चौ. देवीलाल |1914-2001|

चौ. देवीलाल [1914-2001]
लोकसभा में महज 10 प्रतिनिधि भेजने वाले हरियाणा के नेता चौधरी देवीलाल अकेले नेता रहे जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति को गहरे तक प्रभावित किया. यूं तो प्रदेश से तमाम नेताओं ने समय-समय पर राजनीति में दस्तक दी है, लेकिन पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. देवीलाल यानी हरियाणा के ताऊ इकलौते शख्स रहे जिन्होंने एक समय में शीर्ष पद यानी प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी गंभीर दावेदारी पेश की थी. पीएम इन वेटिंग की चर्चा में देवीलाल उस फेहरिस्त में शामिल हैं जो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. हालांकि इस श्रेणी में जो दूसरे नाम शामिल हैं उनमें और देवीलाल में एक मूलभूत अंतर है. दूसरे तमाम नेता हर कोशिश करके भी असफल रहे लेकिन देवीलाल के बारे में माना जाता है कि उन्होंने स्वयं ही यह पद स्वीकार नहीं किया. इसकी वजह भी बेहद दिलचस्प है जो आगे स्पष्ट हो जाएगी. आजादी के बाद छह उपप्रधानमंत्री हुए हैं, इनमें से मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह को छोड़कर बाकी सब प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने में असफल रहे हैं.

आज देवीलाल की राजनीतिक विरासत के दो वारिस उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला और पौत्र अजय सिंह चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी सिद्ध होकर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. अस्सी के दशक में जाट राजनीति के इस धाकड़ नेता के निधन के बाद उनके परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा में सांसद के तौर पर निर्वाचित नहीं हो पाया है. जबकि एक वक्त ऐसा भी था जब 1989 के आम चुनावों में देवीलाल ने राजस्थान के सीकर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता बलराम जाखड़ और हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट पर राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को एक साथ मात दी थी. जाट राजनीति पर उनकी पकड़ का ही एक और नमूना 1987 में देखने को मिला जब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में देवीलाल के प्रभाव वाले जनता दल के प्रत्याशी ने अजित सिंह के प्रति तमाम सहानुभूति होने के बावजूद उनकी पार्टी के उम्मीदवार को बड़ी मात दी. इसी समय 1987 में रोहतक संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में देवीलाल के उम्मीदवार ने स्व. चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी को भी हराया था.

1977 में जब देश आपातकाल विरोध की लहर में जकड़ा हुआ था तब देवीलाल हरियाणा में जनता पार्टी के उपाध्यक्ष थे. विधानसभा चुनाव के बाद जनता पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रहे दलित नेता चौधरी चांदराम के सहयोग से उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री की कमान संभाली. हालांकि हरियाणा में जाट नेता देवीलाल का मुख्यमंत्री बनना उस समय किसान राजनीति के अगुवा चौधरी चरण सिंह को रास नहीं आया था, लेकिन एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद देवीलाल उत्तर भारत में कांग्रेस विरोध के बड़े क्षत्रप के तौर पर स्थापित हो गए थे. पंजाब और हरियाणा विधानसभा के कई बार सदस्य रहे चौधरी देवीलाल के जीवन में 1989 में एक महत्वपूर्ण पड़ाव आया. वे वीपी सिंह की जनता दल सरकार के उपप्रधानमंत्री बने. 11 महीने बाद ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई. इसके बाद देवीलाल के नेतृत्व में एक वैकल्पिक सरकार के गठन की चर्चा जोरों पर थी. उनके समर्थकों के मुताबिक देवीलाल ने खुद ही उस सरकार का नेता बनने से मना कर दिया क्योंकि उनकी पढ़ाई-लिखाई दसवीं से भी कम की थी यानी उन्होंने जान-बूझकर प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं किया.

उनके इनकार के बाद चंद्रशेखर चार महीने की समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री बन गए और देवीलाल को इतिहास ने दोबारा वह मौका कभी नहीं दिया. इस दौरान घटी कुछ दूसरी घटनाओं ने भी उनके राजनीतिक जीवन को अस्थिर किया. 1989 में रोहतक संसदीय सीट पर उन्होंने दो लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी पर उन्होंने लोकसभा में सीकर का प्रतिनिधित्व करने का फैसला लिया. हरियाणा की जनता ने अपने ताऊ को इस बात के लिए कभी माफ नहीं किया. इसके बाद अगले तीन लोकसभा चुनावों में रोहतक की जनता ने देवीलाल को हराया और वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार तीन बार ताऊ को हरा कर कांग्रेस और हरियाणा की राजनीति में स्थापित होते चले गए. इसी दौरान हरियाणा के महम कस्बे में हुए महम कांड ने भी देवीलाल की छवि पर विपरीत असर डाला. इन दो घटनाओं के साथ ही ताऊ की पार्टी की पकड़ जाट पट्टी का दिल कहे जाने वाले रोहतक संसदीय क्षेत्र के इलाके में कमजोर होती चली गई. अपने जीवन के अंतिम पांच साल वे राज्यसभा सांसद रहे और अप्रैल, 2001 में उनका निधन हो गया. इस तरह हरियाणा का यह जाट नेता हमेशा के लिए पीएम इन वेटिंग वाली लिस्ट में ही रह गया.

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