उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विकास की राह में नित नये आयाम गढऩे के प्रयास में लगे हैं। पिछले महीनों में उन्होंने ग्रामीण विकास को लेकर कई योजनाओं का शुभारम्भ किया। अब वे कई ऐसे कार्य कर रहे हैं, जिससे प्रदेश का विकास हो सके। हालाँकि उनकी योजनाओं के भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे के आरोप भी लगते रहे हैं। अब प्रदेश पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की जा रही है। हाल ही में ग़ाज़ियाबाद, आगरा तथा प्रयागराज में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की गयी है। इस प्रणाली से पुलिस को अतिरिक्त अधिकार एवं बल मिलने की आशा है।
हाल ही में मंत्रिमंडल की बैठक में इन जनपदों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के अतिरिक्त अन्य 16 प्रस्तावों को स्वीकृति सरकार ने दी। पुलिस आयुक्त प्रणाली का गठन भारतीय पुलिस अधिनियम-1861 व दंड प्रक्रिया-1973 के तहत किया जा रहा है। इसके तहत 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का प्रावधान है। अब गृह विभाग से अधिसूचना जारी होते ही आयुक्त मानकों के अनुसार इन जनपदों में अधिकारियों की तैनाती होगी। मंत्रिमंडल बैठक में निर्णय तीनों जनपदों को 3-3 क्षेत्रों में बाँटने का निर्णय लिया गया है। इसके अनुसार, प्रयागराज में 41 थाने, 14 सर्किल और 3 क्षेत्र होंगे। आगरा में 44 थाने, 14 सर्किल और 3 क्षेत्र होंगे। ग़ाज़ियाबाद में 23 थाने, 9 सर्किल और 3 क्षेत्र होंगे। शीघ्र ही सभी जनपदों को मेट्रो पोलिटन सिटी घोषित किया जाएगा। तीनों जनपदों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के उपरांत प्रदेश में पुलिस आयुक्त की संख्या सात हो गयी है।
विदित हो इसके पूर्व में योगी सरकार ने 13 जनवरी, 2020 को लखनऊ एवं नोएडा में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की थी। फिर 26 मार्च, 2021 को कानपुर एवं वाराणसी यही प्रणाली लागू की। इसी प्रकार 4 नवंबर, 2022 को लखनऊ, कानपुर एवं वाराणसी जनपदों में भी पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की गयी। इससे पूर्व इन तीनों जनपदों के ग्रामीण क्षेत्रों को इस प्रणाली से अलग रखा गया था, मगर 4 नवंबर को उन्हें भी इसके तहत जनपदों की नगरीय प्रणाली में मिला लिया गया।
पुलिस को अतिरिक्त शक्तियाँ
पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने से इन सभी जनपदों की पुलिस को अब अतिरिक्त शक्तियाँ मिल गयी हैं। अब इन जनपदों की पुलिस 15 न्यायालयी अधिकार मिलने से वह और बलशाली हो गयी है। अब पुलिस गुंडों और माफ़िया पर गैंगस्टर जैसी धारा के तहत स्वयं कार्रवाई कर सकेगी। अब पुलिस प्रदेश में अशान्ति होने पर सीधे दण्डात्मक एवं निरोधात्मक कार्रवाई का त्वरित निर्णय ले सकेगी। भाजपा कार्यकर्ता अमन ने कहा कि सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि अपराध पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। इससे आम लोगों की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होगी तथा प्रदेश में अपराध कम होंगे तथा अपराधियों को अपने विवेक एवं स्वनिर्णय से दण्डित कर सकेगी। अब तक सभी प्रकार के आपराधिक मामले ज़िला मजिस्ट्रेट अर्थात् ज़िला न्यायालय में जाते रहे हैं। इससे ज़िला मजिस्ट्रेट के अधीन मुक़दमों की संख्या अधिक रहते हैं। इससे अपराधी लम्बे समय तक बचे रहते हैं तथा कई बार वे सुबूतों के आधार पर दण्ड प्रक्रिया से भी बच जाते हैं। न्यायालय की इस प्रक्रिया में पुलिस को भी बहुत भाग दौड़ करनी पड़ती है, जिससे सरकारी पैसे तथा समय दोनों की विकट हानि होती है। अब पुलिस को अतिरिक्त शक्तियाँ मिलने से कई लाभ मिलेंगे।
पुलिस के अधिकार
अब नयी आयुक्त प्रणाली के तहत पुलिस आयुक्त को अभी तक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास 15 अधिकार मिल गये हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि पुलिस आयुक्त के पास ज़िला मजिस्ट्रेट की तरह कई शक्तियाँ होंगी। अब तक पुलिस की रिपोर्ट पर अधिकतर मामलों में केवल मजिस्ट्रेट ही जमानत दे देते थे, मगर अब नयी प्रणाली के तहत मामले की संवेदनशीलता, गम्भीरता को जाँच-परखकर पुलिस आयुक्त कार्रवाई करने से लेकर किसी की जमानत अथवा जेल भेजने का निर्णय ले सकेंगे। इसके अतिरिक्त सीआरपीसी की धारा-107/116 के तहत गयी कार्रवाई केवल खानापूर्ति ही होती थी, जिससे नज़रबंद किये गये तथा पाबंदी लगाये गये लोग भी कई घटनाओं और अपराधों में संलिप्त रहते थे, मगर अब ऐसा नहीं हो सकेगा। अब किसी घटना में संलिप्तता सामने आने पर पूर्व में लगी पाबंदियों तथा नज़रबंदी के निर्णयों के अनुरूप कार्रवाई का निर्णय स्वयं ले सकेगी। इसी प्रकार गुंडा अधिनियम के तहत अब तक एक लम्बी प्रक्रिया होती रही है, जिस पर पुलिस को अभी तक ज़िला प्रशासन का अनुमोदन लेना होता था। मगर नयी आयुक्त प्रणाली के तहत पुलिस सीधे इस कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होगी। इसी प्रकार गैंगस्टर जैसे संगठित अपराध के ख़ात्मे के लिए गिरोहबंद अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए अब तक ज़िला अधिकारी की अनुमति पुलिस को लेनी पड़ती थी, मगर अब पुलिस आयुक्त गैंगस्टर पर सीधे कार्रवाई का पुलिस को आदेश दे सकेंगे। इसी प्रकार फायर विभाग से एनओसी का अधिकार भी ज़िला अधिकारी के पास ही होता था, मगर अब यह शक्ति पुलिस कमिश्नर के पास होगी।
इसके अतिरिक्त पशु क्रूरता के मामलों में भी पुलिस को सीधे कार्रवाई का अधिकार होगा। वहीं पुलिस के हाथों से आतिशबाज़ी व विस्फोटक सामग्री के लिए लाइसेंस देने का अधिकार वापस लिया जाएगा। अब शस्त्र लाइसेंस भी ज़िला अधिकारी द्वारा दिए जाएंगे। इसी प्रकार इन जनपदों में बार, हुक्का बार के लाइसेंस देने, सराय अधिनियम के तहत होटलों पर कार्रवाई के लिए पुलिस को अब ज़िला अधिकारी से अनुमति लेनी होगी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम-1970, विष अधिनियम-1919, अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम-1956, पुलिस (द्रोह उद्दीपन) अधिनियम-1922, पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम-1960, विस्फोटक अधिनियम-1844, कारागार अधिनियम-1894, शासकीय गुप्त बात अधिनियम-1923, विदेशियों विषयक अधिनियम-1946, ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम-1967, पुलिस अधिनियम-1861, उत्तर प्रदेश अग्निशमन सेवा अधिनियम-1944, उत्तर प्रदेश अग्नि निवारण एवं अग्नि सुरक्षा अधिनियम-2005, उत्तर प्रदेश गिरोहबंद एवं समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम-1986 के तहत पुलिस विभाग को सीधे कार्रवाई के अधिकार होंगे।