
राजनीति में बाहुबल और पैसे का इस्तेमाल आम बात हो चुका है. राजनीति आम लोगों की मदद का हथियार थी, लेकिन अब यह धंधा बन चुकी है. इसके लिए हम भी दोषी हैं जो जब यह हो रहा था तो इसे किनारे खड़े होकर देख रहे थे. लेकिन अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद सब बदल गया. यह साफ हो गया कि हमें अपनी नौकरियों से ऊपर उठकर सोचना होगा, खुद खड़ा होना होगा और राजनीति में आ चुकी इस गंदगी के खिलाफ लड़ना होगा.
मैं समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के खिलाफ लड़ रहा हूं. मेरी लड़ाई मैनपुरी के लोगों के लिए है. इसे शहर कहते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और विकास की कमी के चलते स्थानीय प्रेस की भाषा में कहें तो मैनपुरी अब भी एक बड़े गांव जैसा है. बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है. निजी मैनेजमेंट कॉलेज नहीं हैं. अच्छे अस्पताल नहीं हैं. न ही ट्रेन कनेक्टिविटी है. हैरानी की बात यह है कि पिछले 25 साल से यहां एक ही परिवार चुनाव जीतता आ रहा है. अगर उन्होंने ये मुद्दे उठाए होते तो कुछ तो हो जाता. कम से कम एक इंटरसिटी ट्रेन ही चल जाती. दुख की बात यह है कि तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से होने वाले कैंसर के मरीजों की संख्या के मामले में मैनपुरी पहले नंबर पर है, लेकिन यहां किसी अस्पताल में कैंसर के इलाज की कोई यूनिट नहीं. कोई इन मुद्दों पर लोगों को जागरूक नहीं कर रहा. यह स्थिति बदलनी चाहिए. मैनपुरी में यह हाल है कि आज भी यहां डीएम और एसपी लोगों से खुद को जी हुजूर और जी सरकार कहलवाते हैं जबकि असल में वे जनता के सेवक हैं.