
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के साथ ही मीडिया और राजनीतिक हलकों में नई सरकार व उसके एजेंडे की बातें जोरशोर से चल रही हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में एक अलग ही मामला सबका ध्यान खींच रहा है. पिछले दिनों स्थानीय मीडिया में खबर आई कि मई, 2013 में झीरम घाटी में कांग्रेस काफिले पर नक्सल हमले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अपनी जांच खत्म कर ली है. यह भी कहा गया कि एजेंसी ने हमले के पीछे राजनीतिक साजिश को एक सिरे से खारिज कर दिया है. हालांकि एनआईए ने तुरंत ही इन सारी खबरों का खंडन कर दिया. एजेंसी ने यह भी स्पष्ट किया कि अभी तक की जांच में किसी भी साजिश की संभावना को खारिज नहीं किया गया है. इसके बाद से छत्तीसगढ़ के राजनीतिक हलकों में खलबली मची हुई है और इनके केंद्र में एक बार फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी आ गए हैं.
अब तक झीरम घाटी हमले को मात्र सुरक्षा में चूक मानते रहे मुख्यमंत्री रमन सिंह भी चाहते हैं कि 25 मई, 2013 को झीरम घाटी में हुए कांग्रेस नेताओं के हत्याकांड की सूक्ष्मता से जांच की जाए. वे कहते हैं, ‘शुरू से ही इस मामले में कई आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं. यदि ऐसा है तो सच निकलकर सामने आना चाहिए. छत्तीसगढ़ के लोगों के मन में यह बात है कि कहीं यह हमला साजिश तो नहीं था.’ चूंकि इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर शुरू से उंगलियां उठी हैं इसलिए रमन सिंह के बयानों को जोगी पर निशाना साधने की कोशिश समझा जा रहा है. हालांकि भाजपा से ज्यादा खुद कांग्रेस के नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री की भूमिका पर सवाल उठाए थे. ऐसे में माना जा रहा है एनआईए आने वाले दिनों में इस हमले को लेकर जोगी की भूमिका की जांच करेगी. आखिर ऐसा क्यों है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर नक्सल हमले के मामले में शुरू से कांग्रेस के एक नेता पर ही उंगलियां उठ रही हैं? यह जानने के लिए उस नक्सल हमले की घटना पर एक नजर डालना जरूरी है.
25 मई, 2013 को दरभा ब्लॉक की झीरम घाटी में नक्सलियों ने परिवर्तन यात्रा के तहत वहां से गुजर रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर 30 कांग्रेस नेताओं को मौत की नींद सुला दिया था. इसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल से लेकर सलवा जुडूम शुरू करवाने में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ल और कई छोटे-बड़े कांग्रेसी नेता शामिल थे. यहां याद रखने वाली बात यह भी है कि जिस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकल रही थी उसी वक्त मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी विकास यात्रा पर थे. विकास यात्रा भी धुर नक्सल इलाकों से गुजरी लेकिन मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होने के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं घट पाई. वहीं कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि परिवर्तन यात्रा को कोई सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए नक्सलियों ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था. हालांकि भाजपा सरकार पर यह आरोप जल्दी ही ठंडा पड़ गया और कांग्रेस के ही एक बड़े नेता यानी अजीत जोगी पर साजिश का आरोप लगाया जाने लगा था.
जोगी खुद सुकमा में हुई उस अंतिम सभा में मौजूद थे जो हत्याकांड के पहले हुई थी. लेकिन वे उस सभा में हैलीकॉप्टर से पहुंचे और उसी से वापस रायपुर आ गए. जबकि शेष नेता सड़क मार्ग से दरभा की अगली सभा के लिए जाते वक्त नक्सल हमले का शिकार हो गए. तभी से जोगी शक के दायरे में आए. इसकी एक बड़ी वजह पुलिस के इंटेलिजेंस विभाग के दस्तावेज हैं. इनमें बार-बार पुलिस को यह सूचना दी जा रही थी कि जगदलपुर के दरभा, सुकमा के थाना दोरनापाल, तोंगपाल, दंतेवाड़ा में नक्सलियों का जमावड़ा बड़ी संख्या में हो रहा है. कहने का आशय यह है कि सरकार के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते जोगी को भी अपने स्तर इस इन बातों की सूचना होगी.
19 मार्च, 2013 को पुलिस मुख्यालय से जारी एक पत्र में साफ उल्लेख किया गया था कि जगदलपुर के दरभा इलाके में 100 से 150 नक्सली मौजूद हैं. 10 अप्रैल, 2013 को पुलिस मुख्यालय को इटेंलिजेंस की सूचना मिली थी कि कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा, पूर्व सलवा जुडूम नेता विक्रम मंडावी और अजय सिंह को मारने के लिए नक्सलियों ने तीन एक्शन टीम का गठन किया था. उनके सुरक्षा कर्मियों को भी विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए थे. 17 अप्रैल को एक बार फिर पुलिस के गोपनीय पत्र में चेताया गया था कि माओवादियों ने कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा और राजकुमार तामो को मारने के लिए स्मॉल एक्शन टीम बनाई है. जिसका दायित्व माओवादी मिलिट्री कंपनी नंबर 02 के पार्टी प्लाटून सदस्य राकेश को सौंपा गया है. इस तरह की कई सूचनाएं पुलिस को मिल रही थी. लेकिन इतनी सूचनाओं के बाद भी बस्तर यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता मारे गए केवल अजीत जोगी हत्याकांड के पहले रायपुर सुरक्षित पहुंच गए.
इस मामले में जोगी समर्थक कोंटा विधायक कवासी लखमा पर भी कई आरोप लगे थे. झीरम घाटी हमले में लखमा पार्टी के एकमात्र ऐसे चर्चित नेता रहे जिन्हें नक्सलियों ने बगैर कोई नुकसान पहुंचाए छोड़ दिया था. जबकि उनके साथ मौजूद नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश, महेंद्र कर्मा, वीसी शुक्ल समेत कई नेता नक्सलवादियों की गोलियों का शिकार बने थे. इसके बाद कवासी लखमा को लेकर एक नहीं कई विवाद खड़े हो गए.
कई कांग्रेस नेताओं का आरोप था कि कांग्रेस नेता अपना रास्ता बदलना चाहते थे लेकिन कवासी इसी रास्ते से आगे बढ़ने को लेकर अड़ गए थे. परिवर्तन यात्रा के तयशुदा कार्यक्रम में आखिरी समय में जो बदलाव किया गया था वह भी कई सवाल खड़े कर रहा है. निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस विधायक कवासी लखमा के विधानसभा क्षेत्र कोंटा के तहत आने वाले सुकमा में 22 मई को सभा रखी गई थी. इस दिन केवल यही एक कार्यक्रम तय था. लेकिन बाद में मूल कार्यक्रम में दो बड़े बदलाव किए गए. पहला यह कि सुकमा की 22 मई को होने वाली सभा 25 मई को कर दी गई. दूसरा सुकमा के साथ ही एक और सभा दरभा में भी रख दी गई. उसी दिन नेताओं को सुकमा से दरभा जाते वक्त नक्सलियों ने अपना शिकार बनाया. इन्हीं कारणों से इस हत्याकांड को राजनीतिक षडयंत्र से जोड़कर देखा जाने लगा. चूंकि कवासी लखमा कांग्रेस में जोगी गुट के समर्थक हैं इसलिए हत्याकांड के तार जोगी से जोड़े जाने लगे. घटना के दो दिन बाद ही यानी 27 मई, 2013 को इसकी जांच एनआईए को सौंप दी गई थी. इन सभी आरोपों और जांच पर अजीत जोगी का कहना है, ‘जो असत्य को हथियार बनाता है, वह कभी सफल नहीं होता. इतना जरूर है कि पूरे मामले की सूक्ष्म जांच होनी चाहिए. फिलहाल एनआईए नक्सलियों की भूमिका की जांच कर रही है. उन्हें गिरफ्तार भी किया जा रहा है’.