गुणवत्ताहीन कफ सिरप से 66 बच्चों की मौत पर लीपापोती से उठ रहे सवाल
पश्चिमी अफ्रीकी देश गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की गम्भीर चेतावनी से हरियाणा की मेडेन फार्मास्यूटिकल लिमिटेड कम्पनी विवाद में फँस गयी है। इस कम्पनी की चार दवाइयाँ- प्रोमेथजाइन ओरल सोल्यूशन, कोफोक्समालिन बेबी कफ सिरप, मेकआफ बेबी कफ सिरप और मैगरिथ रन कोल्ड सिरप अफ्रीकी देश गाम्बिया के 66 बच्चों की मौत की वजह बनी। 66 में से 60 बच्चों की मौत की वजह गुर्दे (किडनी) में ख़राबी साबित हुई है। यह सब शुरुआती जाँच में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेबोरेटरी में पूरे परीक्षण के बाद साबित हुआ है। जाँच में कम्पनी की इन चार दवाओं में डाइथेलेन ग्लायकोल और ऐथेलन ग्लायकोल की मात्रा मानकों से कहीं ज़्यादा पायी गयी। दोनों रसायनों का स्तर घटिया होने या मानक से ज़्यादा का मिश्रण करना बेहद ख़तरनाक होता है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों में डाइथेलेन और ऐथेलेन का दवाओं में इस्तेमाल प्रतिबन्धित है; लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।
बता दें कि सन् 2020 में भी हिमाचल प्रदेश की डिजिटल विजन नामक फार्मास्यूटिकल कम्पनी द्वारा बनाये गये कफ सिरप में इन्हीं दोनों रसायनों के ज़्यादा इस्तेमाल होने के चलते जम्मू क्षेत्र के 11 से ज़्यादा बच्चों की मौत कुछ महीनों के अंतराल में हुई। जाम्बिया में भी कमोबेश ऐसा ही हुआ है। ये मौतें अगस्त तक हो चुकी हैं; लेकिन सिलसिला कब से शुरू हुआ, इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विस्तृत जानकारी नहीं दी है।
ये दवाइयाँ बच्चों को सर्दी-खाँसी आदि ठीक करने के लिए दी जाती हैं; लेकिन दवा ख़राब होने पर पेट दर्द, सिर दर्द, उल्टी,डायरिया और पेशाब आने में दिक़्क़त होती है। बच्चे की तबीयत सँभलने के बजाय धीरे-धीरे ख़राब होती चली जाती है। आख़िरकार गुर्दे (किडनी) फेल होने या अन्य कारण से मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से मेडेन फार्मास्यूटिकल कम्पनी पर गम्भीर लापरवाही का ख़ुलासा होता है। कम्पनी का देश और विदेशों में बड़ा कारोबार है। कुंडली (सोनीपत) में इकाई है और पिछले 32 वर्षों से दवा निर्माण में लगी है। सवाल यह है कि निर्यात होने वाली ये दवाइयाँ केंद्रीय लेबोरेटरी में कैसे पास हो गयीं? मतलब स्पष्ट है कि दवाओं की गुणवत्ता और मानकों का पूरा ख़याल नहीं रखा गया। ज़ाहिर है कि दवा बनाने के मानक अगर बिगड़ जाएँ, तो वह ज़हर बन सकती है। इससे रोगी को घातक नुक़सान होने के अलावा उसकी जान भी जा सकती है। इसलिए किसी भी दवा कम्पनी में बनने वाली दवाइयों की जाँच कड़ी होनी चाहिए। बाहर जाने वाली दवाओं की भी जाँच होनी चाहिए, क्योंकि इससे देश की छवि जुड़ी होती है। विदेशों में इसका बड़ी सख़्ती से पालन किया जाता है; लेकिन हमारे यहाँ मानकों से समझौता कर लिया जाता है, जिसका परिणाम गाम्बिया जैसी घटना के रूप में आज हमारे सामने है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन को अन्य देशों से भी ऐसी घटनाओं के सामने आने की आशंका है। मेडेन फार्मा कम्पनी गाम्बिया में इन दवाओं का निर्यात करती आ रही है; लेकिन वहाँ से अन्य पड़ोसी देशों में ये दवाइयाँ जा सकती हैं। ऐसी आशंकाओं को देखते हुए गाम्बिया में इन दवाओं के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख टेड्रोस अदनोम धेब्रेयियम के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को मामले से अवगत कराने के बाद देश में भी हडक़म्प सा मच गया है। मेडेन कम्पनी हरियाणा के जिला सोनीपत के कुंडली में है। लिहाज़ा राज्य सरकार की पूरी जवाबदेही है। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने मामला प्रकाश में आते ही चारों दवाइयों के नमूने कोलकाता की सेंट्रल ड्रग लैब में भेजने की बात कही। जाँच रिपोर्ट आने के बाद सरकार की ओर से कार्रवाई की जाएगी। कम्पनी विशेष तौर पर ये दवाइयाँ निर्यात करती है; लेकिन क्या राज्य या देश के किसी हिस्से में भी इनकी बिक्री हो रही है? इसकी भी जाँच करायी जाने की बात की गयी है।
मेडेन फार्मा लिमिटेड सन् 1990 से दवा निर्माण के कार्य में है। इस कम्पनी में केप्सूल, इंटेजेक्शन, सिरप, ओंटमेट्स और टेबलेट आदि बनाये जाते हैं। देश-विदेश में कम्पनी का अच्छा कारोबार है। कम्पनी मालिकों के पास तीन दशक से ज़्यादा का अनुभव है। इसके चलते कम्पनी के पास डब्लूएचओ-जीएमपी और आईएसओ-9001 है। यह सर्टिफिकेट दवा निर्माण में सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों का पालन करने वाली कम्पनी को दिया जाता है। कम्पनी की वेबसाइट पर इसका विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है और इसकी फोटो भी अपलोड की गयी है।
तीन दशक पुरानी यह कम्पनी दर्ज़नों तरह की दवाइयाँ बनाती है। यह पहला और बड़ा मामला है, जब सीधे तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किसी कम्पनी की दवाइयों पर उँगली उठायी है। ज़ाहिर है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने तौर पर पूरी जाँच के बाद इस कम्पनी पर गम्भीर आरोप लगाये हैं, तो कोलकाता की सेंट्रल ड्रग लैब की रिपोर्ट अलग कैसे आ सकती है? दवा निर्माण और उनके निर्यात में भारत बहुत आगे है। विकसित देशों में यहाँ की दवाइयाँ बड़े स्तर अमेरिका और अन्य विकसित देशों में जाती हैं। समय-समय पर अमेरिका की एफडीए जैसी एजेंसी हमारे यहाँ की कम्पनियों की इकाइयों की जाँच करती है और $खामी पाये जाने पर रोक लगाने जैसी कार्रवाई करती है। इन कम्पनियों को एफडीए के कड़े मानकों से गुज़रना होता है और इसमें किसी तरह की कोई नरमी नहीं बरती जाती; क्योंकि दवाओं के उपयोग से आख़िर सवाल मरीजों की ज़िन्दगी का जुड़ा होता है।