चुनाव परिणाम: भाजपा की जीत-हार

गुजरात की बम्पर जीत ने भाजपा की हिमाचल और दिल्ली में हार ढक दी । साल 2022 देश की राजनीति में काफ़ी कुछ अलग रहा। चुनाव की बात करें, तो साल के जाते-जाते भाजपा ने मोदी की लोकप्रियता के बूते गुजरात में बम्पर जीत हासिल की; लेकिन इन्हीं मोदी की लोकप्रियता दिल्ली के नगर निगम और हिमाचल के विधानसभा चुनाव में काम नहीं कर पायी और भाजपा को सत्ता गँवानी पड़ी। इसके अलावा दिसंबर में ही अलग-अलग राज्यों में छ: विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उप चुनाव में भी भाजपा को दो ही विधानसभा सीटें मिलीं। भाजपा ने भले इन हारों को गुजरात की बम्पर जीत से ढकने की कोशिश की हो; लेकिन सत्य यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव उसके लिए सन् 2019 जैसे सरल नहीं होंगे। बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-

क्या गुजरात विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ जीत भाजपा को 2024 में होने वाले आम चुनाव में जीत की गारंटी देती है? शायद नहीं। गुजरात में भाजपा की जीत शुद्ध रूप से मोदी के प्रति राज्य की जनता का समर्थन, ठीक-ठाक स्तर पर भाजपा के बड़े नेताओं की तरफ़ से किया गया धार्मिक ध्रुवीकरण, ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी का अपने लिए सहानुभूति जुटाना जैसे कारकों का नतीजा है। प्रधानमंत्री मोदी को भाजपा ने हिमाचल के विधानसभा चुनाव में भी अपना चेहरा बनाया था; लेकिन वहाँ कांग्रेस बहुमत से जीती। ऐसा ही हाल दिल्ली के नगर निगम चुनाव में रहा, जहाँ मोदी के चेहरे के बावजूद लोगों ने अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर ज़्यादा भरोसा किया।

उत्तर भारत में भाजपा को 2024 की मंज़िल पाने से पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के रास्ते से गुज़रना है, जबकि दक्षिण के कर्नाटक में भी कांग्रेस उसे मज़बूत चुनौती दे सकती है। इन सभी राज्यों में आम आदमी पार्टी की ज़्यादा सम्भावना नहीं है। लिहाज़ा कांग्रेस के वोट बँटने का ख़तरा भी कम रहेगा; भले कर्नाटक में उसे जनता दल(एस) से चुनौती रहेगी।

गुजरात का जनादेश:

कुल सीटें- 182

भाजपा   156

कांग्रेस    17

आप      05

सपा      01

अन्य     03

 

 

आप बनाम कांग्रेस

गुजरात में बड़ी जीत ने निश्चित ही भाजपा ख़ेमे में जोश भर दिया है, जहाँ सन् 2017 के चुनाव में उसे कांग्रेस ने ख़ूब पानी पिलाया था। इस बार कांग्रेस ने चुनाव को ऐसे लिया, मानो उसे यह जीतना ही न हो। ऊपर से आम आदमी पार्टी (आप) ने 12.9 फ़ीसदी वोट (मत) लेकर कांग्रेस को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, आप कांग्रेस के हिस्से के कुछ लाख नहीं क़रीब 35 लाख (क़रीब 12 फ़ीसदी) वोट अपने पाले में ले गयी। राज्य की कुल 182 सीटों में से 35 सीटों पर आप ने कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल दिया। पांच सीटें आप ने जीतीं भी। लिहाज़ा कांग्रेस को इन 40 सीटों पर आप ने सीधा नुक़सान पहुँचाया।

गुजरात में कांग्रेस को सन् 1990 के बाद पहली बार सबसे कम वोट मिले हैं। यहाँ तक कि सन् 1990 की आडवाणी की रथ यात्रा वाली राम लहार में भी कांग्रेस ने 31 फ़ीसदी वोट हासिल किये थे। इस बार कांग्रेस का वोट प्रतिशत 27.3 तक आ गया और हाथ में सीटें रह गयीं महज़ 17 ही। पंजाब में कुछ इस तरह ही आप ने अपना सत्ता का रास्ता बनाया था। यदि कांग्रेस अब भी सक्रियता, संगठन और प्रदेश नेतृत्व पर फोकस नहीं करती है, तो आप उसका आधार खा सकती है। हाँ, इसके लिए आप को भी ज़मीन पर काम रहना होगा; क्योंकि ग्रामीण इलाक़ों में अभी भी कांग्रेस को लोग मानते हैं।

आपने सन् 2017 में भी गुजरात चुनाव लड़ा था। तब उसे 29,000 से कुछ ही ज़्यादा वोट मिले थे। लेकिन इस बार उसके कुल वोटों की संख्या 41 लाख पार कर गयी। यदि कांग्रेस की बात करें, तो उसे इस बार 86.83 लाख वोट मिले, जबकि सन् 2017 के विधानसभा चुनाव में उसने 1.24 करोड़ वोट हासिल किये थे। इनमें से उसके ज़्यादातर वोट आप के खाते में गये।

कांग्रेस चुनाव में कितनी गम्भीर थी, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिन राहुल गाँधी ने 2017 के चुनाव में गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए 30 जनसभाएँ की थीं। लेकिन इस बार राहुल सिर्फ़ एक दिन दो रैलियाँ करने पहुँचे। उनके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी ने 31 जनसभाएँ कीं और केजरीवाल ने 19 रैलियाँ कीं। दोनों ने रोड शो अलग से किये। तब कांग्रेस को 41 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे और इस बार 27 फ़ीसदी।

इसमें कोई शक नहीं कि पार्टी अध्यक्ष न होने के बावजूद राहुल गाँधी ही जनता में कांग्रेस का असली चेहरा हैं। उनका न आना कांग्रेस को भारी पड़ा, बेशक इसके अलग कारण थे। मल्लिकार्जुन खडग़े ऐसा नेता नहीं, जो कांग्रेस को वोट दिला सकें। वह राहुल गाँधी की तरह देशव्यापी छवि वाले नेता नहीं। न वह राहुल जैसे भाग-दौड़ कर सकते हैं। दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री मोदी ऊर्जा से भरे रहते हैं। गुजरात चुनाव से निपटते ही अहमदाबाद से आकर शाम को दिल्ली में वे भाजपा की बैठक में पहुँच गये। कांग्रेस ने ख़ुद को 2024 के लोकसभा चुनाव पर फोकस कर दिया है और राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उसी का हिस्सा है। पार्टी के दक्षिण से एक सांसद ने कहा- ‘राहुल कांग्रेस की उम्मीद हैं, इसमें कोई दो-राय नहीं। जनता उनसे प्यार करती है, यह भारत जोड़ो यात्रा से साबित हो गया है। दक्षिण में इस यात्रा ने कांग्रेस की ज़मीन को मज़बूत किया है और पार्टी कार्यकर्ता बहुत सक्रिय हो गया है। लेकिन मेरे विचार में राहुल जी को गुजरात और हिमाचल दोनों जगह चुनाव प्रचार में जाना चाहिए था। यात्रा का समय चुनाव से क्लैश नहीं करना चाहिए था।’

भाजपा का ध्रुवीकरण

भाजपा गुजरात को किसी भी सूरत में जीतना चाहती थी। यह चुनाव उसके दो बड़े नेताओं- प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह के चुनाव प्रचार में बयानों और ध्रुवीकरण की खुली कोशिशों से साफ़ ज़ाहिर हो गया था। इसकी तैयारी भाजपा ने तब कर दी, जब पार्टी की सरकार ने बिलकिस बानो रेप मामले के दोषियों को छोड़ दिया। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने खुलकर बयान दिया- ‘2002 के दोषियों को ऐसी सज़ा दी गयी कि वे दोबारा सिर नहीं उठा सके।’

धार्मिक आधार पर वोटों ध्रुवीकरण की यह बहुत बड़ी कोशिश थी। भाजपा सरकार ने चुनाव से ऐन पहले बिलकिस बानो रेप मामले के दोषियों को जब रिहा किया, उसके महज़ ढाई महीने बाद ही प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। नतीजा देखिये कि बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा करने वाली सरकारी समिति के सदस्य सी.के. राउलजी ने भाजपा के टिकट पर गोधरा से बम्पर 35,000 वोटों से जीत हासिल की। यह एक ऐसी सीट है, जहाँ मुस्लिम भी बड़ी संख्या में हैं। राउलजी को भाजपा ने टिकट दिया, जिससे इलाक़े में हिन्दू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो गया। इसका असर गोधरा से बाहर भी पड़ा। पंचमहल ज़िले में गोधरा समेत कुल पाँच विधानसभा सीटें हैं और सभी पर भाजपा की जीत हुई।

दिलचस्प यह भी है कि सन् 2007 और सन् 2012 में राउलजी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीते थे। उन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों वोट मिले थे। इस बार भाजपा ने उन्हें साथ लिया और ध्रुवीकरण के सहारे बम्पर वोट हासिल कर लिये। इसके अलावा भाजपा ने नारोदा पाटिया नरसंहार के दोषी मनोज कुकरानी की बेटी पायल कुकरानी को टिकट दिया। फरवरी, 2002 के इन दंगों में 97 मुसलमानों की जान गयी थी और 32 लोगों को कोर्ट ने दोषी ठहराया था, जिनमें कुकरानी शामिल हैं। पायल ने यह चुनाव 83,000 के वोटों के बड़े अन्तर से जीता। ध्रुवीकरण का एक और बड़ा उदाहरण अहमदाबाद में एलिसब्रिज की सीट है, जहाँ भाजपा ने अमित पोपटलाल शाह को मैदान में उतारा। पूर्व मेयर पोपटलाल को टिकट देने के लिए दो बार से लगातार चुनाव जीत रहे विधायक का टिकट काट दिया। याद रहे इन्हीं पोपटलाल का नाम हीरेन पांड्या हत्याकांड में बहुत चर्चा में रहा था। यह माना जाता है कि अहमदाबाद एलिसब्रिज सीट से चुनाव लडऩे वाले पांड्या भाजपा में नरेंद्र मोदी के मुखर विरोधी थे। इन्हीं पांड्या की हत्या मामले में पोपट लाल शाह का नाम आया था। भाजपा ने उन्हें अहमदाबाद से मैदान में उतारा, जिसका असर इस ज़िले की 21 सीटों पर पड़ा। इनमें से भाजपा ने 19 जीत लीं।

भाजपा को फ़ायदा या नुक़सान?

बेशक गुजरात, हिमाचल (दोनों विधानसभा) और दिल्ली (एमसीडी) के इन तीन चुनावों में जनता ने भाजपा, कांग्रेस और आप सभी को कुछ-न-कुछ दिया है; लेकिन जनता में भाजपा अपनी बम्पर जीत को भुनाने में सबसे आगे रही है। गुजरात की जीत के बाद शाम को ही भाजपा के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- ‘यह बड़ी जीत ज़ाहिर करती है कि देश की जनता भाजपा को चाहती है और उसको भरपूर प्यार दिया।’

वास्तव में यह प्यार गुजरात से बाहर हिमाचल और दिल्ली में भाजपा को नहीं मिला। लेकिन सच यह है कि यह मोदी के शब्दों की चतुराई भर थी। गुजरात के साथ ही हुए दो चुनावों में भाजपा को हार मिली, जिसे वो बहुत चतुराई से गोल कर गये। हिमाचल में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में बहुत हासिल कर बता दिया कि भाजपा को हराया जा सकता है। वहाँ भाजपा ने मोदी का चेहरे सामने रखकर ही चुनाव लड़ा था। ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल जैसे छोटे राज्य में चार दौरे किये और 10 के क़रीब चुनाव जनसभाएँ कीं। प्रदेश का होने के कारण भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तो काफ़ी समय तक हिमाचल में रहे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी हिमाचल के ही हैं।

गुजरात की बात करें, तो मोदी और शाह ने एक बार फिर साबित किया कि अपने गृह राज्य में उनकी बेहतरीन पकड़ है। वे जनता की नब्ज़ पहचानते हैं और संकट में चुनाव कैसे जीता जा सकता है, इसका प्रबंधन भी करना जानते हैं। गुजरात की 182 सीटों में से भाजपा की 156 सीटों पर जीत कोई छोटी जीत नहीं है। भाजपा का एजेंडा सर्वविदित है। वह उसे छिपाती नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह ने बिना किसी लाग लपेट के सन् 2002 के दंगों पर टिप्पणी की। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषणों में जो कहना था, कहा।

इस चुनाव में सबसे ज़्यादा नुक़सान निश्चित ही कांग्रेस का हुआ है। सबको पता था कि आम आदमी पार्टी गुजरात में सरकार तो नहीं ही बना पाएगी, दूसरे नंबर पर भी नहीं रहेगी। लेकिन इसके बावजूद उसका प्रचार ऐसा था, मानों सरकार बनाने जा रही हो। चुनाव से पहले केजरीवाल ने तो मीडिया के सामने एक पर्ची पर सीटें तक लिख दी थीं। अब चुनाव बाद का दृश्य देखिए। केजरीवाल ने एक बार भी चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने का मलाल ज़ाहिर नहीं किया, बल्कि इस बात पर ख़ुशी ज़ाहिर की कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बन गयी। दरअसल केजरीवाल को भी पता था कि वह जीत नहीं सकती। उनकी रणनीति ही छ: फ़ीसदी से ज़्यादा वोट लेने की थी, ताकि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सके। आप इसमें सफल रही।

गुजरात की जीत को भाजपा और उनका थिंक टैंक 2024 के आम चुनाव के लिए भुनाना चाहता है। लेकिन पार्टी को भी पता है कि गुजरात से बाहर हिमाचल और देश की राजधानी के निगम चुनाव में उसे मात मिली है। दक्षिण में राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा ने भाजपा के विस्तार की योजनाओं को धक्का दिया है। उसे अब वहाँ पहले से कहीं ज़्यादा मेहनत करनी होगी। दूसरा कारण यह भी है कि गुजरात का जनादेश दक्षिण राज्यों में कोई असर नहीं डालता। उत्तर भारत कांग्रेस की कमज़ोर कड़ी है। हालाँकि यदि वह अगले साल के विधानसभा चुनाव में हिमाचल के बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कुछ कमाल कर पाती है, तो भाजपा के लिए 2024 में गम्भीर चुनौती पेश कर सकती है।

गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लिए वोट माँगे और उन्हें मिले; लेकिन ऐसा हिमाचल में नहीं हुआ। लिहाज़ा भाजपा सिर्फ़ गुजरात के बम्पर जीत के भरोसे बहुत आश्वस्त नहीं हो सकती। हिमाचल और एमसीडी के चुनाव में उनके ब्रांड नाम पर वोट नहीं पड़े। हो सकता है कि लोकसभा के चुनाव में जनता अलग तरीक़े से सोचे। क्योंकि उसके सामने मोदी का कोई स्पष्ट राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प नहीं है। राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है। राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के अलावा टीएमसी, डीएमके जैसे क्षेत्रीय दल वहाँ काफ़ी मज़बूत हैं।

भूपेंद्र पटेल फिर बने मुख्यमंत्री

गुजरात में एक बार फिर भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बन गये। प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की उपस्थिति में 12 दिसंबर को उन्होंने राज्यपाल आचार्य देवव्रत से पद की शपथ ली। पाटीदार आन्दोलन को ख़त्म करने में भूपेंद्र पटेल ने बड़ी भूमिका निभायी थी। उनके दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने से ज़ाहिर हो जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह उनके नेतृत्व से ख़ुश हैं। भूपेश को तब मुख्यमंत्री बनाया गया था, जब कुछ महीने पहले भाजपा ने गुजरात की पूरी सरकार ही बदल दी थी। कहा जाता है कि ऐसा एंटी-इंकम्बेंसी से बचने के लिए किया गया। गुजरात मोदी-शाह का गृह राज्य है; लिहाज़ा वहाँ मुख्यमंत्री का कामकाज हमेशा परीक्षा के पैमाने पर रहता है।

 

हिमाचल में कांग्रेस की जबरदस्त वापसी

यह बहुत दिलचस्प बात है कि प्रियंका गाँधी का कांग्रेस राजनीति में हिमाचल से कोई सीधा नाता नहीं। वह पार्टी महासचिव के नाते उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं। हाँ, उनका शिमला के छराबड़ा में घर ज़रूर है। लेकिन प्रियंका ने इस बार हिमाचल चुनाव की कमान जिस तरीक़े से सँभाली, उसने सबको हैरान कर दिया। कांग्रेस की प्रदेश में सत्ता में वापसी का श्रेय कुछ हद तक प्रियंका को दिया जा सकता है। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक, अग्निवीर योजना का विरोध और पुरानी पेंशन के वादे को सबसे ऊपर रखने का सुझाव प्रियंका गाँधी का ही था। शिमला के अपने घर में बैठकर उन्होंने चुनाव की रणनीति बुनी और लगातार नेताओं का फीडबैक लिया। काफ़ी नेताओं ने ‘तहलका’ से बातचीत में स्वीकार किया कि प्रियंका काफ़ी तेज़ तर्रार रणनीतिकार हैं और आक्रामक भी हैं।

 

हिमाचल का चुनाव जीतकर कांग्रेस ने यह सन्देश दिया है कि जनता के सही मुद्दों के साथ चुनाव लड़ा जाए, तो भाजपा को हराया जा सकता है। भाजपा भले गुजरात के नतीजे में हिमाचल की अपनी हार छिपा लेना चाहती हो, सच यह है कि वहाँ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखकर चुनाव लडऩे के बावजूद उसे कांग्रेस से हार मिली है। भाजपा अब वोट शेयर प्रतिशत की आड़ ले रही है; लेकिन उसके और कांग्रेस में 14 सीटों का अन्तर है। अपने ज़िले में 10 में से आठ सीटें भाजपा को जिताने के बावजूद जयराम ठाकुर भाजपा के लिए कमज़ोर कड़ी साबित हुए।

भाजपा ने दिग्गज नेता और दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल को एकदम किनारे कर दिया, और यह चीज़ उसे बहुत भारी पड़ी। भाजपा के ही भीतर कई बड़े नेताओं का मानना था कि यदि धूमल को हमीरपुर हलक़े से मैदान में उतारा गया होता, तो भाजपा की झोली में कुछ और सीटें आतीं और कांग्रेस के लिए चुनाव फँस जाता। धूमल से हुई ज्यादती से राजपूत वोट बड़े पैमाने पर कांग्रेस के साथ गया। यही नहीं, ऊपरी हिमाचल में, जहाँ धूमल का ख़ासा प्रभाव था; में भाजपा को सीटों के लाले पड़ गये। शिमला, सिरमौर, सोलन में भाजपा की बुरी गत हुई और प्रदेश के सबसे बड़े ज़िले कांगड़ा में उसे 15 में चार ही सीटें मिलीं। इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल में चार दौरे किये और 10 के क़रीब जनसभाओं को सम्बोधित किया। लेकिन इसके बावजूद भाजपा जीत नहीं पायी। आम आदमी पार्टी (आप) को तो जनता ने सिरे से ही ख़ारिज कर दिया और उसके खाते में बमुश्किल कुछ हज़ार ही वोट आये।

आँकड़ों का खेल