जुलाई के महीने की बरसाती साँझ अभी ढलनी शुरू नहीं हुई थी। लेकिन घटाओं से अटा हुआ आकाश गहरे अँधियारे के साथ जयपुर की सरहदों पर उतर आया था। बादल बदहवास थे, कडक़ रहे थे; लेकिन बरस नहीं रहे थे। तभी सन्नाटे में डूबे पुलिस कंट्रोल का फोन बज उठा। इससे पहले कि ड्यूटी पर तैनात हवलदार नपे-तुले अंदाज़ में बोलता, किसी मासूम की सुबकती हुई आवाज़ सुनायी दी- ‘अंकल मुझे यहाँ से निकालो…, मुझे मम्मी के पास जाना है। …मुझे डर लग रहा है। ये लोग मुझे डराते हैं। …मुझे जवाहर नगर के मकान में कमरे में बन्द कर रखा है। … अंकल! प्लीज जल्दी करो…।’ इससे पहले कि बोखलाया हुआ हवलदार कुछ पूछता फोन कट चुका था। ख़बर रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। अगले ही पल स्टॉफ सँभला और जवाहर नगर थाना प्रभारी अरुण पूनिया को इत्तला दी। जिस मोबाइल नंबर से फोन किया गया था, पूनिया ने तत्काल उस पर सम्पर्क किया। लडक़ी की आवाज़ काँप रही थी। लगता था कि वह ख़ौफ़ से थर्रायी हुई थी। …डरी-सहमी हुई सी लरजती आवाज़ में बमुश्किल इतना ही बता पायी- ‘मैं जवाहर नगर सेक्टर-1 में बत्रा परिवार के बंगले में क़ैद हूँ….।’’ पुलिस को हरकत में आने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। पीसीआर चेतक पर तैनात पुलिस ने कोई 10 मिनट में बत्रा परिवार का घर तलाश लिया और लडक़ी को दस्तयाब कर लिया।
17 वर्षीय चिरैया (दस्तयाब लडक़ी का काल्पनिक नाम) ने अपनी व्यथा बयाँ करते हुए बताया- ‘मैं ओडिशा की रहने वाली हूँ। कोई दो महीने पहले उसकी मुँह बोली मौसी अनीता उसे यह कहकर दिल्ली ले आयी कि वहाँ उसे काम दिलाएगी। दिल्ली में मौसी उसे अनुज नामक व्यक्ति को सौंपकर चली गयी। बाद में अनुज ने उसे प्रकाश नामक व्यक्ति के हवाले कर दिया। प्रकाश उसे जयपुर ले आया, जहाँ उसने 51,000 रुपये लेकर बत्रा परिवार को मुझे सौंप दिया। बत्रा परिवार मुझसे जमकर काम कराता। यंत्रणा देता। डराता-धमकाता और रूखी-सूखी देकर कमरे में बन्द रखता। …गाँव नहीं जाने देता।’
उधर बत्रा परिवार के अनुज बत्रा परिवार का कहना था कि हमें दो जुड़वाँ बच्चों की देखभाल करानी थी। हमने जय माता दी एजेंसी के प्रकाश से सम्पर्क किया। बातचीत के वह इस लडक़ी को बालिग़ बताते हुए 51,000 रुपये लेकर इसको हमारे हवाले कर गया। हमने जन्म प्रमाण-पत्र माँगा, तो प्रकाश यह कहकर चला गया कि 15-20 दिन में भिजवा देगा। लेकन अभी तक नहीं भिजवाया। लडक़ी गाँव जाना चाहती थी; लेकिन हमने सुरक्षा की दृष्टि से उसे अकेले नहीं जाने दिया। पुलिस ने बत्रा परिवार के अनुज, रुचि, प्रकाश और अनीता के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया है।
मोहब्बत में फँसाकर बेचा
दीपा (काल्पनिक नाम) अरमान की मोहब्बत में इस क़दर दीवानी थी कि हर पल उसकी आँखों में अरमान का ही चेहरा समाया रहता था। तन-से-तन मिला, तो कथित मोहब्बत भी गहरी होती चली गयी। देह की अनवरत यात्रा ने दीपा में कामना का ग़ज़ब तूफ़ान पैदा कर दिया था। अब उसकी आरज़ू अलग-अलग रहकर मिलने से कहीं आगे दबाव तक बढ़ गयी थी कि अब शादी कर लो। जिस लडक़े पर दीपा जान छिडक़ती थी, वह इसे मज़हब के तराजू पर तोलने लग गया कि हमारी शादी मुमकिन नहीं। रिश्तों की बुनियाद सच पर नहीं, झूठ पर टिकी थी; लिहाज़ा उसने कहा कि कहीं भाग चलते हैं। भोली-भाली दीपा को कहाँ पता था कि प्रेमी के मन में दग़ाबाज़ी का ख़याल पल रहा है। यही हुआ कि अरमान दीपा को ओडिशा (उड़ीसा) से भगा लाया, और कोटा के बारां शहर में 50,000 रुपये में बेचकर फ़रार हो गया। ख़रीददार ने लडक़ी का देह-शोषण किया। जब जी भर गया, तो कोटा के नयापुरा निवासी कुंजबिहारी मीणा को 50,000 रुपये में बेच दिया। जब पुलिस को इसकी भनक लगी, तो उसने लडक़ी को दस्तयाब कर लिया। अभी आरोपियों की तलाश जारी है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
अपराध विषेशज्ञों का कहना है कि प्रेम के नाम पर बहेलियों की तरह लड़कियों को फँसाने और बेच देने का खेल आज कल ख़ूब चल रहा है। लड़कियाँ समझ ही नहीं पातीं कि जो शख़्स झूठी मोहब्बत का मुखौटा पहने है, वह उसका जिस्म टटोल रहा होता है। यह बात सिर्फ़ किताबी लगती है कि बदलते ज़माने के साथ स्त्रियों में शौर्य और परिपक्वता का समावेश हुआ है। जिस स्त्री शरीर को पुरुष समाज में आज भी बहुतायत में लोग चीज़ यानी वस्तु समझते हैं, उसी शरीर को महिलाएँ हथियार बनाकर सबक़ सिखाना सीख गयी हैं। लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे पूरी तरह जुदा है। आम पुरुषों को लड़कियों में जिस्म ही दिखता है। ऐसे पुरुष मुखौटा भले ही शराफ़त का ओढ़ लें; लेकिन उनकी आँखें औरतों का जिस्म ही टटोलती रहती हैं। हाल यह है कि लालच देकर या मोहब्बत के नाम पर या ज़ोर-जबरदस्ती, जैसे भी हो बड़े पैमाने पर बच्चियों को, किशोरियों को, युवतियों को, यहाँ तक कि महिलाओं को जिस्मफ़रोशी के धन्धे में धकेला जा रहा है। हाल यह है कि महिला तस्करी का कारोबार एक बड़े और विश्वव्यापी कारोबार में तब्दील हो चुका है।