हेमंत सरकार के गिरने की चर्चा के बीच बहने लगी उलटी गंगा
झारखण्ड की राजनीति को समझना आसान नहीं है। झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन की सरकार है। झामुमो के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। भाजपा विपक्ष में है। पिछले कुछ दिनों से हेमंत सरकार के गिरने की चर्चा झारखण्ड से लेकर दिल्ली तक हो रही है। चर्चा यहाँ तक है कि महाराष्ट्र की तरह झारखण्ड में भी सत्ता परिवर्तन की तैयारी है। इस सत्ता परिवर्तन में कांग्रेस टूट रही या झामुमो टूटेगा, यह फ़िलहाल साफ़ नहीं है। दिख यह भी रहा है कि हेमंत सोरेन महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से ज़्यादा समझदार हैं। वह स्थिति को भाँपकर सँभाल रहे हैं। क्योंकि इस दौरान राजनीतिक धरातल पर उल्टी ही गंगा बहती दिख रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भाजपा के साथ हैं, या भाजपा के ख़िलाफ़? यही साफ़ नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देवघर दौरा हो या राष्ट्रपति चुनाव मुख्यमंत्री का व्यवहार कई सवाल खड़े कर रहे हैं। वहीं, सरकार में मुख्य सहयोगी दल कांग्रेस की अंदरूनी हालत समय-समय पर सार्वजनिक मंच पर दिख जाता है। हर समय कांग्रेस विधायकों के टूटने की चर्चा रहती है। यहाँ तक कि राष्ट्रपति चुनाव में जम कर क्रॉस वोटिंग भी हुई। जो पार्टी नेताओं के माथे पर बल ला दिया है।
हेमंत पर शिकंजा
हेमंत सोरेन की सरकार संकट में है। उनकी ख़ुद की विधानसभा की सदस्यता ख़तरे में है। चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन से खनन पट्टा लेने के मामले में जवाब तलब किया है। राज्यपाल ने संज्ञान लिया है। उधर, सोरेन के आसपास के लोग, उनके भाई विधायक बसंत सोरेन, सम्बन्धित अधिकारी सबके ख़िलाफ़ ईडी की कार्रवाई चल रही है। हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में हिरासत में ले लिया है। पूछताछ चल रही है। हाईकोर्ट में मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ पीआईएल पर सुनवाई चल रही है। सीबीआई जाँच की भी कोर्ट से माँग की गयी है। चर्चा है देर सवेर क़ानूनी शिकंजा हेमंत सोरेन पर कसेगा। यानी हेमंत सोरेन चौतरफ़ा घिरे हैं और उनकी सदस्यता जानी तय मानी जा रही है।
मनमुटाव और खींचतान
पार्टी स्तर पर भी मनमुटाव और खींचतान की बात सामने आ रही है। विधायक लोबिन हेंब्रम जैसे झामुमो के कुछ वरिष्ठ नेता गुरुजी यानी शिबू सोरेन को अपना नेता मानते हैं; लेकिन हेमंत सोरेन को नहीं। लोबिन हेंब्रम ने यहाँ तक कह दिया कि हेमंत सोरेन सदन के नेता हैं, हमारे नहीं। हमारे नेता तो गुरुजी हैं। उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी ही पार्टी के सरकार के विरोध में सार्वजनिक तौर पर मोर्चा खोल रखा है। वहीं हेमंत की भाभी सह विधायक सीता सोरेन ने भी मुख्यमंत्री और सरकार के कामकाज पर कई बार सार्वजनिक तौर पर नाराज़गी ज़ाहिर की है। वह भी कई मुद्दों पर लगातार सरकार के ख़िलाफ़ बोल रही हैं।
इसी तरह झामुमो के कई वरिष्ठ विधायक और नेता कई मुद्दों पर पार्टी लाइन से अलग सरकार के ख़िलाफ़ दिख रहे हैं।
मोदी की तारीफ़ में पढ़े क़सीदे
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के तेवर इन दिनों बदले-बदले से हैं। देवघर हवाई अड्डे के उद्घाटन मौक़े पर सार्वजनिक मंच से जिस तरह से उन्होंने भाषण दिया, वह तो यही दिखा रहा कि हेमंत महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे की तरह ग़लती करना नहीं चाहते हैं। क्योंकि अगर उनकी कुर्सी गयी, तो पार्टी (झामुमो) के जो हालात हैं, उसे भी बचा पाना कहीं मुश्किल न हो जाए। उन्होंने देवघर हवाई अड्डे के उद्घाटन मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि अगर इसी तरह से केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर काम करती रहीं, तो वह दिन दूर नहीं जब झारखण्ड देश के अग्रणी राज्यों में से एक होगा। इतना ही नहीं, देवघर के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे, जिनके साथ इन दिनों हेमंत का 36 का आँकड़ा है; की भी तारीफ़ करने से नहीं चूके।
राष्ट्रपति चुनाव में केंद्र के साथ
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को समर्थन देने पर फ़ैसला करने से पहले हेमंत सोरेन अपनी पार्टी की बैठक में नहीं गये। पार्टी के नेताओं से मिलकर फ़ैसला नहीं हुआ। इस पर फ़ैसला करने के लिए वह दिल्ली आये। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले। अमित शाह से मिलने के बाद उनको अचानक याद आया या ज्ञान बोध हुआ कि द्रौपदी मुर्मू तो झारखण्ड की राज्यपाल रह चुकी हैं। आदिवासी समाज से आती हैं। हमारी पार्टी आदिवासी समाज का विरोध कैसे कर सकती है। आदिवासी समाज से एक महिला राष्ट्रपति भवन पहुँच रही है, तो उसका समर्थन हम कैसे नहीं करेंगे।
यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। राजग द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा के बाद भी सोरेन कांग्रेस, यूपीए और बाक़ी विपक्षी दलों के साथ थे। तब उन्हें याद नहीं आया कि द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं। वह कह रहे थे कि इस पर विचार किया जाएगा। पार्टी फॉरोम पर बात होगी, फिर फ़ैसला लिया जाएगा। इससे तो यही लगता है कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात के बाद कुछ खिचड़ी पकी है।
कांग्रेस पड़ रही ढीली
कांग्रेस कमज़ोर होने के साथ ढीली पड़ रही है। पार्टी राज्य गठन के बाद सबसे अधिक सदस्यों के साथ विधानसभा में है, इसके बाद भी विधायकों और मंत्रियों का मतभेद समय-समय पर सार्वजनिक होता रहता है। जब भी हेमंत सोरेन सरकार गिरने की बात आती है, कांग्रेस विधायकों के ही टूटने की बात निकलती है। बीते वर्ष कांग्रेस के कुछ विधायकों पर सरकार गिराने की साज़िश का आरोप लगा। विधायकों के ख़रीद-फ़रोख़्त की चर्चा हुई। पुलिस ने मामला दर्ज किया।