छत्तीसगढ़: संकट में उद्योग

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इन दिनों छत्तीसगढ़ में मिनी स्टील प्लांट सरकार से जीवनदान की याचना कर रहे हैं. राज्य सरकार से विशेष राहत पैकेज की मांग कर रहे मिनी स्टील प्लांट दोहरे संकट से जूझ रहे हैं. लेकिन इनसे भी ज्यादा विकट स्थिति वर्षों से इन प्लाटों में काम करने वाले 50 हजार मजदूर और उन पर आश्रित परिवार की है. 3 अगस्त 2013 से राजधानी रायपुर के उरला और सिलतरा इंडस्ट्रियल इलाके के तकरीबन 80 मिनी स्टील प्लांट हड़ताल पर हैं. इससे इन प्लांटों में उत्पादन ठप हो गया है. प्लांटों में ताला लगने से वहां काम करने वाले मजदूरों के घरों में मातम सा छाया हुआ है. प्लांट के मालिकों की मांग सस्ती बिजली को लेकर है, लेकिन प्रदेश के मिनी स्टील प्लांट मंहगे स्पॉन्ज आयरन की मार भी झेल रहे हैं. प्लांट मालिकों का कहना है कि जब तक राज्य सरकार बिजली की दरों में कमी नहीं करती, तब तक मिनी स्टील प्लांट यूं ही बंद रखे जाएंगे. एमएसपी की हड़ताल से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाला केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड भी परेशान है. इसका कारण मिनी स्टील प्लांट की हड़ताल से केंद्र को संभावित राजस्व की हानि है. छत्तीसगढ़ के लोहा उद्योग से केंद्र सरकार को सालाना छह हजार करोड़ का राजस्व मिलता है. इस साल राजस्व वसूली का लक्ष्य छह हजार आठ सौ करोड़ रुपए रखा गया था. लेकिन हड़ताल के बाद अनुमान है कि अब राजस्व के रूप में मिलने वाली सालाना राशि में दस से बीस फीसदी की कमी आएगी. ऐसे में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड के अफसरों को ताकीद दी है कि वे उद्योगपतियों से बात कर हड़ताल खत्म करवाने में भूमिका निभाएं.

मिनी स्टील प्लांट चला रहे उद्योगपतियों का आरोप है कि राज्य में स्टील प्लांटों के लिए तीन तरह की विद्युत दर प्रचलित है. मिनी स्टील प्लांट एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक सुराना कहते हैं, ‘रायगढ़ में 2000 हेक्टेयर इलाके में फैले जिंदल पार्क में स्थापित मिनी स्टील प्लांटों को केवल 3.18 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिल रही है. (जिंदल पार्क में स्थित मिनी स्टील प्लांटों को जिंदल स्टील एंड पॉवर बिजली सप्लाई करता है). सिलतरा और बोरई के इंटीग्रेटेड स्टील प्लाटों को तीन रुपए से भी कम दर पर बिजली दी जा रही है. लेकिन उरला और सिलतरा औद्योगिक क्षेत्र के 80 मिनी स्टील प्लांट बिजली के लिए छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल पर निर्भर हैं. विद्युत मंडल इन प्लांटों को 4.97 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली सप्लाई कर रहा है. इस दर में 360 रुपए प्रति केवीए पर लगने वाला डिमांड चार्ज और मिनी स्टील प्लाटों पर लगने वाला 6 प्रतिशत विद्युत शुल्क भी शामिल है.’ अब स्टील प्लांट एसोसिएसन राज्य सरकार से मांग कर रही है कि डिमांड चार्ज को घटाकर 360 रुपए प्रति केवीए से 180 रुपए किया जाए. मिनी स्टील प्लांटों पर लगने वाला छह प्रतिशत विद्युत शुल्क भी खत्म किया जाए. साथ ही रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक विद्युत दरों में 30 प्रतिशत की अतिरिक्त छूट दी जाए.

[box] ऐसे में मिनी स्टील प्लाटों में वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे श्रमिक एक झटके में सड़क पर आने की स्थिति में पहुंच गए हैं.[/box]

सरकार और उद्योगपतियों की इस लड़ाई में असल खामियाजा इन मिनी स्टील प्लांटों में काम करने वाले मजदूर भुगत रहे हैं. भले ही हड़ताल के बाद भी अभी इन मजदूरों को घर पर रहने को नहीं कहा गया है. लेकिन आने वाले दिनों को वे संकट के रूप में देख रहे हैं. हड़ताल पर चल रहे 80 मिनी प्लाटों में इस वक्त 50 हजार मजदूरों की रोजी रोटी निर्भर है. अगर समय रहते राज्य सरकार और उद्योगपतियों का झगड़ा नहीं सुलझ पाया तो इन मजदूरों के परिवार भूखों मरने पर मजबूर हो जाएंगे. दरअसल इन मजदूरों के लिए रोजगार के दूसरे विकल्प मौजूद नहीं है. ऐसे में मिनी स्टील प्लाटों में वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे श्रमिक एक झटके में सड़क पर आने की स्थिति में पहुंच गए हैं.

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के तहत काम कर रहे प्रगतिशील इंजीनियरिंग परमिट संघ के शेख अंसार बताते हैं, ‘ उद्योगपतियों की बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता. मिनी स्टील प्लांटों की हड़ताल से उद्योगपतियों को भले ही ज्यादा फर्क ना पड़े. लेकिन मजदूरों की आफत हो जाएगी. प्लांटों में पहले भी हुई ऐसी हड़तालों का हवाला देते हुए अंसार कहते हैं कि मजदूरों को बगैर काम किए उनकी मजदूरी ना पहले कभी मिली है ना ही अभी मिलेगी. जितने दिन मिनी स्टील प्लांट बंद रहेंगे, उतने दिन की रोजी मारी जाएगी और अगर प्लांट पूरी तरह बंद हो गए तो भी मारा तो मजदूर ही जाएगा.’

मजदूरों की चिंता से दूर उद्योगपति अपनी मजबूरियों को ही गिनाने में लगे हुए हैं. सही मायने में मिनी स्टील प्लांट के सामने दूसरा गंभीर संकट मंहगे स्पॉन्ज आयरन का भी है. एसोसिएसन के उपाध्यक्ष रविंद्र जैन की मानें तो, ‘नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन यानि एनएमडीसी ने आयरन ओर की दरें 20 से 25 फीसदी कम कर दी हैं. पहले आयरन ओर की कीमत 6200 रुपए प्रति मीट्रिक टन थी. अब कीमत घटने के बाद ये 4600 रुपए प्रति मीट्रिक टन मिल रहा है. ऐसे में बड़े उद्योगों को सस्ता आयरन ओर मिलने लगा है. लेकिन इसके बावजूद स्पाँज आयरन की कीमतें कम नहीं हुई.’  इस वक्त प्रति मीट्रिक टन स्पॉन्ज आयरन की कीमत 18 हजार 700 रुपए है. जैन और दूसरे उद्योगपतियों की मानें तो स्पॉन्ज आयरन से उत्पाद बनाने में 10 हजार रुपए प्रति मीट्रिक टन लागत आती है.

ऐसे में स्पॉन्ज आयरन से बनने वाले उत्पाद में प्रति मीट्रिक टन तकरीबन 28 हजार 700 रुपया खर्च होता है. अब मिनी स्टील प्लांटों के सामने संकट ये है कि रोलिंग मिलों में लगने वाले इंगट की कीमत फिलहाल 26 हजार 700 रुपए प्रति मीट्रिक टन है. वहीं तैयार माल 31000 रुपए (प्रति मीट्रिक टन) की कीमत में बाजार में उपलब्ध है. बाजार में तय कीमतों के कारण मिनी स्टील प्लाटों को लागत से कम मूल्य पर माल बाजार को देना पड़ रहा है. दरअसल असल मुद्दा बड़े और छोटे उद्योगों की खींचतान का भी है. अधिकांश बड़े स्टील प्लांटों के पास खुद की आयरन ओर खदानें और पॉवर प्लांट हैं. ऐसे में उन्हें उत्पाद तैयार करने में अपेक्षाकृत कम लागत आती है. लेकिन मिनी स्टील प्लाटों को कच्चे माल और बिजली के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में मिनी स्टील प्लांट बाजार में बड़े उद्योगों का सामना नहीं कर पा रहे हैं. यही कारण है कि 2007 से 2013 तक करीब 85 मिनी स्टील प्लांट पूरी तरह बंद हो चुके हैं.

अब इस पूरे मामले में राज्य सरकार का नज़रिया बिलकुल अलग है. पहले बिजली की बात करें तो छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध संचालक सुबोध सिंह कहते हैं, ‘ एमएसपी (मिनी स्टील प्लांट) को हम दूसरे राज्यों की तुलना में सस्ती बिजली दे रहे हैं. अव्वल तो सिंह मानते ही नहीं कि एमएसपी हड़ताल पर हैं. वे कहते हैं कि जाकर देख लीजिए..कई प्लांट चल रहे हैं. सुबोध सिंह कहते हैं कि विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के असर के कारण मिनी स्टील प्लांटों को घाटा हो रहा है और उसका दोष विद्युत मंडल के सर मढ़ा जा रहा है. विशेष राहत पैकेज की मांग पर सिंह तर्क देते हैं कि राज्य सरकार अपनी तरफ से पहले से ही उन्हें राहत दे रही है. सरकार ने मिनी स्टील प्लांट पर लगने वाले 8 प्रतिशत विद्युत शुल्क घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है. उद्योगों के आग्रह पर ही सरकार ने विद्युत की दरें नहीं बढ़ाई हैं. सिंह सवाल करते हैं कि हम इससे ज्यादा और क्या राहत दे सकते हैं.’

[box]बाजार में तय कीमतों के कारण मिनी स्टील प्लाटों को लागत से कम मूल्य पर माल बाजार को देना पड़ रहा है. दरअसल असल मुद्दा बड़े और छोटे उद्योगों की खींचतान का भी है.[/box]

वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत्यनारायण शर्मा कहते हैं, ‘मिनी स्टील प्लांट की मांगे जायज हैं. छत्तीसगढ़ सरकार सरप्लस बिजली का दावा करती है तो ऐसे में छोटे उद्योगों की मांग पर बिजली की दरें कम क्यों नहीं कर सकती. वे आगे कहते हैं कि इन उद्योंगों से ढाई लाख लोगों का रोजगार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जुडा हुआ है. साथ ही मिनी स्टील प्लांट ही विद्युत मंडल के सबसे बड़े उपभोक्ता भी हैं. जो बिजली के बिल के रूप में लाखों रुपए चुकाकर सरकार का राजस्व बढ़ा रहे हैं. शर्मा आरोप लगाते हैं कि ऊर्जा और खनिज दोनों ही महत्वपूर्ण विभाग मुख्यमंत्री रमन सिंह के पास हैं. ऐसे में उन्हें उद्योगपतियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.’

छत्तीसगढ़ में उद्योगपतियों पर लगने वाला डिमांड चार्ज की देश के दूसरे राज्यों से तुलना करें तो ये ज्यादा नज़र आता है. केवल एक मध्य प्रदेश को छोड़ दें (मप्र में भी ज्यादा डिमांड चार्ज वसूला जा रहा है. 380 रुपए प्रति केवीए) तो हरियाणा में 130 रुपए मांग प्रभार लिया जाता है तो ओडिशा में 250 रुपए डिमांड चार्ज लिया जा रहा है. आंध्रप्रदेश में 350, गुजरात में 270 और महाराष्ट्र में 190 रुपए प्रति केवीए डिमांड चार्ज वसूला जाता है. लेकिन इन राज्यों में बिजली की दर प्रति यूनिट महंगी है. मसलन हरियाणा में मिनी स्टील प्लांटों से 4.60 रुपए प्रति यूनिट बिजली बिल वसूला जाता है. डिमांड चार्ज जुड़ने के बाद ये 5.11 रुपए प्रति यूनिट हो जाता है. यही हाल दूसरे राज्यों का भी है. दरअसल सरकार एक और तो अन्य राज्यों की तुलना में सस्ती बिजली देने का दावा करती है लेकिन डिमांड चार्ज ज्यादा लगाती है.

छत्तीसगढ़ सरकार के ऊर्जा सचिव अमन कुमार कहते हैं, ‘राज्य सरकार हर स्तर पर उद्योगों को राहत देने का काम कर रही है. चाहे बिजली की बात हो या स्पॉन्ज आयरन की. एनएमडीसी से मिनी स्टील प्लांटों को सस्ता स्पाँज आयरन मिल सके, इसके लिए खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह कई बार केंद्रीय इस्पात मंत्रालय को पत्र लिख चुके हैं. इसमें राज्य की भूमिका बेहद सीमित है. हम सिवाए केंद्र सरकार से गुहार लगाने के और कुछ नहीं कर सकते.’ अब स्थानीय उद्योगपतियों और सरकार की खींचतान में नुकसान आखिरकार प्रदेश का ही हो रहा है. तेजी से औद्योगिक केंद्र के रूप में उभरते छत्तीसगढ़ के लिए ये अच्छे संकेत नहीं हैं. वो भी ऐसे समय जब राज्य सरकार देश-विदेश के बड़े उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश के लिए बार-बार न्यौता भेज रही हो.

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