उत्तराखंड में भाजपा अध्यक्ष पद पर तीरथ सिंह रावत का मनोनयन उतना ही अप्रत्याशित रहा जितना राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में दोबारा नितिन गडकरी की ताजपोशी की तैयारियों के बावजूद राजनाथ सिंह का पार्टी अध्यक्ष बनना. इस पूरे घटनाक्रम ने यह भी साबित किया कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता.
गडकरी की अध्यक्षता के अंतिम दिनों के दौरान उत्तराखंड में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव का नाटक रचने के साथ-साथ उसका पटाक्षेप भी कर दिया गया था. अध्यक्ष पद के लिए विधायक तीरथ सिंह रावत और और पूर्व मंत्री त्रिवेंद्र रावत ने नामांकन किया था. तीरथ सिंह को पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल का खुला समर्थन था तो अंतिम क्षणों में नामांकन करने वाले त्रिवेंद्र रावत पर पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का वरदहस्त था.
अध्यक्ष पद के लिए होने वाले संभावित मतदान में 74 मतदाता थे. तीरथ सिंह ने नामांकन के पांच सेट भरे थे. हर सेट में 10 मतदाताओं के हस्ताक्षर होते हैं. इस लिहाज से 50 मतदाताओं का उनके साथ होना लगभग तय था. यानी चुनाव होने की स्थिति में नतीजा उनके पक्ष में आना निश्चित था. त्रिवेंद्र रावत नामांकन के लिए अंतिम क्षणों में सामने आए थे. बताते हैं कि नामांकन तक आम सहमति न बनने पर कोश्यारी खेमा तीरथ के लिए मैदान खाली छोड़ना नहीं चाहता था. पर्यवेक्षक के रूप में वरिष्ठ नेता विजय गोयल देहरादून आए थे. आलाकमान की इच्छा थी कि सर्वसम्मति से किसी और को अध्यक्ष बनाया जाए. सूत्र बताते हैं कि जनवरी के आखिर तक पार्टी का कोर ग्रुप पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को पार्टी अध्यक्ष बनाना चाहता था.