धारा-118 पर बवाल: कप में उठा तूफान या गंभीर मामला

हिमाचल में धारा118 फिर विवाद में है। तीन महीने पहले सत्ता में आने वाली भाजपा सरकार इसमें बदलाव करके इसके सरलीकरण की तैयारी कर रही है। इसी धारा में कुछ छूट के तहत भाजपा की पिछली सरकार के वक्त बाबा रामदेव को ज़मीन दी गयी थी। जिसे कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार ने सत्ता में आते ही बदल दिया था। यही नहीं धारा 118 में विशेष प्रावधान (सुरक्षा) के तहत भाजपा सरकार ने ही कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा को शिमला के पास छराबड़ा में ज़मीन खरीदने की मंजूरी दी थी, यहां प्रियंका का पहाड़ी शैली का मकान अब निर्माणाधीन है।

दरअसल प्रदेश में लोग धारा-118 के प्रावधानों को लेकर दो खेमों में बंटे हुए हैं। बहुतों का कहना है कि इस धारा के नियम प्रदेश के स्थाई निवासियों तक के लिए भी मुसीबत का कारण हैं क्योंकि ताकतवर लोग तो छूट के प्रावधानों का लाभ उठाकर ज़मीन हासिल कर लेते हैं, आम जन को ज़मीन खरीदने के लिए दर दर भटकना पड़ता है। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर का कहना है कि उनकी सरकार इस धारा का सरलीकरण करना चाहती है जबकि विपक्षी कांग्रेस आरोप लगा रही है कि सरकार गैर हिमाचलियों को प्रदेश बेचने पर उतारू है और ऐसा आरएसएस के दबाव में किया जा रहा है।

इस समय जेल में सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह से लेकर आसाराम बापू और श्री श्री रविशंकर जैसे संतों और अन्य धार्मिक संगठनों के आश्रम यहां चल रहे हैं और उन्हें ज़मीन भी मिली हैं। इन बाबाओं और धार्मिक संगठनों को ज़मीनें भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों के समय मिलीं। इनमें से कइयों के आश्रम कई कई जगह चल रहे हैं।

यह अलग बात है कि धारा-118 पर हिमाचल के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल जमकर राजनीति करते हैं। जांच का विषय है की आखिर बाबाओं को ज़मीनें खुले दिल से बांटने में हर राजनीतिक दल की रुचि क्यों रहती है। कुछ महीने पहले हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने भूमि मुजारा कानून की धारा 118 में तीन माह में संशोधन करने के आदेश जारी किए थे। उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता सतपाल सैनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए धारा 118 में तीन माह में संशोधन करने को कहा था। दिलचस्प यह कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया था। गौरतलब है कि 1972 के भूमि मुजारा कानून की धारा 118 के प्रावधानों के तहत कोई भी गैर कृषक अथवा गैरहिमाचली प्रदेश में ज़मीन नहीं खरीद सकता। हिमाचली स्थायी प्रमाणपत्र रखने वाले भी सरकार की अनुमति से शहरों में ही आवास बनाने अथवा कारोबार के लिए सीमित भूमि खरीद सकते हैं।

हिमाचल सरकार के रिकार्ड के मुताबिक 2018 के आखिर तक हिमाचल में धार्मिक बाबाओं और धार्मिक ट्रस्टों के नाम ज़मीन दर्ज करने के 1787 मामले थे।

हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार के समय यह कानून लाया गया था। परमार से कुछ ऐसे लोग मिले जिन्होंने अपनी ज़मीन बेच दी थी और बाद में वे उन्हीं लोगों के यहां नौकर बन गए थे। इसलिए हिमाचल प्रदेश टेनंसी ऐंड लैंड रिफॉर्म्स ऐक्ट 1972 में एक विशेष प्रावधान किया गया ताकि हिमाचलियों के हित सुरक्षित रहें। इस ऐक्ट के 11वें अध्याय ‘कंट्रोल ऑन ट्रांसफर ऑफ लैंडÓ में आने वाली धारा 118 के तहत ‘गैर-कृषकों को ज़मीन हस्तांतरित करने पर रोकÓ है।

इस बार धारा-118 पर विधानसभा के बजट सत्र में भी खूब हंगामा हुआ। विपक्षी कांग्रेस ने दो बार इस मसले पर वाकआउट किया जबकि सरकार का कहना था कि कांग्रेस इस मसले पर सिर्फ राजनीति कर रही है। बजट सत्र शुरू होने से पहले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा था कि सरकार चाहती है कि नियमों को थोड़ा सरल किया जाए ताकि हिमाचल में निवेश बढ़ सके। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया और कहा कि धारा 118 से छेड़छाड़ प्रदेश के लिए नुकसानदेह है और इस कारण उसने सदन से वॉकआउट भी किया।

सवाल यह है कि जिन हिमाचलियों के पास कृषि ज़मीन नहीं क्या उनका कोई अधिकार ही नहीं और जो ताकतवर हैं, चाहे गैर हिमाचली ही, वो मर्जी से ज़मीनें ले सकते हैं। ऐसे लोगों को जिनमें बाबा और धार्मिक ट्रस्ट बड़ी संख्या में शामिल हैं, उन्हें धारा 118 के तहत छूट देकर ज़मीनों बतौर रेबडिय़ाँ दे देते हैं लीज के नाम पर। इस मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकारें मेहरबान हैं।

छानबीन से जाहिर होता है कि बाबा या ट्रस्ट किसी हिमाचली कृषक के नाम पर हिमाचल में ही ट्रस्ट बनाते हैं। बाद में वे अपने संपर्कों का लाभ लेकर ज़मीन को ट्रस्ट के नाम करवा लेते हैं। वीरभद्र सरकार ने 2017 में एक फैसला किया जिसमें इन धार्मिक ट्रस्टों को ज़मीन बेचने का अधिकार ही दे दिया। इसके लिए सरकार ने बाकायदा मंत्रिमंडल की बैठक में सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी। सरकार धर्मशाला के चुनिंदा चाय बागान मालिकों को लैंड सीलिंग एक्ट में छूट देकर ज़मीन बेचने की इजाजत पहले ही दे चुकी है।

धार्मिक संस्थाओं को ज़मीन बेचने की इजाजत भले सशर्त है लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। संशोधन से धार्मिक संस्थाओं और डेरों को अपनी ज़मीन बेचने, गिरवी रखने या किसी को तोहफे में देने की छूट मिलती है। शर्त यह रखी गई थी जिसे ज़मीन मिले, वह धारा 118 के तहत बताई गई परिभाषा में आने वाला किसान हो। दिलचस्प यह है कि पहले यह मामला विरोध के चलते खारिज हो चुका था। मीडिया में इस तरह की रिपोर्ट आई थी कि कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में डेरा स्वामी सत्संग व्यास के लिए लैंड सीलिंग ऐक्ट बदलने की मंजूरी दी। यह भी कहा गया था कि डेरा कांगड़ा में अपनी ज़मीन कथित तौर पर फाइव स्टार रिजॉर्ट बनाने के लिए बेचना चाहता है। इससे जाहिर हो जाता है कि धार्मिक ट्रस्टों को ज़मीनें देने के पीछे सरकारों की मंशा आशंका के घेरे में रही है।