जिस्म का जंजाल, कितना बवाल

सुहागसेज पर मेवर की आँखें दरवाज़े पर लगी थीं। रोशनियों की झिलमिल और ढोल की थाप पर रसीले गीतों की गूँज थी। प्रियतम की पदचाप सुनने को बेचैन उसके कान दरवाज़े पर लगे थे। लेकिन फिर भी पिया मिलन की पुलक से रोमांचित मेवर का मन पता नहीं क्यों शंकाओं से भरा था। शादी के बाद अपनी सहेलियों के गुलाब खिले चेहरों को देखकर उसने भी सोचना शुरू कर दिया था कि कब उसके जीवन में भी ऐसी घड़ी आएगी! आज वह दिन आ गया और 19 वर्षीय मेवर का मन कल्पनाओं के आकाश में उड़ान भर रहा था, तभी दरवाज़ा खुला। वह लज्जा और संकोच से अपने आप में सिमटकर रह गयी। भीतर आने वाला उसका ही पति मुंजाल था। उसके हाथों में सूत के धागों से बनी हुई कूकड़ी थी। अब तक पिया मिलन के सपनों में खोई मेवर कूकड़ को देखकर सिहर कर रह गयी।

पति मिलन की आस में पुलकता मन एकाएक चीत्कार कर उठा। इससे पहले कि वह कुछ और सोच पाती, उसका सर्वस्व पति के बाहुपाश में समा चुका था। उसे सिर्फ़ इतना अहसास था कि वह पवन के हिंडोले में सवार आकाश की ऊँचाइयों को छू रही है, तभी उसे लगा जैसे वो धड़ाम से मुँह के बल गिरी। पति मुंजाल उसे धकेलकर बड़बड़ाता हुआ बाहर निकल गया। परिवार के लोगों के बीच में जाकर उसने तेज़ आवाज़ में कहा कि मेवर चरित्रहीन है। सुहाग सेज पर पति समागम के दौरान मेवर की देह के नीचे रखी कूकड़ी रक्त से नहीं भीगी थी। सुहाग सेज पर यह मेवर का कौमार्य परीक्षण था, जिसमें वह कथित तौर पर फेल हो गयी थी।

आज के आधुनिक युग में अक्षत कौमार्य के परीक्षण की प्रथा बांसवाड़ा के आदिवासी परिवारों में अभी भी क़ायम है। स्त्री सम्मान को आहत करने वाली इस प्रथा पर नारी संगठन बस बोलते भर हैं; लेकिन करते कुछ नहीं। एक घटना फ़िल्मी सी है; लेकिन है सच। एक डॉक्टर को किसी महिला से प्रेम हुआ। राज़ खुला, तो प्रेमिका और उसके पुत्र को उसी विला में जला दिया गया, जो डॉक्टर ने रहने को दिया था। इन हत्याओं का आरोप उसी डॉक्टर की माँ और पत्नी पर लगा। नतीजतन तीनों को जेल भेज दिया गया। प्रेमिका का भाई बदले की ताक में था। आख़िर तीनों को जमानत मिलने के साल भर बाद प्रेमिका का भाई अपने एक साथी के साथ पहुँचा और बीच सड़क पर कार रुकवाकर डॉक्टर दम्पति को गोलियों से भून दिया।

प्रियंका जवान भी थी, और ख़ूबसूरत भी। बेशक वह तीन बच्चों की माँ बन गयी थी; लेकिन उसकी देह के कसाव में कोई कमी नहीं आयी थी। उसकी अपनी भावनाएँ थी। कुछ फ़िल्में भी देख चुकी थी, इसलिए मन करता था कि बुद्धिप्रकाश भी सजीले नौजवान की तरह बन ठन कर रहे। फ़िल्मी हीरो सरीखी दीवानगी की तरह उससे प्यार करे। हालाँकि बुद्धिप्रकाश ने अभी 35 की उम्र ही पार की थी; लेकिन मेहनतकश खेती किसानी के गोरखधंधे में खटने के कारण उस पर थकान हावी हो चली थी। इसलिए पत्नी की इच्छाओं की गहराई भाँपने का उसे कभी ख़याल तक नहीं आया। प्रियंका को अपने मेहनतकश पति से पसीने की दुर्गंध आती थी। चढ़ती उम्र और बढ़ती आकांक्षाओं के साथ प्रियंका में पति के प्रति नफ़रत में इज़ाफ़ा होता चला गया। संयोग ही रहा कि उसके बग़ल वाले मकान में रहने के लिए एक युवक महावीर मीणा आ गया। महावीर छैल-छबीला था और प्रियंका के सपनों के मर्द की तासीर पर खरा उतरता था। प्रियंका अक्सर अपने पति बुद्धिप्रकाश को उसका उदाहरण देते हुए कहती थी, तुम भी ऐसे सजधज कर क्यों नहीं रहते? बुद्धिप्रकाश सीधा-सादा गृहस्थ इंसान था। इसलिए पत्नी की बात को हँसकर टाल देता। अभी महावीर पर गृहस्थी की ज़िम्मेदारी नहीं पड़ी; जब पड़ेगी तो वो भी सजना-सँवरना भूल जाएगा। पड़ोसी के नाते महावीर की बुद्धिप्रकाश से मेल-मुलाकात बढ़ी, तो गाहे-बगाहे महावीर का आना-जाना भी बढ गया। अक्सर प्रियंका के आग्रह पर वहीं खाना भी खा लेता था। असल में महावीर की नज़रें भी प्रियंका पर थीं। उसकी पारखी नज़रों ने प्रियंका के मन को भाँप लिया। लेकिन सवाल था कि पहल कौन आगे बढ़े? महावीर दोपहर में अक्सर वक़्त गुजारने के लिए अपने दोस्त की फल-सब्ज़ी की दूकान पर बैठ जाता था। दोस्त को सहूलियत थी कि अपने ज़रूरी काम निपटाने के लिए महावीर के भरोसे दुकान छोड़ जाता था। एक दिन दुकान पर अकेला बैठा था, तो प्रियंका सब्ज़ी ख़रीदने पहुँची। लेकिन महावीर ने फल-सब्ज़ी के पैसे नहीं लिए। प्रियंका ने पैसे देने चाहे, तो महावीर मुस्कुराकर बोला- ‘तुम्हारी मुस्कुराहट में दाम वसूल हो गये। सारी दुकान ही अपनी समझो। प्रियंका को शायद ऐसे ही मौक़े की तलाश थी। मुस्कुराकर कहा कि ऐसी दोपहरी में दुकान पर बैठने की बजाय घर आओ। प्रियंका ने मुस्कुराकर निमंत्रण दिया, तो महावीर हँसकर बोला कि ख़ातिरदारी का वादा करो, तो आऊँ। मेरी तरफ़ तो मेहमानवाज़ी में कमी नहीं रहेगी, तुम अकेले में आकर देखो तो -प्रियंका ने हँसकर कहा। खुला निमंत्रण देख महावीर आगे बढ़ गया।

मुहाना थाना पुलिस को हाल ही में यूनिक सफायर अपार्टमेंट में रहने वाले पंजाब नेशनल बैंक की मार्केटिंग मैनेजर सुरभि कुमावत के शव के पास एक सुसाइड नोट मिला- ‘मुझे कोई समझता है, हर कोई आहत करना चाहता है। मैं सिर्फ़ ख़ुश रहना चाहती हूँ और मैं किसी की जिन्दगी में परेशानी भी नहीं बनना चाहती। मेरा ख़ुद का पति मुझसे नफ़रत करता है और मुझे छोडऩे की धमकी देता है। मेरा इस्तेमाल स्वार्थ के लिए किया गया। मैं जा रही हूँ सब छोड़कर…। पुलिस ने बताया कि सुरभि कुमावत ने गलता गेट स्थित बासबदनपुरा निवासी साहिद अली से प्रेम विवाह किया था।

एक लड़की शाम को अपने दफ़्तर से लौट रही थी। वह रोज़ की तरह बस से उतरकर अपने घर की ओर जा रही थी। बस स्टेंड और उसके घर के बीच कुछ अधबनी इमारतें थीं। बस से उसके पीछे-पीछे एक और शख़्स उतरा। झुटपुटा हो रहा था। अचानक उस शख़्स ने लड़की को पीछे से दबोच लिया। उसका मुँह दबाकर उसे पास के सुनसान इलाक़े में ले जाकर दुष्कर्म किया और लड़की को बदतर हालत में छोड़कर चलता बना। गर्मी की एक दोपहर एक किशोर युवक पड़ोसी के फ्लैट में गया, जिसका दरवाज़ा खुला था। उसने घर की स्त्री से पीने के लिए पानी माँगा। महिला जब पानी लाने रसोई की ओर गयी। किशोर ने घर का दरवाज़ा धीरे से बन्द कर दिया। किशोर स्त्री के पीछे-पीछे रसोई तक चला आया। वहाँ उस किशोर ने उस प्रौढ़ा स्त्री के साथ दुष्कर्म किया। स्त्री ने बहुत शोर मचाया; लेकिन गर्मी की दोपहर के सन्नाटे में कौन सुनता। दुष्कर्म के बाद युवक उस स्त्री को धमकी देता गया कि यदि वह किसी से कहेगी, तो उसको बेटी के साथ भी यही करेगा और उन लोगों को मार डालेगा।

लेखिका अर्चना वर्मा कहती है कि स्त्री विमर्श का मतलब स्त्री की नज़रों से देखी समूची दुनिया का लेखा-जोखा और उसे गहराई से बदलने का कार्यक्रम है। असल में जब तक हम देह मुक्ति के अर्थ और अभिप्राय परिभाषित नहीं करते, तब तक उन विकट समस्याओं का समाधान क्या? पहचान तक सम्भव नहीं, जिनकी बुनियाद स्त्री देह में है। चर्चित लेखक और वरिष्ठ पत्रकार अशोक शर्मा स्त्री चरित्र को लेकर रहस्य अनावृत किया है। एक विश्वसनीय पड़ताल में महिलाओं के उत्पीडऩ और यौन शोषण अधिकांश मामले झूठे पाये जाएँ। हाल ही में महिला आयोग की अध्यक्ष रेहाना चिश्ती ने कहा कि आयोग के पास पहुँचे यौन शोषण के अधिकांश मामले झूठे पाये गये है। उन्होंने कहा कि इनमें 51 महिलाओं को तो चिह्नित भी कर लिया है, जो झूठ का पुलिंदा साबित हुई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री गहलोत भी यह बात कह चुके हैं। लेकिन बावजूद इसके दुष्कर्म के मामलों पर राजनीति का चक्का चलाने वाली भाजपा इसे मानने को तैयार नहीं। यहाँ प्रख्यात लेखक नरेंद्र सैनी की यह टिप्पणी बहुत कुछ कह जाती है कि बोल्डनेस का सन्दर्भ बदला है जिस शरीर की वजह से पुरुष समाज उन्हें चीज़ समझता है, उसी शरीर को हथियार बनाकर स्त्री मर्दों को सबक़ सिखाना जान गयी है।

गोहाटी उच्च न्यायालय ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि सिंदूर लगाने और (शंख से बनी स$फेद चूड़ी पहनने से इनकार करना, इस बात का संकेत है कि पत्नी अपनी शादी को स्वीकार नहीं कर रही है। गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक पति की ओर से दायर तलाक की अपील को स्वीकार कर पारिवारिक न्यायालय के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा और न्यायाधीश सौमित्रा सैक्रिया की पीठ ने कहा कि हिन्दू रीति-रिवाज़ों के अनुसार शादी के बाद महिला सिंदूर शाखा से महिला के इन्कार करने से यह प्रतीत होता है कि उसने विवाह को बिल्कुल अस्वीकार कर दिया है। नतीजतन उच्च न्यायालय ने दहेज़ प्रताडऩा के केस में पति को बरी कर दिया।

कोरियोग्राफ एलिसन कानुगो की शादी अजय क़ानूगी से हुई थी। लेकिन शादी के 12 साल बाद वे दो बच्चों के साथ यह कहते हुए अलग हो गयी कि यह रिश्ता दोस्ती पर नहीं शारीरिक आकर्षण पर आधारित था। दोनों के बीच अलगाव रिश्ते में आयी ऊब की वजह से हुआ।

पारम्परिक प्रथाओं, इतर वैवाहिक सम्बन्धों, पेशाचिक हवस, दाम्पत्य जीवन में ऊब अथवा आर्थिक आज़ादी मिलने त्रासद वैवाहिक जीवन से पल्ला झाडऩे की घटनाएँ बढ़ रही हैं। कुल मिलाकर स्त्री के ख़िलाफ़ एक संरचनात्मक हिंसा है। कहीं वे ख़ुद ऐसे हालात पैदा करती हैं, तो कहीं कुचक्र का शिकार होती हैं। स्त्री की योनिकता को बाजारू बनाने की रही-सही कसर स्त्री विमर्ष पर कलम चलाने वाली लेखिकाओं ने पूरी कर दी है। छोटे कपड़े पहनने की वर्जना से इतर उनकी देह-दर्शन की लालसा ने तो कोढ़ में खाज का काम किया है। इसे रोकने की तमाम कोशिशें स्त्री का अपनी आज़ादी में दख़लंदाज़ी मानती हैं। अभिनेत्रियों ने तो अंर्तवस्त्रों को ही तिलांजलि देकर स्त्री हिंसा को प्रेरित करने वाले शोलों को और भड़काऊ बना दिया है।

प्रख्यात चेखिका मैत्रेयी पुष्पा का कथन चौंकाने वाला है कि ‘ये भूचाल उस देश में आया हुआ है, जहाँ कन्याओं का पूजन होता है।’ वह एक कहावत का उल्लेख करती हैं कि एक बुढिय़ा से पूछा गया कि औरत की सच्चाई क्या है? बुढिय़ा ने कहा- ‘औरत की सच्चाई के बारे में जितना ज़्यादा छिपाया जा सके, उतना ही अच्छा है।’ महिलाओं के बारे में असंवैधानिक टिप्पणियाँ करने वाले अधिकारियों को कोसते हुए राजनेता वृंदा करात अदालतों से संज्ञान लेने की बात करती हैं, जो कहते हैं कि बलात्कार से बचना सम्भव न हो, तो उसका आनन्द लेना चाहिए। इस पर एक शे’र आयद होता है-

‘बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल,

कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का।’