चैनल्स की टीआरपी बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर व्यूअरशिप बढ़ाने का खेल किया जाता है। इस खेल में मोटी रक़म भी ख़र्च की जाती है। इसी के चलते 13 जनवरी, 2022 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बार्क को तत्काल प्रभाव से समाचार चैनल्स की व्यूअरशिप रेटिंग जारी करने के लिए कहा था। मीडिया उद्योग के अनैतिक खिलाड़ी टीआरपी में हेरफेर करने के लिए बेईमान अधिकारियों के साथ कैसे साँठगाँठ करते हैं? तहलका एसआईटी की जाँच रिपोर्ट :-
भारत जैसे देश में जहाँ कई टेलीविजन चैनल्स हैं। आप कैसे पता लगाते हैं कि कौन-से चैनल्स दूसरों की तुलना में अधिक देखे जाते हैं? इसके लिए टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) है। यह एक उपकरण है, जिसका उपयोग टेलीविजन कार्यक्रमों में दर्शकों की संख्या को मापने के लिए किया जाता है। सरल शब्दों में टीआरपी इस बात का अंदाज़ा लगाती है कि कितने लोग किसी विशेष कार्यक्रम या विज्ञापन को देख रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि भारत में टीआरपी कितनी भरोसेमंद है? क्या इसे किसी विशेष चैनल के लाभ के लिए फिक्स किया जा सकता है? क्या टीआरपी रेटिंग सुधारने के लिए किसी चैनल या कार्यक्रम को देखने के लिए लोगों को रिश्वत दी जा सकती है?
सन् 2018 में ग्वालियर में सात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था। इनमें से तीन लोगों को अवैध रूप से मध्य प्रदेश में एक विशेष हिन्दी टीवी समाचार चैनल के पक्ष में टीआरपी रेटिंग तय करने के लिए गिरफ़्तार किया गया। इस घोटाले में शामिल लोगों ने कई घरों में टीआरपी मीटर लगाये थे और उन्हें सिर्फ़ एक विशेष हिन्दी समाचार चैनल देखने के लिए आर्थिक लाभ की पेशकश की गयी थी। इसके पीछे का मक़सद कपटपूर्ण तरीक़ों से चैनल की टीआरपी रेटिंग बढ़ाना था।
इसी तरह सन् 2012 में भारत में टीआरपी रेटिंग देने के लिए ज़िम्मेदार एक अन्य एजेंसी पर टीवी रेटिंग तय करने के लिए एक अन्य प्रमुख हिन्दी समाचार चैनल ने मुक़दमा दायर किया गया था। बाद में प्रसारकों, विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा गठित ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) इंडिया द्वारा इसे बदल दिया गया। वर्तमान में बार्क उद्योग को रेटिंग जारी करता है। अब बार्क द्वारा नियुक्त विक्रेता लोगों के घरों में स्थापित मीटर या बार-ओ-मीटर से चैनल्स को डाटा की आपूर्ति करते हैं, जो भारत में 32,000 करोड़ रुपये के विज्ञापन तय करते हैं।
अक्टूबर, 2020 में बार्क को कुछ प्रभावशाली प्रसारकों द्वारा चैनल रेटिंग में धाँधली के आरोपों के बाद रेटिंग को निलंबित करने के लिए मजबूर किया गया। टीआरपी के हेरफेर का यह खेल तब सामने आया, जब मुम्बई पुलिस ने संदिग्ध रुझानों के बारे में बार्क, एक उपभोक्ता अंतर्दृष्टि कम्पनी और एजेंसी के विक्रेताओं में से एक ‘हंसा’ से प्राप्त शिकायतों के आधार पर एक रैकेट का भंडाफोड़ किया। इसके बाद 13 जनवरी, 2022 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बार्क को तत्काल प्रभाव से समाचार चैनल्स की व्यूअरशिप रेटिंग जारी करने के लिए कहा। इन आरोपों के मद्देनज़र भारत में टीआरपी रेटिंग फिक्स की जा रही थी। संदिग्ध रुझानों के बारे में बार्क और हंसा से प्राप्त शिकायतों के आधार पर मुम्बई पुलिस द्वारा एक रैकेट का भंडाफोड़ करने से पहले ‘तहलका’ एसआईटी टीम ने एक पड़ताल की। इस जाँच-पड़ताल में चौंकाने वाले ख़ुलासे हुए।
‘तहलका’ ने पूरे भारत में फैले कई टीआरपी खिलाडिय़ों से बातचीत की, जो पैसे के बदले में एक चैनल की रेटिंग तय करने के लिए तैयार हुए। इन लोगों के पास अलग-अलग रेट के अलग-अलग ऑफर हैं। नये लॉन्च किये गये समाचार चैनल के मालिक के रूप में हम पहली बार एक मल्टी सिस्टम ऑपरेटर (एमएसओ) से मिले, जिसके पास एक बड़े भारतीय राज्य की राजधानी में 1,50,000 से अधिक सेट टॉप बॉक्स थे। एमएसओ एक और कम्पनी का मालिक है।
वह अपनी कम्पनी के सीईओ राहुल शर्मा (बदला हुआ नाम) और अपनी सहयोगी कम्पनी के राष्ट्रीय प्रमुख राजीव सिंह (बदला हुआ नाम) के साथ दिल्ली में हमसे मिलने आया था। उनकी दोनों फर्म मीडिया वितरण और विज्ञापन बिक्री में लगी हुई थीं। नाम न बताने की शर्त पर एमएसओ पंकज सिंह (बदला हुआ नाम) को यह कहने में कोई झिझक नहीं हुई कि वह डिस्ट्रीब्यूशन (वितरण) और टीआरपी फिक्सिंग के काम से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि वह हमारे चैनल का डिस्ट्रीब्यूशन करेंगे और हमें ऐसे लोगों से मिलाने में मदद करेंगे, जो लोगों के घरों में मीटर लगाकर टीआरपी तय कर रहे हैं। पंकज सिंह ने ‘गो’ (किसी न्यूज चैनल का सांकेतिक काल्पनिक नाम) लेते हुए ‘तहलका’ को उसके बारे में बताया, जिसने ऑन एयर होते ही अपनी टीआरपी में हेराफेरी कर ली।
हमने पंकज से कहा कि हम दो चीज़ों पर आगे बढ़ रहे हैं। पहला डिस्ट्रीब्यूशन है और दूसरा यह है कि रेटिंग कैसे प्राप्त करें। हमने पंकज से कहा कि आप इसमें हमारी कैसे मदद कर सकते हैं? जवाब में पंकज ने कहा- ‘सर! मेरी नज़र में, और मैं ग़लत हो सकता हूँ; लेकिन मैं सिर्फ़ अपना सुझाव दे रहा हूँ। क्योंकि बाज़ार में एक धारणा है कि हम डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स दोनों में हैं। देखें कि उस चैनल को कब लॉन्च किया गया था; और इसमें कोई शक नहीं कि इसने बहुत पैसा लगाया। साथ ही उन्होंने उस रेटिंग वाले हिस्से के लिए भी आधार तैयार किया। हमारे यह पूछने पर कि क्या यह प्रबंधन करने में सक्षम था? क्या आपको यक़ीन है? पंकज ने कहा- ‘हाँ, हाँ; बिलकुल। बाज़ार में सब जानते हैं।’ यह पूछे जाने पर कि कैसे मैनेज किया? पंकज ने जवाब दिया- ‘ऐसा होता है सर! यह आसान है। यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह किया जा सकता है।’ हमने पूछा कि आप कह रहे हैं कि चैनल ने टीआरपी का प्रबंधन किया? इसके जवाब में पंकज ने कहा- ‘टीआरपी? हाँ, ऐसा किया जा सकता है। बहुत-से लोग करते हैं।’
इसके बाद पंकज ने बताया कि रेटिंग कैसे तय की जाती है, और हमें अपने भविष्य के कथित समाचार चैनल के लिए इसे निष्पादित करने की भी पेशकश की। उन्होंने कहा- ‘यह (निश्चित रूप से) किया जाएगा। लेकिन हम इसे धीरे-धीरे करेंगे, क़दम-दर-क़दम; क्योंकि हर कोई देख रहा होगा। अगर हमारी रेटिंग किसी भी कारण या सामग्री के लिए (अचानक) पाँच से 10 फ़ीसदी बढ़ जाती है, तो लोग तुरन्त उस एजेंसी को लिखना शुरू कर देंगे, जो रेटिंग देती है; यह पूछते हुए कि स्पाइक कैसे हुआ?
यह पूछे जाने पर कि आप इसे कैसे कर रहे हैं? पंकज ने बताया- ‘नये कार्यक्रम के प्रचार अभियान का उपयोग उच्च रेटिंग को सही ठहराने के लिए किया जाता है। हमने पिछली बार क्या किया था। …उन्होंने हमें प्रोग्रामिंग में अलग-अलग सामग्री लॉन्च करने के लिए कहा था। यदि यह एक टॉक शो है और आप इसे किसी सेलिब्रिटी के साथ करते हैं, तो आपको अपने विज्ञापन के साथ-साथ कुछ समाचार पत्र (वाणिज्यिक) या होर्डिंग्स पर विज्ञापन लेकर आना होगा। और फिर वह आपको एक स्पाइक देंगे। मान लीजिए वह आपको 10 ग्रास रेटिंग प्वाइंट (जीआरपी) देते हैं। अगले सप्ताह वह जीआरपी में दो, तीन या चार अंक की कमी कर देंगे। फिर वह (वृद्धि के साथ) सात-आठ जीआरपी देंगे।’
दरअसल बार्क सर्वेक्षण देश के विभिन्न स्थानों पर घरेलू नमूनों पर आधारित है। प्रत्येक को बार-ओ-मीटर कहा जाता है। यह डिवाइस वास्तविक समय में टीवी ईवेंट से एम्बेडेड ऑडियो सिग्नल पकड़ता है। वास्तविक समय में टीआरपी को प्रोसेस्ड (संसाधित) करने के लिए उन्हें बार्क इंडिया सर्वर पर वायरलेस रूप से प्रेषित करता है। लेकिन पंकज की मानें, तो बार-ओ-मीटर लगाने में लगे ग्राउंड स्टाफ घरों को चुनिंदा चैनल या प्रोग्रामिंग देखने के लिए रिश्वत देते हैं। यह पूछे जाने पर कि मीटर के ज़रिये हेरफेर किया जा रहा है, या क्या है? पंकज ने जवाब दिया- ‘उनके पास लगे मीटर घरों की सूची हैं। वह उपभोक्ताओं से उस विशेष चैनल को देखने के लिए कहेंगे।’
अब पंकज ने टीआरपी की धाँधली में बिचौलियों की भूमिका निभाने का ऑफर दिया। उन्होंने हमसे कहा कि वह हमें उन लोगों से मिलवाएँगे, जो हमें इस बारे में एक प्रस्तुति देंगे कि टीआरपी कैसे तय की जाएगी? उनके पास अपने टैरिफ कार्ड हैं। तो यह कुछ भी बड़ा नहीं है। यदि किसी सम्पर्क के माध्यम से हम उनसे मिलते हैं, तो वह आपको पूरी प्रस्तुति देंगे कि चीज़ें कैसे काम करेंगी? जैसे हम जो चाहते हैं, उसके लिए प्रति सप्ताह उनकी लागत (क़ीमत) क्या होगी? जहाँ हम आपके चैनल्स की टीआरपी उनके मौज़ूदा स्तरों से लेना चाहते हैं, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। उन्होंने अपना टैरिफ चार्ट तैयार कर लिया है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह हमारे लिए भी ऐसा करेंगे? क्या वह अन्य चैनल्स के लिए ऐसा कर रहे हैं? तो पंकज ने जवाब दिया- ‘यह पैसे का खेल है।’
पंकज ने ‘तहलका’ से कहा कि टीआरपी में हेराफेरी पैसे का खेल है। पंकज ने क़ुबूल किया कि वर्षों पहले उन्होंने ख़ुद एक न्यूज चैनल के लिए ऐसा ही किया था। उन्होंने कहा- ‘हमने इसे एक चैनल के लिए एक सप्ताह के लिए किया। हमारी उनसे बात हुई थी। तब भी उनकी दिलचस्पी थी। एक सप्ताह के लिए। उनके पास समान सामग्री थी और तीन-चार सप्ताह के लिए अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। लेकिन मैंने उन्हें पाँच से 10 जीआरपी स्पाइक की पेशकश की। फिर मैंने उन्हें एक या दो सप्ताह के लिए दिया।’
पंकज ने क़ुबूल किया कि एक हफ़्ते तक उन्होंने एक ख़ास न्यूज चैनल की रेटिंग बढ़ा दी थी। उन्होंने कहा- ‘हाँ, मैंने उनकी रेटिंग बढ़ा दी। उन्होंने तुरन्त पैसे दिये, क्योंकि हमने उन्हें दिखाया कि क्या हुआ था। जब डील होती थी, तो हर हफ़्ते या 10 दिन में रेटिंग अपने आप बढ़ जाती थी। जब एजेंसी की रिपोर्ट आयी, तो बदलाव दिखायी दे रहा था।’
पंकज सिंह से चेन्नई में हमारी दूसरी मुलाक़ात हुई। इस बार मुलाक़ात के दौरान पंकज ने चौंकाने वाला दावा किया। उन्होंने दो हफ़्ते में धोखे से किसी भी चैनल की टीआरपी बढ़ाने की पेशकश की। उन्होंने कहा- ‘आप कोई भी एक चैनल लें, जो भी आप तय करें। हम पिछले छ: से आठ हफ़्तों की इसकी रेटिंग का अध्ययन करेंगे। फिर मैं उनसे बात करूँगा कि हम उस पर नंबर कैसे प्राप्त कर सकते हैं? वह कुछ समाधान प्रदान करेंगे।’ जब आगे यह स्पष्ट किया गया कि क्या हमें अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी चैनल, हिन्दी या अंग्रेजी का सुझाव देना है? तो पंकज ने जवाब दिया- ‘हाँ; आपको देना होगा।’
दक्षिण में ही, हमें एक और बड़ा मल्टी-सिस्टम ऑपरेटर सुरेश बाबू (बदला हुआ नाम) मिला, जो टीआरपी में व्हीलिंग और डीलिंग में लगा हुआ था। हम उनसे पंकज सिंह के ज़रिये मिले थे। केबल कम्पनी के एक वरिष्ठ अधिकारी सुरेश ने दावा किया कि विभिन्न दक्षिणी क्षेत्रों में उनके वितरण के तहत 4,00,000 सेट-टॉप बॉक्स हैं। सुरेश ने भी स्वीकार किया कि उसे इस बात की पूरी जानकारी है कि सभी बार-ओ-मीटर कहाँ लगाये गये हैं।