झारखण्ड की युवा प्रतिभा को कुन्द कर रहा जेपीएससी!

राज्य के गठन के बाद से झारखण्ड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की हर परीक्षा विवादस्पद रही है। इस बार एक साथ 7वीं से 10वीं राज्य सिविल सेवा की परीक्षा से छात्रों को विवाद रहित कुछ होने की उम्मीद जगी, लेकिन प्रारम्भिक परीक्षा (पीटी) के बाद ही विवाद शुरू हो गया। जेपीएससी ने इस बार ऐसी ग़लती की है, जो शायद ही कहीं हुई हो। पीटी परीक्षा में बिना ओएमआर शीट के ही 49 अभ्यर्थियों को पास कर दिया गया। बाद में जब मामला खुला, तो उन्हें फेल घोषित किया गया। जेपीएससी के विवाद या गड़बड़ी पर अब लोगों को आश्चर्य नहीं होता, बल्कि हैरत होती है। आख़िर इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? अभी तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। राजनीतिक बयानबाज़ी चल रही है। छात्र आन्दोलनरत हैं और ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

पश्चिम के देशों में अक्सर कहा जाता है कि यदि किसी समाज को बर्बाद करना हो, तो उसकी युवा पीढ़ी को कमज़ोर बना दो। यह बात भारतीय नीति शास्त्र भी मानता है कि समाज को आगे बढऩे से रोकने के लिए इसकी युवा पीढ़ी को रोकना सबसे सटीक उपाय है।

ऐसा लगता है कि झारखण्ड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) इन दोनों उक्तियों को पूरी तरह अंगीकार कर चुका है। तभी इसे न अपने किये पर पछतावा होता है और न ही यह विवादों से बाहर निकलने की कोशिश करता है। जेपीएससी इस देश का पहला ऐसा संस्थान है, जो उस परीक्षा के परिणाम में गड़बड़ी करता है, जिसे राज्य की प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा जाता है। पिछले 21 साल में जेपीएससी इतने विवादों में घिर चुका है कि अब लोग इस पर आश्चर्य नहीं करते, बल्कि दु:खी होते हैं। जेपीएससी की हर परीक्षा विवादों में घिरी हुई है और इसके द्वारा आयोजित हर परीक्षा का परिणाम इंसाफ़ की कसौटी पर कसे जाते ही रद्द हो जाता है। झारखण्ड जैसे राज्य के लिए यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। आयोग की इस कार्यप्रणाली के कारण राज्य की युवा प्रतिभा बर्बाद हो रही है।

पहले पास, फिर फेल

पिछले दिनों जेपीएससी ने सातवीं से दसवीं सिविल सेवा के लिए प्रारंभिक परीक्षा (पीटी) का आयोजन किया। इसका परिणाम घोषित हुआ, तो उस पर विवाद शुरू हो गया। आयोग पर गड़बड़ी के आरोप लगे। क़रीब 49 ऐसे अभ्यर्थियों को पास कर दिया गया था, जिनके रोल नंबर क्रमवार थे। मामले ने तूल पकड़ा, छात्रों का आन्दोलन शुरू हुआ, तो आयोग ने इसकी जाँच करायी। इसी क्रम में पता लगा कि इन अभ्यर्थियों का ओएमआर शीट ( यानी जिस काग़ज़ पर उन्होंने उत्तर लिखे थे) वे आयोग में हैं ही नहीं। इसके बाद आयोग ने इन 49 अभ्यायर्थियों को फेल घोषित कर दिया।

विवादों से पुराना रिश्ता

झारखण्ड राज्य का गठन 2000 में हुआ। इन 21 वर्षों में एक तो जेपीएससी छ: सिविल सेवा परीक्षा और उँगलियों पर गिनाने लायक कुछ अन्य परीक्षाओं का आयोजन कर सका है। सिविल सेवा परीक्षा हो या कोई अन्य परीक्षा उस पर विवाद सामने आता ही है। जेपीएससी की कुल 16 परीक्षाएँ सीबीआई के जाँच के दायरे में है। इनमें प्रथम, द्वितीय सिविल सेवा, मार्केटिंग सुपरवाइजर, चिकित्सक, इंजीनियर नियुक्ति, फार्मासिस्ट, व्याख्याता नियुक्ति, झारखण्ड पात्रता परीक्षा, प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति, सहकारिता पदाधिकारी, वि.वि. में डिप्टी रजिस्ट्रार की परीक्षा व अन्य शामिल हैं।

सिविल सेवा की परीक्षा की बात करें तो पहली से लेकर छठी जेपीएससी तक ऐसी कोई परीक्षा नहीं रही, जो विवादों में नहीं रही। कभी पैरवी-पुत्रों की नियुक्ति तो कभी नियम-विरुद्ध नियुक्ति के कारण जेपीएससी सुर्ख़ियों में रहा। विवादों के कारण मामला हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।

आख़िर ज़िम्मेदार कौन?

झारखण्ड हाइकोर्ट भी जेपीएससी के कारनामों से आजिज आ चुका है। कोर्ट ने पिछले दिनों एक मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी कि है कि अगर जेपीएससी संवैधानिक संस्थान नहीं होता तो इसे बन्द करने का आदेश दे देता। युवाओं का जेपीएससी पर से भरोसा उठता जा रहा है। जिन्हें पहले पास फिर फेल किया गया और उनके साथ-साथ इस परीक्षा में शामिल सात लाख से अधिक युवाओं की मन:स्थिति क्या होगी, यह समझा जा सकता है। सवाल यह है कि यदि जिन अभ्यर्थियों का ओएमआर शीट उपलब्ध नहीं है, तो फिर उन्हें पास कैसे किया गया। इस पूरे खेल में आयोग के कौन से अधिकारी और कर्मचारी शामिल हैं।

जेपीएससी के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है। साथ ही जिस अंदाज़ में जेपीएससी ने अपनी गड़बड़ी स्वीकार की है, वह अद्भुत है। उसे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है। झारखण्ड के भविष्य की कोई चिंता नहीं है। झारखण्ड के बदनामी से कुछ भी लेना-देना नहीं है। पर बदनामी का दाग तो सरकार तक पहुँच ही रही। नतजीतन इस पर राजनीति तपिश बढ़ी हुई है।

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