तीन पूर्वोत्तर राज्यों में चुनाव के साथ ही राजनीतिक दल सक्रिय
नये साल की शुरुआत तीन पूर्वोत्तर राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ हुई है। इसमें दो बड़े इम्तिहान होंगे। एक भाजपा को जीत के सिलसिले को उन राज्यों में आगे बढ़ाना है, जहाँ उसके लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं।
दूसरे कांग्रेस को जो अपने नेता राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद पार्टी के मज़बूत होने का दावा कर रही है; भले यात्रा इन राज्यों में नहीं गयी थी। धीरे-धीरे देश में भाजपा और कांग्रेस के अलावा तीसरे मोर्चे की भी हल्की-सी सक्रियता दिखने लगी है, जिसके लिए फ़िलहाल तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी. राव सक्रिय हैं। भले उन्हें टीएमसी की ममता बनर्जी और जद(यू) के नीतीश कुमार का समर्थन नहीं मिला है। हालाँकि यह भी सच है कि के.सी.आर. के साथ दिख रहे दलों का चुनाव वाली इन तीन राज्यों में कोई वजूद नहीं है और उनकी सक्रियता 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अधिक दिखती है।
भाजपा ने जनवरी के तीसरे हफ़्ते दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर चुनावी रणनीति बनाने की शुरुआत कर दी है। पार्टी ने एक और बड़ा फ़ैसला वर्तमान अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के कार्यकाल को एक साल और बढ़ाने का किया है।
सक्रिय कांग्रेस भी है, जिसने चुनाव की घोषणा के साथ ही त्रिपुरा में माकपा के साथ गठबंधन किया है। इन तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में क्षेत्रीय दलों के साथ दो बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस की भी जंग होगी। दिलचस्प यह है कि तीनों ही राज्यों में 60-60 सीटें हैं और वहाँ अक्सर बहुमत का काँटा फँस जाता है।
तीन राज्यों में चुनाव जल्द
चुनाव आयोग के मुताबिक, त्रिपुरा में 16 फरवरी, जबकि नागालैंड और मेघालय में 27 फरवरी को मतदान होगा। त्रिपुरा में भाजपा सत्ता में है, तो नागालैंड में एनडीपीपी की नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली, जबकि मेघालय में एनपीपी के कोनराड संगमा की सरकार है। इन दोनों राज्यों में भाजपा सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है। नागालैंड विधानसभा का कार्यकाल 12 मार्च, मेघालय विधानसभा का 15 मार्च और त्रिपुरा विधानसभा का कार्यकाल 22 मार्च को पूरा हो जाएगा।
त्रिपुरा में भाजपा ने पहली बार सन् 2018 में सत्ता पर क़ब्ज़ा किया था। तब भाजपा ने वहाँ पिछले 25 साल से सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार को बाहर किया था। भाजपा सरकार का नेतृत्व बिप्लब देब को मिला। हालाँकि चार साल बाद 2022 में भाजपा ने देब को हटाकर मानिक साहा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। साह पर अब कांग्रेस-माकपा गठबंधन की चुनौती का सामना करके भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने की ज़िम्मेदारी है।
यदि त्रिपुरा का क्षेत्रीय गुणाभाग देखें, तो पश्चिम त्रिपुरा में सर्वाधिक 14 सीटें हैं और भाजपा का यह गढ़ कहा जा सकता है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में इसी इलाक़े में भाजपा ने अपने सहयोगी के साथ मिलकर सभी सीटों पर क़ब्ज़ा कर लिया था। इनमें भाजपा 12 सीटों पर, जबकि दो पर सहयोगी आईपीएफटी जीती थी। उधर सिपाहीजाला में माकपा और भाजपा में मुक़ाबला तो हुआ था; लेकिन माकपा ने नौ में से पाँच सीटें जीतकर अपना दबदबा बनाया था। भाजपा ने भी वहाँ तीन, जबकि आईपीएफटी ने एक सीट जीती थी।
त्रिपुरा का तीसरा इलाक़ा गोमती है, जहाँ सात सीटें हैं। इनमें पाँच भाजपा ने जीत ली थीं, जबकि दक्षिण त्रिपुरा की सात में से तीन सीटें उसके हिस्से आयी थीं। धलाई क्षेत्र में भाजपा छ: में से पाँच पर क़ब्ज़ा करने में सफल रही, जिससे वह राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सिर्फ़ उत्तरी हिस्से उनाकोटी में भाजपा और माकपा ने बराबर सीटें जीती थीं; लेकिन इससे माकपा भाजपा को पहली बार राज्य में सत्ता में आने से नहीं रोक पायी।
उस चुनाव में भले भाजपा बहुत मज़बूत होकर उभरी थी; लेकिन समय के साथ वहाँ उसके ताक़तवर क़िले में दरारें आती दिखी हैं। सियासी उथल-पुथल ने भाजपा की चिन्ता बढ़ायी है। भाजपा ने जब उसे सत्ता में लाने वाले बिप्लब कुमार देब को हटाया, तो उसके बाद कई बड़े नेता पार्टी से अलग हो गये। इनमें हंगशा कुमार शामिल हैं, जो पिछले साल अगस्त में अपने आदिवासी समर्थकों के साथ टिपरा मोथा में चले गये। आदिवासी अधिकार पार्टी भाजपा विरोधी राजनीतिक मोर्चा बना रही है। त्रिपुरा में सबसे बड़ी राजनीतिक घटना जनवरी में माकपा और कांग्रेस के बीच हुआ चुनावी गठबंधन है। दोनों दल एक-दूसरे के घोर विरोधी रहे हैं; लेकिन भाजपा की ताक़त कमज़ोर करने के लिए साथ आ गये हैं। निश्चित ही इससे दोनों की ताक़त बढ़ी है और भाजपा के लिए चुनौती बनेंगे।
राज्य में ग्रेटर टिपरालैंड का मुद्दा भी काफ़ी गर्म रहा है। हाल में त्रिपुरा के राजनीतिक दल इंडिजनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के प्रमुख देबबर्मा ने अलग राज्य ग्रेटर टिपरालैंड की माँग के लिए समर्थकों के साथ दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना देने की बात कही थी। देबबर्मा एनईडीई के संयोजक हिमंत बिस्वा सरमा के साथ बैठक कर चुके हैं। इसमें देबबर्मा ने ग्रेटर टिपरालैंड की माँग से कोई भी समझौता करने से इनकार किया था।
अभी तक पूर्वोत्तर में भाजपा की रणनीति सँभाल रहे किरण रिजिजू, जो मोदी सरकार में गृह राज्यमंत्री और अरुणाचल प्रदेश से हैं; के अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को भाजपा नेतृत्व ने काफ़ी सक्रिय किया है। पार्टी ने उन्हें एनईडीए का संयोजक बनाया है। भाजपा ने त्रिपुरा के लिए नेताओं की अलग टीम बनायी है, जबकि मेघालय में पार्टी ने अकेले लडऩे का फ़ैसला किया है। दिल्ली में रणनीति को लेकर हाल में हिमंत बैठक कर चुके हैं। हिमंत हाल के महीनों में भाजपा नेतृत्व के बीच अपना क़द ऊँचा करने में सफल रहे हैं, जिसका विशेष कारण यह भी है कि वह कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ बहुत तीखे बयान देते रहे हैं, जिनमें एक यह भी था कि राहुल गाँधी की सूरत आजकल ईराक के दिवंगत तानाशाह सद्दाम हुसैन से कई थी, जिसकी विपक्ष ने काफ़ी आलोचना की थी। सरमा लगातार भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और अमित शाह को फीडबैक देते हैं, जो ख़ुद भी चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे हैं। सरमा के मुताबिक, एनडीए के हिस्से के रूप में भाजपा और एनडीपीपी ने नागालैंड चुनाव के लिए सीटों को अन्तिम रूप दे दिया है। एनडीपीपी 40 सीटों, जबकि भाजपा 20 सीटों पर लड़ेगी। अमित शाह के साथ साथ भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा नागालैंड का दौरा कर चुके हैं। उसी दौरान एनडीपीपी के साथ 20:40 के वोट शेयर के साथ चुनावी मैदान में उतरने की बात हुई थी। नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की एनडीपीपी पार्टी भाजपा के साथ कैसा प्रदर्शन करेगी, यह तो नतीजों से पता चलेगा।
साल 2018 के चुनाव से पहले नागालैंड में सत्तारूढ़ नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) दो-फाड़ हो गयी थी। एक गुट (बाग़ी) ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) बना ली। वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री रहे नेफ्यू रियो बाग़ी गुट के साथ गये जिससे वह मज़बूत हो गया। चुनाव से पहले एनपीएफ ने वहाँ भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया और भाजपा-एनडीपीपी मिलकर चुनाव में उतरे। एनडीपीपी को 17 और भाजपा को 12 सीटें मिलीं। सत्ता में नेफ्यू को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद बड़े घटनाक्रम में नेफ्यू रियो के मुख्यमंत्री बनने के बाद 27 सीट जीतने वाली एनपीएफ के ज़्यादातर विधायक एनडीओपीपी में दलबदल कर गये, जिससे सरकारी पक्ष की संख्या 42 हो गयी। एनपीएफ के पास महज़ चार विधायक बचे। लिहाज़ा उसने भी सत्तारूढ़ गठबंधन को समर्थन दे दिया। अब जो सरकार वहाँ हैं, उसके 60 में 60 विधायक सत्ता में हैं। देश में किसी राज्य में ऐसा नहीं है। इस बार देखना है कि एनपीएफ का क्या रोल रहता है? क्योंकि वह सूबे की सबसे बड़ी पार्टी रही है। उसके नेता कुझोलुजो निएनु ने हाल में कहा था कि एनपीएफ अपने दम पर चुनाव लडऩे में सक्षम है।
तीसरे पूर्वोत्तर मेघालय में भाजपा अकेले मैदान में उतर रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस वहाँ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। बहुमत से दूर रहने के कारण वह सरकार नहीं बना पायी, जिसके बाद भाजपा ने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के साथ गठबंधन कर लिया और सरकार बना ली। वैसे चुनाव में दोनों एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़े थे। ज़्यादा सीटें होने के कारण एनपीपी के कोनराड संगमा मुख्यमंत्री बने। इस बार चुनाव से पहले राज्य में राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ है, क्योंकि वहाँ गठबंधन सहयोगियों एनपीपी और भाजपा में जंग चली हुई है। एनपीपी भाजपा से स$ख्त नाराज़ है; क्योंकि उसके दो विधायक हाल में पार्टी छोडक़र भाजपा में चले गये हैं। अब दोनों सहयोगी अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। भाजपा नेतृत्व ने हाल के महीनों में पार्टी संगठन को राज्य में मज़बूत किया है। एक अन्य घटना चक्र में चुनाव की घोषणा से ऐन पहले पाँच विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्ती$फा दे दिया था। ये सभी नेता यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीएफ) में शामिल हो गये हैं।
मेघालय में भी 60 विधानसभा सीटें हैं। सन् 2018 में यहाँ 59 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 21 सीटें सीटों पर जीत हासिल हुई है। एनपीपी दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी, जिसके खाते में 19 सीटें थीं। भाजपा को महज़ दो सीटें मिली थीं, जबकि यूडीपी को छ: सीटें। राज्य में कांग्रेस के अलावा तृणामूल कांग्रेस (टीएमसी) की भी मज़बूत ज़मीन है। क्षेत्रीय दलों में नेशनल पीपुल्स पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, गारो नेशनल काउंसिल, खुन हैन्नीवट्रेप राष्ट्रीय जागृति आन्दोलन, नार्थ ईस्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, मेघालय डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे दल हैं। भाजपा यहाँ ख़ुद को और मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। भाजपा ने पिछली बार कांग्रेस के सरकार न बना पाने के कारण नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ गठबंधन कर सरकार बनायी थी। कांग्रेस के लिए वहाँ चुनौती बनी हुई है। उसके कई विधायक हाल के महीनों में ममता बनर्जी की टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। टीएमसी कितना ज़ोर मार पाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा। हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपने विरोधियों के लिए मैदान खुला छोड़ देगी।
यह दिलचस्प ही है कि पूर्वोत्तर राज्यों में आज जो भी मुख्यमंत्री हैं, वह सभी कांग्रेस में ही रहे हैं। सात में से पूर्वोत्तर के पाँच राज्यों के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (असम), माणिक साहा (त्रिपुरा), एन. बीरेन सिंह (मणिपुर), पेमा खांडू (अरुणाचल प्रदेश), नेफियू रियो (नागालैंड) कांग्रेस के पूर्व नेता हैं। अब यह सभी नेता भाजपा के नेतृत्व में हैं। कांग्रेस के विधायकों के एनपीपी और टीएमसी में जाने से उसकी स्थिति कमज़ोर हुई है, क्योंकि चुनाव में जाते हुए उसके पास सिर्फ़ दो विधायक ही हैं। दिलचस्प यह है कि पार्टी इस बार अकेले मैदान में उतर रही है।
सक्रिय रहेंगे राहुल गाँधीराहुल गांधी, भारत जोड़ो यात्रा
राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा के बाद चुप होकर नहीं बैठने वाले। भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस ने अपना अगला कार्यक्रम घोषित कर दिया है। दूसरे अभियान में कांग्रेस ने हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा का ऐलान कर दिया है। पार्टी ने इसके लिए बाक़ायदा दिल्ली में ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ अभियान का लोगो और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ एक चार्जशीट जारी की है।