पाँच साल के प्रतिबन्ध से टूटी आतंक को पालने वाले संगठन की कमर
सन् 2006 में दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बने संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इण्डिया (पीएफआई) पर आख़िर नकेल डाल दी गयी। टेरर (आतंकी) फंडिंग का आरोप झेल रहे पीएफआई पर हाल के हफ़्तों में ताबड़तोड़ छापे पड़े हैं और उसके कई पदाधिकारियों को गिरफ़्तार किया गया है। पीएफआई तो तभी आशंका के घेरे में आ गया था, जब सन् 2012 में केरल में ओमन चांडी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि पीएफआई प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का दूसरा रूप है, जिस पर सन् 2006 में यूपीए सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। पीएफआई सन् 2012 में ही केंद्र सरकार और एजेंसियों के रडार पर आ गया था। अब मोदी सरकार ने पीएफआई पर शिकंजा कसते हुए संगठन को ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर पाँच साल का प्रतिबन्ध लगा दिया है।
केरल सरकार के न्यायालय को दिये हलफ़नामे में कहा गया था कि पीएफआई कार्यकर्ताओं पर हत्या के 27 मामले दर्ज हैं। बता दें जिन तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके पीएफआई अस्तित्व में आया था, वे तीनों संगठन सन् 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बने थे। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। ‘तहलका’ की जानकारी बताती है कि देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी एनआईए छापों में मिले साक्ष्यों के आधार पर राज्यों में पुलिस के ज़रिये अलग-अलग एफआईआर दर्ज करवा रही है।
दरअसल काफ़ी पहले से पीएफआई के ख़िलाफ़ एक दर्ज़न से ज़्यादा मामलों की जाँच कर रही है। वह 350 से ज़्यादा आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल कर चुकी है। पीएफआई के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले भी प्रवर्तन निदेशालय की तरफ़ से दायर किये हैं। इनकी जाँच अभी जारी है।
सरकार ने पीएफआई के ख़िलाफ़ जो कार्रवाई की है, वह यूएपीए अर्थात् ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत की है। इस क़ानून का मुख्य उद्देश्य आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है। इसके तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या संदिग्ध लोगों को चिह्नित करती है, जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं; आतंकी गतिविधि के लिए लोगों को तैयार करते हैं; या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। ऐसे मामलों में एनआईए यानी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) के पास काफ़ी शक्तियाँ हैं। इसी क़ानून के तहत पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियों और सरकार ने की है।
सरकार ने प्रतिबन्ध वाला क़दम टेरर फंडिंग मामलों में पीएफआई नेताओं पर दो दौर के बड़े देशव्यापी छापों के बाद उठाया। सरकार का कहना था कि पीएफआई कई आपराधिक आतंकी मामलों में शामिल रहा है। अभी तक की जाँच में सामने आया है कि पीएफआई के लोग बार-बार हिंसक और विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। साथ ही पीएफआई के कई संस्थापक सदस्य सिमी के नेता रहे हैं और उसका सम्बन्ध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से भी रहा है। भारत में दोनों ही संगठन प्रतिबन्धित हैं।
पीएफआई के ख़िलाफ़ देश भर में पिछले कई दिन से छापेमारी चल रही थी, जिसके बाद ये बड़ी कार्रवाई की गयी। पीएफआई पर छापेमारी के दौरान कई अहम सुबूत एजेंसियों के हाथ लगे हैं। इनमें टेरर लिंक के आरोप भी शामिल हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक पीएफआई से जुड़े 270 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। यह छापे देश के 23 राज्यों में मारे गये, जिनमें केरल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र, असम और मध्य प्रदेश भी शामिल हैं। सबसे ज़्यादा 75 लोगों को कर्नाटक से हिरासत में लिया गया। एजेंसी की तरफ़ से कहा गया है कि पीएफआई धनशोधन और विदेश से वैचारिक समर्थन प्राप्त करने के अलावा देश के अधिकारों और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा बन रहा था।