जो राज्य को ब्रांड समझते हैं

सानिया निजा्एक साक्ात्कार के दौरान भावुक हो गईं
सानिया निजा्एक साक्ात्कार के दौरान भावुक हो गईं
सानिया मिर्जा एक साक्षात्कार के दौरान भावुक हो गईं.
सानिया मिर्जा एक साक्षात्कार के दौरान भावुक हो गईं.

तेलंगाना या किसी भी राज्य या सेवा को कोई ब्रांड अंबैसडर क्यों चाहिए? देश या राज्य बाजार का उत्पाद या ब्रांड नहीं होते जिन्हें बेचने के लिए उनका प्रचार-प्रसार किया जाए. बेशक कुछ खास तरह की सेवाओं और योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए- मसलन पोलियो नियंत्रण या फिर पर्यटन के विकास के लिए- अगर राज्य किसी भी जानी-मानी हस्ती की मदद लेते हैं तो इसमें एतराज लायक कुछ भी नहीं है, लेकिन किसी को अपना ब्रांड अंबैसडर नियुक्त करने की प्रवृत्ति बताती है कि हम बाजार के तौर-तरीकों से इस हद तक जकड़ गए हैं कि राज्य और ब्रांड में- सरोकार और सौदे में- फर्क नहीं करते. दुर्भाग्य से यह प्रवृत्ति अगर सबसे पहले कहीं नजर आई तो वह भाजपा शासित गुजरात में, जिसने अमिताभ बच्चन को अपना ब्रांड अंबैसडर घोषित किया.

राज्य की ब्रांडिंग का यह गुजरात मॉडल अब टीआरएस को इतना पसंद आया कि उसने सानिया मिर्जा को तेलंगाना का ब्रांड अंबैसडर बना डाला. निस्संदेह, सानिया तेलंगाना की सबसे मशहूर शख्सियतों में से एक हैं और उनके राज्य को उन पर स्वाभाविक तौर पर गर्व करना चाहिए, लेकिन उन्हें ब्रांड अंबैसडर बनाकर टीआरएस सरकार ने अचानक न सिर्फ तेलंगाना के संघर्ष को कुछ छोटा और धूमिल कर डाला, बल्कि सानिया को अनजाने में उस राजनीतिक दायरे में खींच लिया, जहां उन पर हमले शुरू हो गए.

लेकिन क्या यह सानिया का कसूर है कि एक दृष्टिहीन राजनीति उनसे ब्रांड अंबैसडर होने की उम्मीद लगा बैठी? क्या यह उचित होता कि ऐसे प्रस्ताव से वे इनकार कर देतीं? अगर ऐसा करतीं तो शायद भाजपा के जिस विधायक के लक्ष्मण ने उनकी हैदराबादी और हिंदुस्तानी पहचान पर सवाल खड़ा करते हुए उन्हें पाकिस्तान की बहू बताया, वही इसे वाकई इस बात के सबूत की तरह पेश करते कि सानिया को तेलंगाना से और भारत से प्रेम नहीं है.

हम बाजार के तौर-तरीकों से इस हद तक जकड़ गए हैं कि राज्य और ब्रांड में- सरोकार और सौदे में- फर्क नहीं करते

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