धरने पर बैठे अफ़ग़ानिस्तानी शरणार्थी

दक्षिण दिल्ली का पॉश वसंत विहार इलाक़ा, जहाँ अमीर लोग और विदेशी उच्चायोग या दूतावास हैं; आजकल अफ़ग़ानिस्तानी शरणार्थियों के नारों से गूँज रहा है- ‘वी वांट जस्टिस’, ‘नो मोर साइलेंस’, ‘यूएनएचसीआर व्हाय यू आर सायलैंट’, हमें न्याय चाहिए। अब चुप्पी और नहीं चलेगी। यूएनएचसीआर तुम चुप क्यों हो? हमारा हक़ हमें दो। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के भारत कार्यालय के सामने सैकड़ों अफ़ग़ानी महिला-पुरुष, युवक-युवतियाँ, छोटी बच्चियाँ तथा बच्चे विकट गर्मी और उमस के बीच दरियाँ बिछाकर धरने पर बैठे हैं। युवक-युवतियाँ माईक पर जोशीले नारे लगा रहे हैं। दरअसल ये वे अफ़ग़ानी हैं, जो बरसों से भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। जैसे ही अफ़ग़ानिस्तान में हालात बदले, इनकी सारी उम्मीदें टूट गयीं और ये यूएन शरणार्थी उच्यायुक्त कार्यालय के सामने पहुँच गये कि उनको वीजा देकर उन देशों में भेज दिया जाए, जो उनको लेने के लिए तैयार हैं।

अफ़ग़ान सोलिडेरिटी कमेटी इंडिया के बैनर तले यहाँ अपने हक़ों की माँग कर रहे अफ़ग़ानी युवक-युवतियाँ अपने भविष्य को लेकर बहुत चिन्तित हैं। दिल्ली के अफ़ग़ान स्कूल में 11वीं में पढ़ रही मरियम और कायनात ने ‘तहलका’ को बताया कि 10 साल पहले हमारे माँ-बाप हमारे अच्छे भविष्य के लिए भागकर भारत आये थे। लेकिन अब हमारा क्या होगा? भले ही हमारा स्कूल भारत में हैं; लेकिन हमारा बोर्ड तो काबुल में है। अब वहाँ कोई सरकार ही नहीं, सारे दफ़्तर बन्द हो गये हैं। हमारे पास स्कूल सर्टिफिकेट नहीं होगा, तो हम आगे कैसे पढ़ेंगे? हमें नौकरी कौन देगा? तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान और हमारी ज़िन्दगी को जहन्नुम बना दिया है।

35 वर्षीय आतिफ़ का परिवार पर्यटक के तौर पर सात साल पहले भारत आया था; लेकिन फिर लौटकर अफ़ग़ानिस्तान नहीं गया। आतिफ़ अब गुडग़ाँव में रहता है और मेदांता अस्पताल में दुभाषिये का काम करता था। उसके देश से बहुत-से मरीज़ दिल्ली इलाज कराने आते थे और वे दुभाषिये का काम करते थे। लेकिन 15 अगस्त को जैसे ही हालात बदले, दो दिन बाद मेदांता ने आतिफ़ को नौकरी से निकाल दिया। अब आतिफ़ के सामने रोज़ी-रोटी का संकट है। आतिफ़ कहता है कि यूएनएचसीआर को हमारे अधिकार देने ही होंगे। वह हमें वीजा दे दे, तो हम कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन जा सकते हैं। आतिफ़ कहता है कि तालिबानी सच्चे मुसलमान नहीं हैं। मैं भी मुसलमान हूँ; लेकिन हम किसी को नुक़सान नहीं पहुँचाते। इस्लाम में औरतों से बदसलूकी किया जाना कहीं नहीं लिखा है। आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं है। वे मुसलमान नहीं हैं। आप भारत ही क्यों आते हो? पाकिस्तान तो आपका पड़ोसी देश है। वहाँ क्यों नहीं जाते? इस पर सवाल पर वहाँ खड़े सभी अफ़ग़ानी युवक और उम्रदराज़ पुरुष भडक़ गये। आतिफ़ कहता है कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान का दुश्मन है। कभी उसने हमारा भला नहीं चाहा। उसी के कारण आज हमारे ये हालात हैं। भारत के साथ हमारे सदियों पुराने रिश्ते हैं। हमें भारत में बहुत प्यार और सुरक्षा मिलती है। हम यहाँ काम भी कर लेते हैं। भारत ने हमारे अच्छे भविष्य के लिए अरबों रुपये का निवेश किया है। एक सप्ताह के अन्दर हमारे देश पर तालिबान का क़ब्ज़ा बहुत बड़ी साज़िश है। अभी दुनिया चुप है। लेकिन सच्चाई जल्द ही सामने आएगी। उमर की आयु 27 वर्ष है। जब 10 साल पहले उसके परिवार ने भारत ने शरण ली, तो उसकी पढ़ाई छूट गयी। उसे बहुत अफ़सोस है। उमर कहता है कि वह पाकिस्तान जाने के बजाय मरना पसन्द करेगा। उनकी सारी मुसीबतों की जड़ पाकिस्तान है। कोई भी अफ़ग़ानी युवक पाकिस्तान में शरण नहीं लेना चाहता। पुलिस पकडक़र जेल में डाल देती है और फिर दो महीने बाद जबरदस्ती आतंकवादी ट्रेनिंग कैम्प में भेज देते हैं। पठानी सूट पहने जीवन के अनेक उतार चढ़ाव देख चुका लगभग 55 साल का बिस्मिल्ला कहता है कि हम अफ़ग़ानी पाकिस्तान को बिल्कुल पसन्द नहीं करते। उसकी फ़ौज उसकी पुलिस हमें पकडक़र तालिबान के हवाले कर देती है। वहाँ खाना-कमाना तो दूर की बात है, हम शरण लेने की सोच भी नहीं सकते। भारत में हम पटरी लगाकर भी बैठ जाते हैं। पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की बर्बादी के लिए काम करता है। वो हमें ख़ुशहाल नहीं देखना चाहता। हमारी सांसद अनारकली कौर चाहतीं, तो किसी भी देश में चली जातीं; लेकिन उन्होंने भारत आना ही पसन्द किया।

अफ़ग़ानी महिला संगठन की अध्यक्ष लगभग 50 साल की अनीशा का परिवार 11 साल पहले भारत आया था, तब तो शान्ति थी। फिर आप क्यों भारत आ गये? पूछने पर अनीशा कहती है कि कौन-सी शान्ति आज स्कूल जला रहे हैं? मस्जिदों, गुरुद्वारों पर हमले और औरतों पर अत्याचार तालिबान ने कभी बन्द नहीं किये। तालिबान के बारे में हम क्या कहें? पूरी दुनिया देख रही है कि तालिबान कौन है? क्या कर रहा है? दुनिया में इतने इस्लामिक देश हैं। फिर आप लोग भारत या पश्चिमी देशों में ही क्यों रहना चाहते हो? पूछने पर अनीशा कहती है कि हम कहाँ जाएँ? पाकिस्तान, अमेरिका, इरान सब अफ़ग़ानिस्तान के दुश्मन हैं। तजाकिस्तान और क़जाकिस्तान के पास अपने लोगों के लिए कुछ नहीं है; हमें क्या देंगे? हमारी बेटियाँ सुरक्षित रहनी चाहिए। इसलिए हम भारत और पश्चिमी देशों में शरण लेना पसन्द करते हैं।

अचानक अफ़ग़ानिस्तानियों के धरना-प्रदर्शन और नारेबाज़ी पर संयुक्त राष्ट्र महासंघ शरणार्थी उच्चायुक्त के भारत कार्यालय के प्रवक्ता कीरी अत्री ने ‘तहलका’ को बताया कि भारत में बरसों से रह रहे अफ़ग़ानी शरणार्थी मौक़े का फ़ायदा उठाना चाहते हैं। दरअसल ऑस्ट्रेलिया, कनाड़ा यूएस और यूके ने जो 20-20 हज़ार अफ़ग़ानिस्तानियों को शरण देने की पेशकश की है। वो इनके लिए नहीं है; बल्कि अभी जो अफ़ग़ानिस्तान में फँसे हैं, उनके लिए हैं। भारत में पहले से जो शरणार्थी रह रहे हैं, हम उनमें हर साल लगभग 200 को वीजा देते हैं। लेकिन यह हमारे हाथ में नहीं है। जो देश जितने लोगों को शरण देने के लिए राज़ी होता है, हम उतनों को भेज देते हैं। कोरोना वायरस के कारण यह प्रक्रिया फ़िलहाल बन्द है। अत्री कहते हैं कि हम इनको लिखित में सारी जानकारी दे चुके हैं; लेकिन ये मान नहीं रहे हैं। कोराना-काल में बीमारी फैलने का डर भी है। हमने पुलिस से इनको 300 मास्क बँटवाये हैं।