दो महत्वपूर्ण लोगों के बयानों की बात करते हैं. एक देश के गृहमंत्री हैं. दूसरे देश और दुनिया के जाने-माने समाजशास्त्री और विचारक.
एक का बयान राजनीतिक फायदे के लिए दिया गया ऐसा बयान था जो खुद पर ही भारी पड़ता दिखा तो, लेकिन इससे ज्यादा कुछ हुआ नहीं. दूसरेका बयान एक अनौपचारिक-सी जनता के सामने किन्हीं संदर्भों में दिया गया एक ऐसा व्यंग्यात्मक कथन था जिसका फायदा हर राजनीतिक पार्टी, राजनेता और राजनीति करने वाले गैर-राजनीतिक संगठन उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
सुशील कुमार शिंदे देश के गृहमंत्री हैं, सोनिया गांधी के कृपापात्र हैं और दलित भी हैं इसलिए विपक्षी दल और मीडिया आदि उनका बाल भी बांका करने की स्थिति में नहीं थे. कुछ हुआ भी नहीं. आशीष नंदी जाने-माने तो हैं लेकिन उतने ताकतवर और देश की राजनीति में तमाम मौकों पर धुरी की तरह इस्तेमाल हो सकने लायक दलित या पिछड़े समुदाय से भी नहीं हैं. वे अपने खिलाफ पुलिस द्वारा मामला दर्ज किए जाने के बाद कई समाचार चैनलों आदि के जरिए अपना बचाव करते, माफी मांगते, पुलिस से बचते घूम रहे हैं.
अब ठीक से इन दोनों बयानों और इनके गुण-दोषों को परखने का प्रयास करते हैं.