अवैध कारोबारी लगातार कई क़ीमती पदार्थ निकालकर हो रहे मालमाल, सरकार ख़ामोश
झारखण्ड को ग़रीब राज्य माना जाता है, जबकि इस प्रदेश की ज़मीन की कोख में अमीरी के वो निशान छिपे हैं, जो देश के दूसरे राज्य में शायद ही मिलें। भारत से खनिज के क्षेत्र में झारखण्ड का श्रेष्ठ स्थान है। खनिज संसाधनों की बहुलता के कारण ही झारखण्ड को भारत का ज़रूर प्रदेश भी कहा जाता है। यहाँ सभी धात्विक एवं अधात्विक खनिज उपलब्ध हैं।
झारखण्ड खनिज उत्पादन की दृष्टि से सम्पूर्ण भारत में सर्वोच्च स्थान पर है। इसके कारण इसे रत्नगर्भ भी कहा जाता है। मूल्य की दृष्टि से भारत के कुल खनिज उत्पादन का 26 फ़ीसदी एवं उत्पादन की दृष्टि से देश के कुल खनिज उत्पादन का लगभग 40 फ़ीसदी हिस्सा वर्तमान में अकेले झारखण्ड से निकला जाता है। कोयला, अभ्रक, लोहा, ताँबा, चीनी मिट्टी, फायर क्ले, कायनाइट, ग्रेफाइट, बॉक्साइट तथा चूना पत्थर के उत्पादन में झारखण्ड अनेक राज्यों से आगे है। एस्बेस्टस, क्वाट्र्ज तथा आणविक खनिज के उत्पादन में भी झारखण्ड का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
यहाँ अधिकांश खनिज धारवाड़ और विंध्य प्रणाली के चट्टानों से प्राप्त होता है। समय-समय पर इसकी नीलामी भी होती है। कोयला, लोहा और अन्य खनिज के बारे में दुनिया जानती है। इससे इतर यहाँ की धरती के अन्दर बहुमूल्य ख़ज़ाने छिपे हैं। इनमें से कुछ बहुमूल्य रत्न और खनिज की जानकारी है, तो कुछ के अभी केवल संकेत ही मिले हैं।
इसके बावजूद सरकार पिछले कई साल से क़दम आगे नहीं बढ़ा पा रही है। नतीजतन सरकार को इससे कोई लाभ नहीं मिल रहा। कोई राजस्व नहीं मिल रहा और ख़ज़ाना ख़ाली है। वहीं दूसरी ओर इन खज़ानों के अवैध कारोबारियों को एक-एक जगह की जानकारी है कि झारखण्ड के किस हिस्से में धरती के अन्दर कौन-सा ख़ज़ाना छिपा है? वे अवैध खुदाई से इन अनमोल खनिजों को निकालते और औने-पौने दामों पर बेचकर भी मालमाल हो रहे हैं। इस स्थिति के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों ज़िम्मेवार है। केंद्र और राज्य सरकार के समन्वय के अभाव और ढुलमुल रवैये के कारण इन अनमोल खनिजों का लाभ राज्य और देश को नहीं मिल रहा है।
कहाँ, किस खनिज का भण्डार?
झारखण्ड में लौह अयस्क धारवाड़ क्रम की चट्टानों से मिलता है। झारखण्ड में लौह अयस्क हेमेटाइट कोटि का है, जिसमें 60-68 फ़ीसदी तक लोहे का अंश पाया जाता है। यहाँ लाख अयस्क का कुल भण्डार 3,758 मिलियन टन है जो देश के कुल भण्डार का 37 फ़ीसदी है। यहाँ से हर साल क़रीब 120 लाख टन लोहे का उत्पादन होता है। लोहे का मुख्य उत्पादन पश्चिमी सिंहभूम ज़िले में गुवा से लेकर उड़ीसा में गुनाई तक फैली एक पट्टी में होता है। जिसे बड़ा जामदा कॉम्प्लेक्स कहते हैं। यह विश्व की सबसे घनी लोहे की पट्टी है। नोवामुंडी की खान पूरे एशिया की सबसे बड़ी लोहे कि खान है। मैंगनीज लौह समूह का दूसरा प्रमुख खनिज है।
झारखण्ड में मैंगनीज की प्राप्ति धारवाड़ क्रम की चट्टानों से होती है। इसका उपयोग इस्पात बनाने के साथ साथ बैटरी, विभिन्न प्रकार के रंग एवं रसायन उद्योग में किया जाता है। यहाँ मैंगनीज के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं। पहला- गुवा से लिम्टू; दूसरा- चाईबासा से बड़ा जामदा और तीसरा- बड़ा जामदा से नोवामुंडी। ताँबे के उत्पादन तथा भण्डारण के दृष्टिकोण से झारखण्ड भारत का अग्रणी राज्य है। झारखण्ड में ताँबे का कुल भण्डार 112 मिलियन टन है, जो भारत के कुल भण्डार का 25 फ़ीसदी है।
झारखण्ड राज्य में भारत का सबसे अधिक ताँबे का उत्पादन होता है। यहाँ ताँबे का खनन मुसाबनी, सरायकेला, राखामाइंस, पत्थरगोड़ा, घाटशिला तथा बहरागोड़ा में होता है। झारखण्ड में बॉक्साइट का भी भण्डार है। बॉक्साइट एल्युमिनियम का एकमात्र स्रोत है। यहाँ बॉक्साइट का कुल भण्डार 70 मिलियन टन है, जो भारत के कुल बॉक्साइट भण्डारण का 2.8 फ़ीसदी है। झारखण्ड में बॉक्साइट का सम्पूर्ण भण्डार पाट प्रदेश में संचित है। झारखण्ड के दो ज़िले गुमला एवं लोहरदगा बॉक्साइट के उत्पादन में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बॉक्साइट को गलाकर एल्युमिनियम धातु निकाली जाती है। मुरी में बॉक्साइट को गलाने का सबसे बड़ा संयंत्र है।
ज़मीन में छिपे हैं बेशक़ीमती रत्न
उधर, भूतत्व वैज्ञानिक कहते हैं कि झारखण्ड की धरती के अन्दर अनमोल रत्न भी छिपे हैं। हीरा, पन्ना, प्लेटिनम, लिथियम, क्रोमियम, निकेल, मून स्टॉन, ब्लू स्टोन समेत कई दुर्लभ और बेशक़ीमती खनिज का भण्डार है। इनमें से कुछ खनिजों के होने की पुख़्ता जानकारी सरकार को है। लेकिन कुछ ऐसे खनिज भी हैं, जिनके संकेत तो मिले हैं। फिर भी काफ़ी जानकारी मिलने के बाद भी सरकार अभी तक लाभ नहीं उठा सकी है। भू-वैज्ञानिकों की मानें, तो हीरा गुमला और सिमडेगा ज़िलों के बड़े इलाक़े में है। प्लैटिनम भी सिमडेगा ज़िले में होने के संकेत मिले हैं। मून स्टोन कोडरमा ज़िले तो वेनेडियम रांची के तमाड़ से जमशेदपुर के बीच होने का संकेत मिल चुका है। निकेल रांची और जमशेदपुर में, लिथियम तमाड़, ग्लेडियम जमशेदपुर में, कैडमियम चाईबासा और क्रोमियम रांची ज़िले में होने के संकेत मिले हैं। झारखण्ड की धरती में इन बहुमूल्य खनिज दबे होने का संकेत कोई नया नहीं है। लगभग तीन साल पहले भारती भूगर्भ सर्वेक्षण ने दर्ज़नभर रत्नों और बेशक़ीमती खनिजों के होने का राज्य सरकार को संकेत दे चुकी है। माना जा रहा है कि ज़्यादा नहीं 200 मीटर की गहराई पर ही बेहतर क्वालिटी के रत्न मौज़ूदा हैं। इसके बाद भी राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है।