झारखण्ड में लिखी जा चुकी चुनावी पटकथा
देश में 2024 के पूर्वाद्ध में लोकसभा चुनाव होगा। झारखण्ड का विधानसभा चुनाव भी नवंबर, 2024 तक होना है। चर्चा यह भी है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव सम्भवत: साथ ही हो जाए। जो भी हो, पर वर्ष 2024 चुनावी वर्ष होगा। इससे पहले पिछले दिनों राज्य में हुए रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव का नतीजा वर्ष 2024 की पटकथा ज़रूर लिख गया है। इस उपचुनाव की पृष्ठभूमि में कहा जा सकता है कि भाजपा व आजसू (एनडीए) गठबंधन और झामुमो, कांग्रेस व राजद (यूपीए) महागठबंधन, दोनों को 2024 के लिए अपनी-अपनी रणनीति पर विचार करना होगा।
एनडीए ने महागठबंधन के जिस विजय रथ को रोका है, वह आगे भी रोकना चाहेगा। वहीं, महागठबंधन को अपनी हार के कारणों को तलाशना होगा, तभी वह दोबारा सत्ता पर क़ाबिज़ हो सकेगा। छोटे-से उपचुनाव को दोनों तरफ़ से 2024 का सेमीफाइनल ही माना गया। चुनाव प्रचार में दोनों तरफ़ से पूरी ताक़त झोंकी गयी थी। एनडीए की तरफ़ से तीनों पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास के अलावा आजसू प्रमुख सुदेश महतो, सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी समेत भाजपा और आजसू के तमाम नेता प्रचार के लिए उतरे।
वहीं महागठबंधन की तरफ़ से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर समेत राज्य सरकार के सभी मंत्री और अन्य नेताओं ने प्रचार में पूरी ताक़त झोंक दी। यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि इसके बाद भी आख़िर ऐसा क्या हुआ कि महागठबंधन का विजय रथ रोकने में एनडीए कामयाब रहा? एनडीए की रणनीति क्या रही? यूपीए कहाँ चूक गया? उसे क्यों अपनी सीट को गँवानी पड़ी?
एनडीए को मिली जीत
बीते महीने 27 फरवरी को रामगढ़ विधानसभा का उपचुनाव हुआ था और 3 मार्च को नतीजा आया। उपचुनाव में महागठबंधन को हार मिली। एनडीए ने आख़िरकार प्रदेश में जीत का स्वाद चखा। राज्य में हेमंत सोरेन सरकार का गठन 2019 में हुआ था। इसके बाद से अब तक प्रदेश में पाँच उपचुनाव हुए। रामगढ़ पाँचवाँ उपचुनाव था। पूर्व विधायक ममता देवी को एक मामले में सज़ा होने और सदस्यता जाने के कारण यह उपचुनाव कराना पड़ा। इससे पहले के चारों उपचुनावों में महागठबंधन ने जीत हासिल किया था। रामगढ़ उपचुनाव में आजसू (एनडीए) प्रत्याशी सुनीता चौधरी ने कांग्रेस (यूपीए) प्रत्याशी बजरंग महतो को 21,977 वोटों से हराया। यह जीत बहुत कुछ कह रही। इससे यूपीए और एनडीए दोनों को सबक़ मिल गया है।
रंग लायी दोस्ती
रामगढ़ में महागठबंधन की हार का सबसे पहला कारण रहा आजसू पार्टी और भाजपा का साथ आना। रामगढ़ विधानसभा सीट का इतिहास एनडीए के साथ रहा है। वर्ष 2005 से 2014 के बीच लगातार तीन बार यहाँ से एनडीए प्रत्याशी के रूप में आजसू पार्टी के चंद्रप्रकाश चौधरी ने जीत हासिल की थी। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू अलग-अलग लड़ी। उस समय आजसू की सुनीता चौधरी को 71,038 वोट मिले थे।
भाजपा के रणजय कुमार को 31,787 वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस की ममता देवी को 99,442 वोट मिले थे। उन्होंने आजसू को 28404 वोट से हरा दिया था। यानी उस वक़्त ममता देवी के जीत का अंतर भाजपा और आजसू को मिलाकर कुल मत के योग से कम था। भाजपा और आजसू दोनों को गठबंधन नहीं करने के नुक़सान का एहसास हुआ और इस बार उपचुनाव में दोनों दल साथ मिलकर लड़े, जिसका परिणाम आशानुकूल रहा।
विश्वसनीयता पर सवाल
चुनावी आँकड़ों से इतर रामगढ़ में सत्ता विरोधी लहर का असर भी दिखा। सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए। हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता विधेयक विधानसभा से आनन-फ़ानन में पारित कर राज्यपाल के ज़रिये केंद्र के पास भेजा; लेकिन राज्यपाल ने ही विधेयक वापस कर दिया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लोगों के बीच इसे भाजपा का षड्यंत्र कहते रहे; लेकिन समझा नहीं पाये। क्योंकि विधानसभा से स्थानीयता आधारित विधेयक पारित करने के एक महीने पहले हेमंत सोरेन ने ख़ुद ही विधानसभा में बयान दिया था कि सन् 1932 का आधार बनाना कठिन है; यह क़ानूनी दाँव-पेच में फँस सकता है। इसके बाद अचानक विशेष सत्र बुलाकर विधेयक पारित करना लोगों के मन में संदेह घर कर गया कि इस मुद्दे पर केवल राजनीति हो रही है।