
दागिस्तान के मशहूर कवि अबू तालिब की एक बेहद प्रसिद्ध उक्ति है, ‘अगर तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे तो भविष्य तुमपर तोप से गोले दागेगा.’ इसमें कोई शक नहीं कि इतिहास केवल विजेताओं का होता है. यानी इतिहास में, हारने वाले का स्थान विजेता की मर्जी से तय होता है, लेकिन अबू तालिब की बात हमें इतिहास के साथ छेड़छाड़ के खतरों से आगाह करती है.
इस तरह देखें तो भारत और पाकिस्तान के युवाओं का एक समूह दोनों देशों के इतिहास की लिखाई में नजर आने वाले विरोधाभासों को उजागर करते हुए इस उपमहाद्वीप का भविष्य सुरक्षित करने की कोशिश में लगा है. द हिस्ट्री प्रोजेक्ट के नाम से की जा रही इस कवायद का मकसद इसके सहसंस्थापक कासिम असलम के मुताबिक यह है कि दोनों देशों की मौजूदा पीढ़ी जाने कि साझा इतिहास की अहम घटनाओं को दूसरा मुल्क किस तरह देखता है. वह इतिहास को खुली नजर के साथ देखे, उस पर बहस करे. यह किताबों की एक सीरीज को बच्चों तक पहुंचाकर किया जा रहा है. एक समाचार वेबसाइट में बात करते हुए असलम कहते हैं, ‘हम भावनाएं नहीं भड़काना चाहते. हम चाहते हैं कि बच्चे जिसे सच मानते हैं उसे लेकर उनके मन में सवाल उठें.’ द हिस्ट्री प्रोजेक्ट के नाम के साथ ही आ रही इन किताबों का लक्ष्य 12-15 साल के बच्चे हैं और भारत और पाकिस्तान के कई स्कूलों में इसकी पहली कड़ी पहुंच भी चुकी है.
भारत और पाकिस्तान का विभाजन विश्व इतिहास में मानवीय विस्थापन की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है. एक ऐसी घटना जहां अंतत: दोनों ही पक्षों के हाथ पराजय लगी. दोनों देशों के पास एक साझा अतीत, साझी विरासत थी, लेकिन आम लोगों के स्तर पर संपर्क कम होते जाने और राजनयिक रिश्तों में आई कटुता ने उनके आपसी रिश्ते को तो प्रभावित किया ही, उनके बीच की खाई इतिहास लेखन में भी नजर आने लगी. ऐसे में दोनों देशों के कुछ युवाओं ने जबरन किसी निष्कर्ष पर पहुंचे बिना इस इतिहास के दो संस्करणों के विरोधाभास नई पीढ़ी तक लाने का बीड़ा उठाया है.
इतने वर्षों बाद इतिहास की इन घटनाओं को इस तरह सामने लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसलिए क्योंकि साझा इतिहास की एक ही घटना को दोनों देशों के इतिहासकारों ने अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाते हुए लिखा है. इस इतिहास लेखन में निजी सोच कुछ इस कदर हावी हो गई है कि कई बार घटनाओं का ब्योरा ही पूरी तरह बदल गया है. उदाहरण के लिए कश्मीर के मसले पर एक देश की इतिहास की किताबें कहती हैं कि 1947 में कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराज हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान में विलय न करने की मंशा जताई. पाकिस्तान के सशस्त्र घुसपैठियों ने कश्मीर पर हमला किया और तब हरि सिंह ने भारत में शामिल होने संबंधी संधि पर हस्ताक्षर किए जिसके बदले भारतीय सेना को कश्मीर की रक्षा के लिए रवाना किया गया. वहीं दूसरे देश की किताबों के मुताबिक हरि सिंह ने कश्मीर में मुस्लिमों का नरसंहार शुरू कर दिया. तकरीबन 200, 000 लोगों ने पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के लड़ाकों की मदद से कश्मीर के बड़े हिस्से को आजाद कराने में कामयाबी हासिल की. इसके बाद हरि सिंह ने मजबूरी में भारत का रुख किया.

साफ है कि पहला उदाहरण जहां एक भारतीय किताब से लिया गया है वहीं दूसरा उदाहरण पाकिस्तानी किताब का है. क्या वाकई कश्मीर के इतिहास का यह अंतिम सच है या फिर हमारी आने वाली नस्लें ऐसे ही टुकड़ा-टुकड़ा अधूरे सच को हकीकत मान कर जीने के लिए अभिशप्त हैं?
पाकिस्तान में अच्छे लोगो की कोई कमी नहीं हे और वो अपनी आवाज़ मुखर भी करते हे लेकिन मसला यही हे की पाकिस्तान की बुनियाद ही झूठ पर रखी गयी थी वो झूठ ये था की पाकिस्तान इसलिए बना की भारत में मुसलमानो पर अत्याचार होता हे ऐसी कोई बात कतई नहीं थी महात्मा गांधी के शब्दों में ” ऊपर से लेकर नीचे तक जातियों में बटे हिन्दू समाज में इतना दम ही नहीं हे की वो चाहे भी तो मुसलमानो का शोषण या अतयाचार कर सके ” पाकिस्तान कई सारे झूठ पर बना खेर बन गया तो बन गया लेकिन मुसीबत पाकिस्तान के अछे भले ईमानदार बौद्धिक बुद्धिजीवियों की हो गयी वो बेचारे जितना सच बोलते हे तो यही लगता हे की वो पाकिस्तान की जड़े खोद रहे हे उन्हें गद्दार इंडिया हिन्दुओ का पिट्ठू कहा जाता हे और जो जितना झूठ बोलता हे ऐसा भरम होता हे की वो सच्चा पाकिस्तानी हे और पाकिस्तान की नीव मज़बूत कर रहा हे इसलिए पाक न्यूज़ चैनेलो पर बैठ कर ज़ैद हामिद ओरिया मक़बूल जान हामिद गुल फरहा हुसैन वगेरह वगेरह इतना बड़े झूठ बोलते हे की इतने बड़े झूठ शायद ही कोई और बोलता हो पाकिस्तान का एक मकबूल सामाजिक हास्य प्रोग्राम हे हस्ब ए हाल इसमें भारत की हर बात हर एक बात जैसी की एजुकेशन लोकतंत्र सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग आर्थिक इस्तिति हर बात के लिए बढ़ चढ़ कर तारीफ की जाती हे लेकिन जैसे ही बात भारत के सेकुलरिज़म और मुसलमानो की बात होती हे तो बढ़ चढ़ कर झूठ बोले जाते हे क्योकि अगर य कह दिया की भारत सेकुलर हे और भारत के मुसलिमो और अकलियतों के हालात सही हे तो ये मन जाएगा की य बात पाकिस्तान के खिलाफ हे लोहिया जी ने सही कहा था की ”या तो पाकिस्तान भारत से लड़ता रहेगा या भारत में मिल जाएगा ” अब हमें करना ये चाहिए की जोर शोर से महासंघ की बात उठाय और विलय की बात का बकौल गुजराल साहब बिलकुल जिकर ही न करे जितना हम विलय की बात करेंगे महासंघ भी दूर होता जाएगा इसलिए पहले जोर शोर से महासंघ और कश्मीर की खुली सीमा ( कश्मीरियों के लिए ) की बात करनी चाहिएhttps://www.youtube.com/watch?… 21 : 20 से
क्या ये पुस्तकें भारत में उपलब्ध हैं? रामदेव जी ने व राजीव दिक्षित जी ने पहले ही कांग्रेसी व अंग्रेज़ी इतिहासकारों की पोल खोल दी है, इसलिए दिलचस्प होगा यह जाणा कि आखिर कितना सच हमें पढाया जाता है.