जिनपिंग की ताक़त बढ़ी

माओ त्से तुंग के बाद शी जिनपिंग अब चीन के सबसे शक्तिशाली नेता हो गये हैं। देश की सेना से लेकर तमाम अहम संस्थानों पर अब उनके वफ़ादार कमान में हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री हु जिंताओ के बाहर जाने के जो वीडियो सामने आये हैं, उनसे पता चलता है कि जिनपिंग के बिना अब चीन में पत्ता भी नहीं हिलेगा।

दुनिया में चिन्ता यह है कि जिनपिंग तानाशाह होकर ताईवान और अपने अन्य पड़ोसियों के साथ अब कैसा व्यवहार करेंगे? क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में उन्होंने साफ़ कह दिया है कि उनका पहला काम अब ताईवान को चीन में मिलाने का होगा। भारत भी जिनपिंग के तीसरी बार चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद के घटनाक्रम पर गहरी नज़र रखे हुए है। क्योंकि सीमा पर हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच काफ़ी तनाव वाली स्थिति रही है, जिसका मुख्य कारण चीन का लगातार निर्माण करते जाना है।

बांग्लादेश में चीन के शीर्ष राजनयिक ली जिमिंग ने अक्टूबर के आख़िर में भले यह कहा था कि भारत के साथ उनके देश की कोई रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं है। भारत चीन को लेकर सतर्क भी है और आशंकित भी। यह इस बात से ज़ाहिर हो जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनपिंग के तीसरी बार चीन का राष्ट्रपति बनने के एक हफ़्ते बाद तक (जब यह रिपोर्ट लिखी गयी) भी जिनपिंग को बधाई का सन्देश नहीं भेजा था।

ली का कहना था कि वह (चीन) बंगाल की खाड़ी में भारी हथियारों का जमावड़ा नहीं देखना चाहते। ली ने तो यह भी कहा कि भारत और चीन इस क्षेत्र और उसके बाहर भी किसी आर्थिक, भू-राजनीतिक और अन्य मुद्दों के हल के लिए मिलकर काम कर सकते हैं। राजदूत ली का कहना कि हम भारत को कभी भी चीन के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी या रणनीतिक प्रतिस्पर्धी के रूप में नहीं देखते हैं। बकौल ली- ‘निजी तौर पर मैं भारत का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। हम आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों के हल के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।’

ली की यह टिप्पणी उस दिन आयी, जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने नयी दिल्ली में निवर्तमान चीनी राजदूत सुन विडोंग से कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन और शान्ति दोनों देशों के बीच सामान्य सम्बन्धों के लिए ज़रूरी है। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि पूर्वी लद्दाख़ में सीमा मुद्दों को लेकर भारत और चीन के बीच 29 महीने से अधिक समय से गतिरोध चल रहा है। जून, 2020 में गलवान घाटी में संघर्ष के बाद दोनों देशों के जो रिश्ते तनावपूर्ण हुए थे, वह अभी भी पटरी पर नहीं लौटे हैं।

कैसे ताक़तवर हुए जिनपिंग?

राष्ट्रपति शी जिनपिंग को 21 अक्टूबर को जब पाँच साल के कार्यकाल के लिए रिकॉर्ड तीसरी बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) का महासचिव चुना गया, तो उन्होंने इतिहास बना दिया। इससे यह भी ज़ाहिर हुआ कि उनकी पार्टी, सेना और सत्ता पर पकड़ कितनी मज़बूत है। पार्टी के संस्थापक माओ त्से तुंग के बाद सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के जिनपिंग पहले नेता हैं, जिन्हें तीसरा कार्यकाल मिला है। अब ज़्यादा सम्भावना यही है कि वह आयु-पर्यंत चीन के शीर्ष नेता रहेंगे।

जिनपिंग को केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) का अध्यक्ष भी नामित किया गया है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जनरल झांग यूशिया और हे वीदोंग को सीएमसी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। सीएमसी के अन्य सदस्यों में शीर्ष सैन्य अधिकारी ली शांगफू, लियू जेनली, मियाओ हुआ और झांग शेंगमिन शामिल हैं। वह नौसेना और रॉकेट फोर्स सहित सेना की विभिन्न शाखाओं का नेतृत्व करेंगे। पहले के कार्यकाल की तरह जिनपिंग सीएमसी के एक मात्र असैन्य सदस्य हैं।

जिस केंद्रीय समिति ने 24 सदस्यीय राजनीतिक ब्यूरो को मंज़ूरी दी, जिसके बाद उसने जिस सात सदस्यीय स्थायी समिति का चयन किया, उसके सभी सदस्य जिनपिंग के समर्थक हैं। इनमें से सिर्फ़ दो झाओ और वांग पिछली समिति में थे। सदस्यों में ली कियांग, झाओ लेजी, वांग हुनिंग, सिया क्वी, डिंग शुएशियांग और ली शी शामिल हैं।

शंघाई सीपीसी के प्रमुख ली कियांग भी जिनपिंग के क़रीबी हैं। सम्भावना है कि मार्च, 2023 में कियांग को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा झाओ लेजी ने सन् 2017 से केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग का संचालन किया था, जो चीन में भ्रष्टाचार और अन्य तरह की गड़बडिय़ों को रोकने वाली संस्था है। एक और सदस्य हुनिंग सन् 2017 से पोलिब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य हैं और उन्हें जिनपिंग के प्रमुख सलाहकारों में गिना जाता है। उधर पार्टी के अहम बुद्धिजीवियों में से एक सिया क्वी समिति के नये सदस्य हैं। डिंग सन् 2017 से जनरल ऑफिस के प्रमुख हैं। वह पार्टी में सबसे महत्त्वपूर्ण नौकरशाहों में से एक हैं। ली शी समिति के सदस्य बनाये गये हैं। उन्हें लेजी के बाद केंद्रीय अनुशासन समिति का अध्यक्ष भी नामित किया गया है। इसके अलावा विदेश मंत्री वांग यी अन्य प्रमुख व्यक्ति हैं, जिन्हें समिति में। यी केंद्रीय समिति के सदस्य रहे हैं।

हालाँकि कई जानकारों का मानना है कि जिनपिंग ने पोलित ब्यूरो स्टेडिंग समिति (मंत्री परिषद्) में जिन लोगों को चुना है, उससे लगता है कि उन्होंने अनुभव और विशेषज्ञता पर वफ़ादारी को तरजीह दी है। उन्होंने पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में ली कियांग को चुना है, जिन्हें चीन की केंद्रीय सरकार में काम करने का कोई अनुभव नहीं है। चीन में दूसरा सबसे बड़ा नेता ही प्रधानमंत्री बनता है।

उदारवादी नेता दरकिनार

चीन में नये निजाम में उदारवादी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। इससे ज़ाहिर होता है कि जिनपिंग की राह क्या हो सकती है। इनमें पार्टी में दूसरे नंबर का समझे जाने वाले प्रधानमंत्री ली क्विंग समेत कई उदारवादी नेता शामिल हैं, जो केंद्रीय समिति में जगह नहीं बना पाये। इस समिति में 300 सदस्य हैं।