जी20 : भारत ने विश्व को दिखायी चुनौतियों की तस्वीर
शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
जी20 की मेज़बानी करना भारत के लिए गर्व की बात है। क्योंकि जी20 के देशों का पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में 85 प्रतिशत का योगदान है। विश्व की 75 प्रतिशत व्यापार इन देशों के बीच होता है और दो-तिहाई से भी ज़्यादा जनसंख्या इन देशों में निवास करती है। इसलिए जी20 शिखर सम्मेलन भारत ही नहीं, विश्व के लिए अहम है; क्योंकि इसके ज़रिये देश दुनिया में पड़ रहे ख़राब और ख़तरनाक प्रभाव को एक आम सहमति के ज़रिये रोका जा सकता है। इसके लिए भारत ही नहीं, जी20 के सभी देशों को मिलकर काम करना होगा। वैसे तो जी20 का मुख्य उद्देश्य वैश्विक वित्तीय स्थिरता के ऊपर मिलकर काम करना है; लेकिन बढ़ते वैश्विक चुनौतियों को लेकर अब अन्य मुद्दों को भी अब इसमें शामिल किया गया है। इसलिए अब जलवायु परिवर्तन को क़ाबू करना, वर्तमान माँगों और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सस्टेनेबल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
हालाँकि अन्य कई महत्त्वपूर्ण विषयों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए; लेकिन इसके पीछे 20 अलग-अलग देशों की विदेश नीति और सबका अपना-अपना एजेंडा है। यही कारण है कि सभी मुद्दों पर आम सहमति बन पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए कई बार कई देश महज़ खानापूर्ति करते हैं, तो कई बार वो जी20 की बैठक में शामिल नहीं होते; क्योंकि इसके लिए कोई बाध्यता नहीं है। यह किसी भी देश की कूटनीतिक चाल या उसके इच्छा पर निर्भर करता है कि चाहे तो वह बैठक में शामिल हो या उसका बहिष्कार कर सकता है। यही कारण है कि कुछ महीने पहले जब कश्मीर में जी20 की पर्यटन बैठक हुई, तो उसमें चीन और सऊदी अरब शामिल नहीं हुए।
ऐसा ही एक मामला सन् 2016 के जी20 शिखर सम्मेलन दौरान आया था, जब प्रसिद्ध पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते पर उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हस्ताक्षर नहीं किये; क्योंकि जी20 में किसी भी देश को किसी मुद्दे पर सहमति के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हालाँकि बाद में जो बाइडेन ने इस पर हस्ताक्षर किये।
भारत में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में चीन ने अपने प्रधानमंत्री को भेजकर सम्मेलन में महज़ खानापूर्ति की। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के न आने के पीछे कई कारण हैं। इसे हम कूटनीतिक चाल या चीन का तानाशाही रवैया कह सकते हैं। या कहें कि भारत की मेज़बानी चीन को रास नहीं आयी और ईष्र्या या द्वेष वश जिनपिंग ने ऐसा किया। वहीं रूस के शामिल नहीं होने का सबसे बड़ा कारण विभिन्न देशों का दबाव व पुतिन के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा जारी गिरफ़्तारी वारंट है। पुतिन अपनी तमाम चिन्ताओं की वजह से जी20 में शामिल नहीं हुए। वहीं सऊदी अरब के प्रमुख भी शामिल नहीं हुए।
कुल मिलाकर चीन, रूस और सऊदी अरब ने जी20 में कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखायी। इस प्रकार देखें, तो दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में इन तीनों देशों के प्रमुखों को छोडक़र सारे देशों के प्रमुख शामिल हुए। हालाँकि जी20 की अध्यक्षता कर रहे भारत की मेज़बानी में सभी सदस्य देशों के अलावा नौ देशों के राष्ट्र प्रमुख जैसे बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात भी भारत की तरफ़ से आमंत्रित देश के रूप में शामिल हुए। लेकिन जी20 में केंद्र सरकार की तरफ़ से विपक्ष के कई नेताओं को आमंत्रित नहीं किया गया, जिसको लेकर विपक्ष हमलावर दिखा। पक्ष-विपक्ष में इंडिया बनाम भारत को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ा हुआ है। ऐसे में एक दूसरे के बीच मनमुटाव होना स्वाभाविक है। कांग्रेस के एक नेता विजय नामदेवराव वडेट्टीवार ने इसे केंद्र की मोदी सरकार को तानाशाही बताया। उन्होंने कहा कि यह सरकार संविधान विरोधी है। ये संविधान के तहत काम नहीं कर सकते। यही कारण है कि विपक्ष को आमंत्रित नहीं किया गया। सही मायने में तो विपक्ष को भी आमंत्रित करके उनका सम्मान किया जाना चाहिए था। यह भारत के लोकतंत्र का हिस्सा है।
जी20 की अध्यक्षता बदलती रहती है। यह नंबर के हिसाब से किसी-न-किसी देश को मिलती रहती है। यह हर साल कहीं-न-कहीं आयोजित होती रहती है। इसका आयोजन करना जी20 देशों का दायित्व है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। वहीं डिनर में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े को शामिल नहीं करने पर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और पी. चिदंबरम ने मोदी सरकार पर हमला बोला और उनके इस कृत्य की निंदा की। चिदंबरम ने कहा कि मैं कल्पना नहीं कर सकता कि किसी दूसरे लोकतांत्रिक देश की सरकार विश्व नेताओं के लिए राजकीय रात्रिभोज में विपक्ष के नेता को आमंत्रित नहीं करेगी। चिदंबरम ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि अभी इंडिया यानी भारत उस स्थिति में नहीं पहुँचा है, जहाँ लोकतंत्र और विपक्ष का अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा। वहीं शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि अगर लोकतंत्र में विपक्ष के नेता को स्थान नहीं है, तो यह तानाशाही है।