डिजिटल धोखा: सोशल मीडिया पर फ़र्जी लाइक्स, फॉलोअर्स का ख़ूब फल-फूल रहा धंधा

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नक़ली फॉलोअर्स, लाइक, कमेंट और व्यूज से लेकर प्रतिद्वंद्वी की वेबसाइट क्रैश करने तक हर सेवा धंधेबाज़ों की तश्तरी में तैयार है। तहलका एसआईटी की ख़ास जाँच रिपोर्ट :-

दुनिया भर में मशहूर हस्तियों और नामी लोगों ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी पोस्ट्स के ज़्यादा व्यूज दिखाने या फ़र्जी फॉलोअर्स संख्या बनाने के आरोपों को लेकर समय-समय पर सुख़ियाँ बटोरी हैं। सोशल मीडिया पर देखे जाने वाले व्यूज और लाइक करने की बढ़ी हुई संख्या अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करने का सबसे आसान तरीक़ा है। लोकप्रिय ब्रांड एंडोर्समेंट हासिल करने के लिए सोशल मीडिया हस्तियों और नामी लोगों के बीच यह एक आम बात है।

एक हालिया मामला प्रसिद्ध बॉलीवुड गायक और रैपर बादशाह का है, जिन्होंने दावा किया है कि उनके गीत के वीडियो- ‘पागल है’ को यूट्यूब पर रिलीज होते ही पहले ही दिन 75 मिलियन बार देखा गया था। कई रिपोट्र्स ने यह भी दावा किया कि इसने इसे यूट्यूब पर पहले दिन का सबसे लोकप्रिय वीडियो बना दिया। जाँच के बाद मुम्बई पुलिस ने पाया कि बादशाह ने विभिन्न साइटों को कुल 72 लाख रुपये का भुगतान किया, जो उनके वीडियो को लोकप्रिय करने के लिए फ़र्जी लाइक करवाते हैं। बादशाह अपने ऊपर लगे इन आरोपों को ख़ारिज़ कर चुके हैं।

हालाँकि बादशाह अकेले नहीं, जो सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। भारत के प्रमुख राजनेताओं के कितने ही नक़ली फॉलोअर्स हैं, इस बारे में कई चर्चाएँ सामने आती रही हैं। कभी-कभी उनके पूरे कथित फॉलोअर्स में से क़रीब आधे नक़ली होते हैं। लेकिन सिर्फ़ ऑनलाइन ही क्यों? ऑफलाइन देखो! राजनीतिक रैलियों और प्रचार में सबसे आम तरीक़ों में से एक है- स्टेडियम / सभा-स्थल में भीड़ दिखाना। ऐसे लोग जिन्हें पता ही नहीं होता कि मंच पर क्या हो रहा है? पैसे, शराब और भोजन का लालच देकर रैली स्थल पर उन्हें बुलाया जाता है। वे वास्तव में नक़ली श्रोता हैं। ऑफलाइन, सिर्फ़ उस कार्यक्रम भर के लिए। क्या यह क़ानूनी रूप से ग़लत है? बिलकुल नहीं। क्या यह नैतिक रूप से ग़लत है? हाँ, निश्चित ही।

बादशाह अपनी प्रोफाइल को बूस्ट करने के लिए बैंडवैगन इफेक्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं। विश्व रिकॉर्ड को उनकी उपलब्धियों की सूची में जोड़ा जा सकता है, और प्रचार के लिए ब्रांडों और एजेंसियों के साथ उनकी सौदेबाज़ी की क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

भारत में फ़िल्म निर्माता हर समय इसका इस्तेमाल करते हैं। जब वे दावा करते हैं कि उनकी फ़िल्म 100 करोड़ रुपये की फ़िल्म है, तो वे परोक्ष रूप से यह कह रहे हैं कि चूँकि इतने सारे लोगों ने इसे देखा है, इसलिए फ़िल्म वास्तव में अच्छी होनी चाहिए। और यह उन लोगों को फोमो (फियर ऑफ मिसिंग आउट) संकेत (सामने वाले के दिमाग़ में यह भय भरना कि उसने यदि इसे नहीं देखा, तो वह एक शानदार चीज़ देखने से वंचित होने वाला है) भेजता है। यदि 100 करोड़ रुपये वैध रूप से अर्जित किये गये थे (और फ़र्जी रूप से उत्पन्न नहीं हुए थे, जो कि अवैध है), तो यह फोमो बनाने का एक अच्छा तरीक़ा है।

लेकिन बादशाह ने अपने 100 करोड़ रुपये पाने के लिए, जो एक विश्व रिकॉर्ड है; नक़ली लाइक्स और कमेंट्स का सहारा लिया। सीधे शब्दों में कहें, तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिए लाइक, फॉलोअर्स या व्यू ख़रीदना ग़ैर-क़ानूनी नहीं है; क्योंकि ऐसा कोई विशिष्ट अधिनियम या क़ानूनी प्रावधान नहीं है, जो सीधे तौर पर इस तरह के कृत्य पर रोक लगाता है या जिस पर मुक़दमा दायर हो सकता हो। लेकिन फॉलोअर्स की संख्या या व्यूज की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से फ़र्जी अकाउंट बनाने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ भारतीय दण्ड संहिता की धारा-468 के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है। भा.दं.सं. का यह विशेष खण्ड धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाज़ी के अपराध से सम्बन्धित है।

क़ानूनी प्रावधान की ज़रूरत

इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए भारत को एक ऐसे क़ानून की ज़रूरत है, जो इस समस्या से पूरी तरह निपटे। ऑनलाइन झूठ और हेराफेरी से बचने के लिए सुरक्षा अधिनियम को अक्टूबर, 2019 में सिंगापुर सरकार ने अधिसूचित किया था। इस अधिनियम में समन्वित फ़र्जी आचरण के ख़िलाफ़ उपयोगकर्ताओं का पता लगाने, नियंत्रित करने और उनकी सुरक्षा करने के उपाय शामिल हैं। यह अधिनियम सोशल मीडिया खातों और बोट (इंटरनेट पर स्वतंत्र प्रोग्राम) के दुरुपयोग से सम्बन्धित चिन्ताओं को भी दूर करता है। एक अन्य उल्लेखनीय उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका का है, जिसके पास हाल तक क़ानून के इस क्षेत्र से सम्बन्धित कोई क़ानून नहीं था। लेकिन 2019 में एक पूर्ववर्ती समझौते के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका ने फ़र्जी खातों से नक़ली गतिविधि का उपयोग करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फ़र्जी फॉलोअर्स बनाने, लाइक की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया।

लेकिन भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फ़र्जी फॉलोअर्स, लाइक और व्यूज की बिक्री बेरोकटोक जारी है। संख्या जितनी अधिक होगी, आप उतनी ही अधिक मूल्यवान इकाई बनेंगे। इन्फ्लुएंसर्स (जो ब्रांडों के लिए सम्भावित विज्ञापनदाताओं के रूप में कार्य करते हैं), विशेष रूप से अपनी सोशल मीडिया उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिए अपने फॉलोअर्स को बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। और जब माँग होती है, तो आपूर्ति भी होती है। दिल्ली में कई डिजिटल मीडिया कंसल्टेंसी हैं, जो फॉलोअर्स बेचने का दावा करती हैं। इन धंधेबाज़ों ने इस डिमांड को पैसा बनाने वाले सफल उद्यम में बदल दिया है।

‘तहलका’ ने सच्चाई का पता लगाने के लिए जाँच करने की ठानी। और इसमें चौंकाने वाले ख़ुलासे हुए। दिल्ली स्थित कंसल्टेंसी पूर्व निर्धारित राशि के लिए फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसी लोकप्रिय सोशल मीडिया साइटों पर फॉलोअर्स, नक़ली कमेंट्स, लाइक और टिप्पणियाँ प्रदान करने का दावा करती है। हमने ख़ुद को सम्भावित ग्राहकों के रूप में पेश किया और दिल्ली स्थित एमडीईईजेड, ई-कॉमर्स समाधान सॉफ्टवेयर कम्पनी के दो भागीदारों सुहैब और उज़ैर से मुलाक़ात की। ये मुलाक़ात दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में हुई थी। हमने सुहैब और उज़ैर से कहा कि हम एक न्यूज वेबसाइट और एक यू ट्यूब चैनल लेकर आ रहे हैं। और उनके लॉन्च के पहले दिन से हम अपने उत्पाद के लिए लाखों में सोशल मीडिया व्यू, लाइक्स, कमेंट्स, फॉलोअर्स जेनरेट करना चाहते हैं। सुहैब और उज़ैर ने हमारी माँग पर तुरन्त ‘हाँ’ कहा और कहा कि पैसे से सब कुछ सम्भव है। बिना किसी झिझक के वे मौखिक रूप से हमारे सलाहकार बनने के लिए सहमत हो गये। और हमसे कहा कि हमें अपनी माँग पूरी करने के लिए उन्हें पैसे देने होंगे; क्योंकि सोशल मीडिया पर सब कुछ पेड है। हमारे बजट को जानने के बाद दोनों ने हमें उन सेवाओं के बारे में बताना शुरू किया, जो वे हमें प्रदान करेंगे।

 

यह पूछे जाने पर कि वे हमारे यूट्यूब चैनल के लॉन्च के पहले दिन से एक लाख व्यूज कैसे देंगे? शोएब और उज़ैर ने एक साथ विस्तार से बताया।

रिपोर्टर : मान लीजिये मुझे पहले दिन अपने चैनल पर एक लाख व्यूज चाहिए। पहले दिन, यूट्यूब पर… जब मैंने चैनल लॉन्च किया, पहला वीडियो डाला पहले दिन मुझे यूट्यूब पर एक लाख व्यूज चाहिए।

 शोएब : बिलकुल सम्भव है सर! प्रति कमेंट का चार्ज रहता है। ठीक है सर! …आप कितने लोगों तक पहुँच रहे हैं, ये बजट पर निर्भर करता है… जितना बजट होगा, उतने ही ज़्यादा फॉलोअर्स।

 

रिपोर्टर : समझा नहीं मैं आपकी बात, 24 घंटे में?

उज़ैर : आपका कहना यह है कि आपको लाखों व्यूज चाहिए।

रिपोर्टर : पहले दिन।

 उज़ैर : मैंने वीडियो डाली… 12 घंटे मैं मुझे इतने चाहिए। मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि 12 लाख व्यूज चाहिए। वो चीज़ तो हासिल करने योग्य हो जाएगी। हम लगाएँगे पैसा वो हो जाएँगे।

जैसे-जैसे बैठक आगे बढ़ी, शोएब ने और ख़ुलासा किया। उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ मामलों में वह हमारे उत्पाद के लिए नक़ली व्यूज का प्रबन्ध करेंगे।

शोएब : और ऐसे ही कुछ मामले नक़ली रिव्यू के भी डलवाने पड़ते हैं।

रिपोर्टर : नक़ली व्यूज…वो कैसे?

शोएब : सर! उसकी भी सर्विस होती है। ख़ास कुछ डेटा हमारे पास है, उसे इस्तेमाल कर सकते हैं। फेक रिव्यू डलवाने पड़ते हैं। उसके भी सर चार्ज हैं, 100 रुपये प्रति व्यू और जो भी चार्ज हैं। क्योंकि इसमें असलियत तभी आती है, जब आपका आईपी ट्रैक होता है। आपका आईपी, आपका ईमेल और आईडी ट्रैक होता है। अगर वो एक ही बन्दे से करवा दिया 100 पेज बनाकर, तो वो नक़ली लगता है। नीचे कर दिया जाता है, सच्चाई लाने के लिए उनके अलग आईपी पते पर लोग बैठे होते हैं, वो रिव्यू डलवाते हैं।

शोएब : कुछ मामलों में हम अपने उत्पाद के लिए नक़ली रिव्यू का प्रबन्ध करेंगे। वास्तविक दिखने के लिए हम विभिन्न आईपी पतों से नक़ली रिव्यू का प्रबन्ध करेंगे, अन्यथा हम पकड़े जाएँगे। और हमारी वेबसाइट को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा। एक नक़ली व्यू की क़ीमत 100 रुपये होगी।

शोएब ने ‘फेक रिव्यू’ का कारण भी बताया।

रिपोर्टर : किस चीज़ के रिव्यू?

शोएब : सर! उदाहरण के लिए जैसा हमारा कोई ब्रांड चल नहीं रहा, किसी ब्रांड को चलवाने के लिए नक़ली रिव्यू डालेंगे।

शोएब ने समझाया कि हमारे ब्रांड को चलाने के लिए हम नक़ली रिव्यू के लिए जाएँगे। इसके बाद शोएब समझाया कि ‘बीओटी’

क्या है?

रिपोर्टर : और उस के लिए हम लोग आपको हायर भी कर रहे हैं, जो भी बजट होगा आपका? अब वो चाहिए नक़ली हो या असली हो, वो सब आपको देखना है… बस आप ये ध्यान रखिएगा, जहाँ आप नक़ली इस्तेमाल कर रहे हैं, वो चीज़ कहीं यहाँ न आ जाए।

शोएब : सर! यही महत्त्वपूर्ण है…, वरना तो हम अपने हैंड से भी करवा सकते हैं। लेकिन मूल रूप से हमारे बंदे बैठे हैं; अलग-अलग जगह पर, अलग-अलग आईडी पर। वे हर किसी चीज़ के लिए होते हैं, ठीक से सेटअप है। वे इसी चीज़ के लिए होते हैं। उनका काम ही यही है सर! अलग-अलग जगह पर व्यूज डलवाने का।

रिपोर्टर : उसे बोट बोलते हैं न?

शोएब : हाँ।

उज़ैर : ऑर्गेनिक रीच पेड हो जाएगी इससे।

शोएब : सर! ये 2 टाइप के होते हैं, एक तो ओरिजिनल होते हैं, जो ओरिजिनल होते हैं। बोट में पकड़ हो जाती है, उन पर आप इतना विश्वास नहीं कर सकते, जो छोटे लेवल पर होते हैं।

रिपोर्टर : नहीं, तो आप जो फेक बता रहे हैं; वो नक़ली ही तो हुए?

शोएब : सर! इनको आप शब्दावली दे सकते हैं; लेकिन सर! ये असली हैं।

रिपोर्टर : आप कह सकते हैं बोट हैं?

शोएब : आप कह सकते हैं। लेकिन हमारे लिए तो नक़ली ही हैं।

शोएब बताते हैं कि अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग आईडी वाले लोग ब्रांड के लिए नक़ली व्यूज कैसे लिखते हैं। वह उन्हें बोट कहते हैं।

जैसे-जैसे शोएब और उज़ैर से मुलाक़ात आगे बढ़ती है, वे हमें अन्दर की कहानी बताते हैं कि सोशल मीडिया को कैसे मैनेज किया जाता है? इस शृंखला में उन्होंने अब ख़ुलासा किया कि सोशल मीडिया पर वीडियो कैसे वायरल होते हैं? यह सब भुगतान पर किया जाता है। दोनों के अनुसार, यह सच्चे नहीं।

 

रिपोर्टर : अच्छा इसके अलावा अगर हमको वीडियो वायरल करवाने हैं?

उज़ैर : वायरल करवाना है?

शोएब : सर! वायरल करवाने के लिए न अलग रणनीति इस्तेमाल की जाती है।

उज़ैर : आजकल मीम्स से भी चीज़ वायरल होती है। वो स्ट्रैटेजी भी लेकर चलना पड़ता है।

शोएब : वो भी सर!

रिपोर्टर : अच्छा यह वायरल भी पेड ही होगा?

शोएब : सर! वो ऑर्गेनिक बहुत कम केस में होता है। हर चीज़ का वायरल पेड ही होता है; …ऑर्गेनिक कुछ नहीं होता। पता है सर! जो चीज़ वायरल हो रही होती है न, उसमें 3-4 लोग बैठे होते हैं। …उनको पता होता है कि वायरल करवानी है, वो पेड ही होता है।

रिपोर्टर : अपने आप कुछ नहीं होता। …ऑर्गेनिक कुछ नहीं।

शोएब ने आगे ख़ुलासा किया कि पैसों के ज़रिये वह छवि बदलने में हमारी मदद करेंगे। उनके मुताबिक नेगेटिव मार्केटिंग किसी के लिए भी अच्छी होती है।

शोएब : सर! इमेज तो बदलती रहती है, पैसे देकर ट्रेंडिंग करवा देंगे अच्छे से। …ज़्यादा लोगों के दिमाग़ में पहुँचा देंगे। …अच्छा पैसा लगा देंगे सर, वो बदल जाएँगे। सर! असल में नेगेटिव मार्केटिंग बहुत अच्छी चीज़ होती है। जो हम ग़लत कर रहे हैं न, वो हमारे फ़ायदे में होता है।

शोएब ने कहा कि पैसे से वह हमारे ब्रांड की छवि बदल देंगे। वह पैसे से हमारे ब्रांड को ट्रेंड करवाकर सोशल मीडिया पर लाएँगे, जिससे लोगों को हमारे ब्रांड के बारे में पता चलेगा।

रिपोर्टर : अच्छा, अगर किसी को बदनाम करना है, तो कैसे करेंगे? वायरल करना है वीडियो।

शोएब : सर! ये उनके लिए फ़ायदा भी हो सकता है। अगर पहले ही सेटअप कर लिया है। लेकिन वो ही है सर, पेड विज्ञापन। आप किसी से करवा सकते हैं, बड़े लोगों से बुरा करवा सकते हैं। सर! एक तरह से यह रिसर्च होती है।

उज़ैर : हमारे कंटेंट के हिसाब से सर! जैसे कि अगर हम शेफ की बात कर रहे हैं, एक शेफ को बदनाम करना है, उसके खाने की दूसरे शेफ से बुराई करवा लो, वो ख़ुद ही बदनाम हो जाएगा। वो पहले से ही तीन लाख तक पहुँच जाएगा।

रिपोर्टर : वो शेफ है आपके पास?

उज़ैर : बिलकुल।

रिपोर्टर : वो महाराज अगर मना कर दे?

उज़ैर : नहीं मना करेगा सर! एक मना करेगा, तो दूसरा हाँ कर देगा…। ऐसा थोड़ी है कि एक ही शेफ है। हमारे पास मल्टीपल लोग हैं।

रिपोर्टर : मतलब अगर मुझे किसी के फाइव स्टार होटल के खाने की बुराई करनी है? जबकि खाना बहुत अच्छा है, तो मैं काम आपको दे दूँ; आप शेफ से करवा देंगे?

उज़ैर : हाँ सर!

रिपोर्टर : शेफ ने मना कर दिया?

उज़ैर : सर! एक शेफ नहीं है।

रिपोर्टर : 10 ने मना कर दिया…?

उज़ैर : कुछ और तरीक़ा इस्तेमाल करेंगे।

शोएब : पेड एडवरटाइजिंग भी है सर! पेड एड चला दिया, फेक रिव्यू कर दिया, किसी को अगर डाउन ग्रेड करना होता है, आप ऑनलाइन प्रेजेंस पर अटैक करते हैं। ये इमेज पर अटैक करते हैं, ऑनलाइन जो पोर्टल्स हैं या चीज़े हैं। उन पर नक़ली व्यूज डाल सकते हैं। वो अपने आप डाउन ग्रेड हो जाता है।

रिपोर्टर : और ट्विटर पर ट्रेंड कैसे होगी कोई भी चीज़?

उज़ैर : ट्विटर पर सर? वो यह है कि ट्वीट करना पड़ता है सर! उसके लिए भी हायरिंग होती है। …आप देखो, राजनीतिक पार्टियाँ भी करती हैं। …ट्वीट करना पड़ता है, …मल्टीपल लॉगऑन से।