दिल्ली पुलिस प्रमुख के रूप में अस्थाना की नियुक्ति पर सवाल क्यों?

गुजरात कैडर के 1984 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी राकेश अस्थाना की सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में हुई नियुक्ति पर सवाल उठने लगे। 27 जुलाई, 2021 को उनकी नियुक्ति हुई। अब अस्थाना का कार्यकाल एक वर्ष और होगा। उनकी इस नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय में दो याचिकाएँ दायर कर आरोप लगाया गया है कि इस नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया है। सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन एनजीओ ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और केंद्र सरकार के विभिन्न नियमों के कथित उल्लंघन के आधार पर सेवानिवृत्ति से ठीक चार दिन पहले आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की दिल्ली के पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती दी है। अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में एनजीओ ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति के आदेश को रद्द करने की माँग की है।
याचिका में कहा गया है कि अस्थाना को दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करने वाली केंद्र की नियुक्ति समिति (एसीसी) और केंद्र द्वारा जारी 27 जुलाई के आदेश को रद्द करने की ज़रूरत है और पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए एजीएमयूटी कैडर से एक अधिकारी को चुनने के लिए एक नयी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। एजीएमयूटी अरुणाचल प्रदेश, गोवा मिजोरम और दिल्ली सहित अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक कैडर है।
इससे पहले वकील मनोहर लाल शर्मा द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक अवमानना याचिका दायर की गयी थी। इसमें कहा गया था कि अस्थाना की नियुक्ति प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 13 मार्च, 2019 के फ़ैसले के विपरीत है, जिसमें पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्ति के लिए किसी भी अधिकारी को छ: महीने के शेष कार्यकाल की आवश्यकता होती है। अस्थाना के पास 27 जुलाई को सेवानिवृत्त होने के लिए चार दिन थे। वकील मनोहर लाल शर्मा द्वारा 30 जुलाई को दायर याचिका में कहा गया है कि अस्थाना की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के जुलाई, 2018 के फ़ैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को चाहिए कि ऐसी नियुक्तियों के लिए उन अधिकारियों पर विचार करें, जिनकी दो वर्ष की सेवा शेष है।
गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि राकेश अस्थाना, जो सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिदेशक के रूप में कार्यरत थे; को तत्काल प्रभाव से एक वर्ष के कार्यकाल के लिए दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया है। इस साल जून में एस.एन. श्रीवास्तव की सेवानिवृत्ति के बाद दिल्ली के पुलिस आयुक्त बालाजी श्रीवास्तव को पुलिस आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था।
ग़ौरतलब है कि राकेश अस्थाना पहले भी विवादों में रह चुके हैं। एक एनजीओ कॉमन कॉज ने कुछ साल पहले अस्थाना की विशेष निदेशक के रूप में नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था कि उनका नाम स्टर्लिंग बायोटेक- एक कम्पनी, जिसकी सीबीआई द्वारा काले धन को वैध बनाने (मनी लॉन्ड्रिंग) के लिए जाँच की जा रही थी; से ज़ब्त की गयी 2011 की डायरी में था। अस्थाना का नाम प्राथमिकी में नहीं था; लेकिन सम्भवत: उनकी अपनी एजेंसी द्वारा चल रही जाँच का विषय था। अस्थाना एक भ्रष्टाचार घोटाले में सीबीआई के विशेष निदेशक आलोक वर्मा के साथ रिश्वतख़ोरी के विवाद में फँस गये थे। दोनों ने एक-दूसरे पर घूसख़ोरी का आरोप लगाया, और बाद में केंद्रीय सतर्कता आयोग की सिफ़ारिश पर सरकार ने उन्हें छुट्टी पर जाने
को कहा।
यह सबसे असामान्य मामला था। क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार भारत की प्रमुख पुलिस जाँच एजेंसी के एक सेवारत शीर्ष अधिकारी की नियुक्ति पर सवाल उठाया गया था। ख़ास बात यह थी कि उसी एजेंसी द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में उनकी जाँच की जा रही थी। सम्बन्धित व्यक्ति राकेश अस्थाना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति द्वारा जारी एक आदेश पर सीबीआई के विशेष निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। इस नियुक्ति को ग़ैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका के माध्यम से इस आधार पर चुनौती दी गयी थी कि अस्थाना ‘त्रुटिहीन’ व्यक्ति नहीं है।
अस्थाना ने अपने करियर में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है, जिनमें वड़ोदरा के पुलिस महानिरीक्षक, अहमदाबाद शहर के संयुक्त पुलिस आयुक्त और सूरत और वड़ोदरा में पुलिस आयुक्त के पद शामिल हैं। वह 2002 में कुख्यात गोधरा ट्रेन अग्निकांड की जाँच के लिए गुजरात सरकार द्वारा नियुक्त विशेष जाँच दल (एसआईटी) का हिस्सा थे।
अस्थाना कथित तौर पर सत्ता के क़रीब हैं। अप्रैल, 2016 में अस्थाना को सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक के रूप में तैनात किया गया था। बाद में उन्होंने अनिल सिन्हा के सीबीआई निदेशक के रूप में पद छोडऩे के बाद कुछ समय के लिए सीबीआई के कार्यवाहक / अंतरिम निदेशक के रूप में भी कार्य किया।
पिछले एक दशक में यह पहली बार था कि सीबीआई का नेतृत्व एक महीने से अधिक समय तक पूर्णकालिक निदेशक द्वारा नहीं किया गया था, यानी जब तक आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद पर नियुक्त नहीं किया गया था। बाद में भारत सरकार द्वारा सीवीसी की सिफ़ारिश पर वर्मा और अस्थाना को छुट्टी पर भेजने पर वर्मा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के लिए गये और अस्थाना दिल्ली उच्च न्यायालय में। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने के फ़ैसले को रद्द कर दिया और वर्मा को दो महीने बाद सीबीआई निदेशक के रूप में बहाल कर दिया गया। इस निर्देश के साथ कि जब तक चयन समिति भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनके भाग्य का फ़ैसला नहीं करती, तब तक वह कोई बड़ा फ़ैसला नहीं लेंगे।
उनके खाते में कई महत्त्वपूर्ण मामले हैं, जिन्हें उन्होंने सफलतापूर्वक सँभाला। राकेश अस्थाना ने अपने करियर में चारा घोटाला सहित कई संवेदनशील मामलों को सँभाला है। एक ऐसा भ्रष्टाचार, जिसमें बिहार के ख़जाने से क़रीब 9.4 बिलियन (940 करोड़) रुपये का गबन शामिल था और इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया गया था। एक अन्य उच्चस्तरीय (हाई प्रोफाइल) मामले में अस्थाना ने डीजीएमएस महानिदेशक को धनबाद में रिश्वत लेते पकड़ा। उन्हें 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में हुए बम विस्फोट की जाँच की ज़िम्मेदारी भी दी गयी थी और उन्होंने कथित तौर पर एक महीने से भी कम समय में मामले को सुलझा लिया था। राकेश अस्थाना ने बापू आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं के मामले की भी जाँच की थी। फ़रार नारायण साईं को हरियाणा-दिल्ली सीमा पर पकड़ा गया था।
नव नियुक्त दिल्ली पुलिस आयुक्त का पदभार ग्रहण करने के बाद मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में अस्थाना ने कहा- ‘दिल्ली पुलिस का अतीत शानदार रहा है। बल द्वारा अतीत में बहुत अच्छा काम किया गया है। बहुत से जटिल मामलों को सुलझाया गया है। दिल्ली पुलिस ने बहुत-सी जटिल परिस्थितियों को सँभाला है। मैं समूह कार्य (टीम वर्क) में विश्वास करता हूँ और मुझे उम्मीद है कि इस समूह कार्य से हम समाज की बेहतरी और शान्ति के प्रसार के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे।’
इस बीच दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में अपने पहले बड़े फ़ैसले में राकेश अस्थाना ने सात आईपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया। शायद यह अहसास दिलाते हुए कि वह नये मालिक (बॉस) हैं।
(उपरोक्त विचार लेखक के अपने हैं।)

नियुक्ति को चुनौती देने के आधार
 प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का उल्लंघन।
 राकेश अस्थाना का कम-से-कम छ: महीने का शेष कार्यकाल नहीं था।
 कम-से-कम दो साल के कार्यकाल के मानदंड को नज़रअंदाज़ किया गया।
 नियम 56(डी) का उल्लंघन, जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी सरकारी सेवक को 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु के बाद सेवा में विस्तार प्रदान नहीं किया जाए।
 अखिल भारतीय सेवा (सेवा की शर्तें-अवशिष्ट मामले) नियम, 1960 के नियम-3 के तहत केंद्र के पास अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 के नियम-16(1) में अस्थाना को सेवा का विस्तार देने के लिए ढील देने का अधिकार नहीं था।
 कार्मिक विभाग और प्रशिक्षण कार्यालय ज्ञापन दिनाँक 08.11.2004 के तहत निर्धारित अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों की अंतर्-संवर्ग प्रतिनियुक्ति पर नीति का उल्लंघन।
 दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के लिए कोई यूपीएससी पैनल नहीं बनाया गया था; और दो साल के न्यूनतम कार्यकाल के मानदंड की अनदेखी की गयी।