हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जबरन धर्मांतरण को जब राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाला बहुत गम्भीर मामला बताया, तो उसने एक बार फिर धर्मांतरण विरोधी क़ानूनों को सुर्ख़ियों में ला दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को निर्देश देने की माँग वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि संविधान के तहत धर्मांतरण क़ानूनी है। लेकिन जबरन धर्मांतरण की अनुमति नहीं है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि हिन्दू जल्द ही हमारे अत्यधिक आबादी वाले देश की आबादी का एक छोटा हिस्सा बन जाएँगे। संविधान में धर्म की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान की गयी है। फिर भी दिल्ली में 1984 के सिख विरोधी दंगे, कश्मीर में 1990 के हिन्दू विरोधी दंगे, 2002 के गुजरात दंगे और 2008 के ईसाई विरोधी दंगे हुए।
‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) की इस बार की आवरण कथा ‘धर्मांतरण में क्रूरता’ से पता चलता है कि कैसे कुछ मौलवियों ने लोगों का धर्मांतरण करने और अंतर्धार्मिक विवाह का मार्ग प्रशस्त करने के लिए धर्मांतरण विरोधी क़ानून के बावजूद चोरी-छिपे एक रास्ता खोज लिया है। ‘तहलका’ के एसआईटी पत्रकार ने उत्तर प्रदेश की एक मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद मुक़ीम से सम्पर्क किया और ख़ुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में ज़ाहिर किया, जो अपने काल्पनिक मुस्लिम भतीजे द्वारा एक हिन्दू लडक़ी से शादी करने को लेकर जानकारी चाह रहा था। उसने सारी बातचीत को छिपे कैमरों में रिकॉर्ड कर लिया। इमाम ने कहा कि हिन्दू लडक़ी से शादी करने से पहले उसका इस्लाम में धर्मांतरण करें। शादी के बाद अगर लडक़ी कहे कि वह इस्लाम छोडक़र वापस हिन्दू धर्म में जाना चाहती है, तो पहले विनम्रता से ऐसा न करने के लिए कहें। और अगर वह न माने, तो उसके मुँह पर तमाचे मारें। उसे इस तरह से मारें कि इससे कोई बाहरी चोट न लगे और न ही हड्डी टूटे। यदि आप घरेलू हिंसा के लिए पुलिस कार्रवाई से बचना चाहते हैं, तो आपको अपनी हिन्दू पत्नी के शरीर पर हिंसा का कोई सुबूत नहीं छोडऩा चाहिए। इसी तरह एसआईटी रिपोर्टर ने उत्तर प्रदेश की ही एक मस्जिद के मौलाना अल्ताफ़-उर-रहमान के सामने भी अपने काल्पनिक भतीजे की हिन्दू लडक़ी से शादी की बात रखी, तो निकाह के बाद इस्लाम $कुबूल न करने पर मौलाना ने क़ाग़ज़ी द्वारा लडक़ी का सिर क़लम कराने तक को कहा।