11 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। 2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस अंतर को पाटने में 83 साल लगेंगे। लेकिन नई रिपोर्ट के मुताबिक अब इसमें 100 साल यानी एक सदी लग जाएगी। यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि मौजूदा परिदृश्य के मद्देनजर महिलाओं को आर्थिक बराबरी के लिए अभी 217 साल और इंतजार करना पड़ेगा जबकि पिछले साल की रिपोर्ट में यह 170 साल आंका गया था। राजनीतिक भेदभाव दूर करने में 99 साल लगेंगे। इस रिपोर्ट के अनुसार आइसलैंड,नार्वे,फिनलैंड,रवांडा व स्वीडन की महिलाएं शीर्ष मुल्कों में हैं। जबकि यमन,पाकिस्तान,सीरिया,ईरान आखिरी पायदान पर हैं। बहरहाल भारत का जहां तक का सवाल है,वह लैंगिक असमानता में 21 पायदान नीचे आ गया है।