चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर सियासत

केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के मूल कर्मचारियों के सर्विस रूल्स में गृहमंत्री अमित शाह ने बदलाव कर दिया है। अब चंडीगढ़ के कर्मचारी केंद्रीय कर्मचारियों के समकक्ष सुविधाएँ पाएँगे। लेकिन इससे हरियाणा और पंजाब की यह राजधानी फिर विवाद में आ गयी है। हालाँकि यह मुद्दा पाँच दशक से भी ज़्यादा पुराना है और समय-समय पर उठता रहा है। दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी के तौर पंजाब-हरियाणा की संयुक्त राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पर हक़ के लिए फिर से दोनों राज्य सरकारों में राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो गयी है।

पंजाब में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए यह पहली बड़ी परीक्षा थी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया। इसमें कहा गया कि केंद्र सरकार तुरन्त प्रभाव से चंडीगढ़ पंजाब को हस्तांतरित किया जाए। पंजाब के रुख़ पर हरियाणा में भी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी विधानसभा में सर्वसम्मति से चिन्ता प्रस्ताव पारित कर पंजाब के रुख़ को बेमानी बताते हुए केंद्र के क़दम को सही बताया।

चूँकि चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी के अलावा केंद्र शासित प्रदेश भी है। इस नाते अमित शाह ने चंडीगढ़ प्रशासन के तहत आने वाले कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारियों के समकक्ष कर सभी सुविधाएँ देने की घोषणा की, तो पंजाब की प्रतिक्रिया होनी लाज़िमी ही थी। ऐसा होने पर चंडीगढ़ पर पंजाब की दावेदारी नहीं रहेगी और यह शहर दोनों राज्यों की राजधानी बना रहेगा, जबकि पंजाब में विभिन्न सरकारों ने समय-समय पर चंडीगढ़ को पंजाब को हस्तांतरित करने की माँग की है।

उधर हरियाणा में भी सरकारें चंडीगढ़ पर पंजाब के समकक्ष अपनी दावेदारी जताती रही हैं। चूँकि हरियाणा में भाजपा की सरकार है, इस नाते वह केंद्र के रुख़ के ख़िलाफ़ नहीं जा सकती। जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और उसे राज्य के लोगों की भावनाओं को देखते हुए मज़बूती से दावेदारी रखनी पड़़ेगी। दोनों राज्यों में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, चंडीगढ़ पर दावेदारी समान रूप से होती रही है। सवाल यह है कि आख़िर चंडीगढ़ पर अधिकार किस राज्य का है? पंजाब तो शुरू से मानता रहा है कि चंडीगढ़ को राजधानी के तौर पर उसके लिए ही विकसित किया गया था।

सन् 1966 में पंजाब से भाषा के आधार पर हरियाणा अलग राज्य के तौर पर वजूद में आया। हिमाचल प्रदेश पहले केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर और सन् 1970 में उसे पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल हुआ, जिसकी राजधानी शिमला को बनाया गया। लेकिन हरियाणा और पंजाब ने संयुक्त तौर पर चंडीगढ़ पर अपना-अपना दावा जताया। यही वजह है कि यहाँ उच्च न्यायालय, विधानसभाएँ और सचिवालय के भवन एक ही परिसर में हैं। हरियाणा को अलग राजधानी बनाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद और 10 करोड़ रुपये क़र्ज़ के तौर पर (कुल 20 करोड़ रुपये) का प्रस्ताव दिया। हरियाणा को राजधानी बनाने के लिए अधिकतम 10 वर्ष का समय दिया गया था। केंद्र और हरियाणा में राज्य कांग्रेस सरकार के दौरान कई बार हरियाणा की अलग राजधानी के बारे में प्रयास हुए; लेकिन कोई योजना सिरे नहीं चढ़ी। आख़िर उसने चंडीगढ़ पर ही अपनी दावेदारी जतायी, जो बदस्तूर अब तक जारी है। केंद्र के नयी राजधानी के प्रस्ताव पर हरियाणा मन से कभी राज़ी नहीं हुआ। जिस तरह से पंजाब के लोगों की भावनाएँ चंडीगढ़ से जुड़ी हैं, ठीक उसी तरह से हरियाणा के लोगों की भी भावनाएँ जुड़ी हैं। मामला केवल चंडीगढ़ का ही नहीं है, बल्कि उस पर अधिकारों के विवादों का भी है। भविष्य में अगर चंडीगढ़ के हस्तांतरण का फ़ैसला होता है, तो उसके साथ कई और विवाद भी सुलझाने होंगे। इनमें पंजाब में कई हिन्दी भाषी इलाक़े ऐसे हैं, जिन पर हरियाणा का दावा है। इसके साथ ही सतलुज-यमुना जोड़ नहर का मसला भी है। पंजाब इस नहर के पक्ष में नहीं, जबकि हरियाणा के लिए यह जीवनदायिनी जैसी है।

पहले तो हरियाणा चंडीगढ़ पर कभी अपना दावा छोड़ेगा नहीं। लेकिन अगर समझौते की कोई बात होती है, तो उसकी कई शर्तें होंगी, जिन पर पंजाब में कभी सहमति नहीं बन सकेगी। दशकों पुराने इस मुद्दे के निकट भविष्य में सुलझने की उम्मीद कम ही है। चंडीगढ़ में प्रशासन के कर्मचारियों के सर्विस रूल्स में बदलाव से ज़्यादातर कर्मचारी संगठन ख़ुश हैं; लेकिन पंजाब सरकार केंद्र के इस फ़ैसले से नाराज़ है।

पंजाब के मुख्यमत्री भगवंत मान के मुताबिक, केंद्र सरकार के चंडीगढ़ कर्मचारियों के सर्विस रूल्स में बदलाव देश के फेडरेल ढाँचे से छेड़छाड़ जैसा है। यह एक तरह से पंजाब के हितों से खिलवाड़ है, जिसे राज्य के लोग सहन नहीं करेंगे। उधर हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर का मानना है कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के सर्विस रूल्स में बदलाव केंद्र सरकार का सही क़दम है। जब चंडीगढ़ दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी है, तो फिर पंजाब को इस घोषणा के बाद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इसके हस्तांतरण का प्रस्ताव पास करने की क्या ज़रूरत है? फिर मामला केवल चंडीगढ़ का ही तो नहीं है। इसके साथ पंजाब में स्थित हिन्दी भाषी क्षेत्र और सतलुज-यमुना जोड़ नहर जैसे मुख्य मामले हैं। पंजाब उनके बारे में किसी तरह की बातचीत करने को तैयार नहीं है।

सन् 1947 में भारत-पाक विभाजन से पहले संयुक्त पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी। विभाजन के बाद पश्चिम पंजाब पाकिस्तान में चला गया, जबकि पूर्वी पंजाब भारत के पास रहा। तब यहाँ के पंजाब में पंजाबी, हिन्दी और पहाड़ी भाषाओं के आधार पर अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव सामने आया। चूँकि संयुक्त पंजाब की राजधानी लाहौर पाकिस्तान में चला गया। ऐसे में हमारे यहाँ के पंजाब की राजधानी का मसला खड़ा हो गया। इसके लिए चंडीगढ़ को राजधानी के तौर पर विकसित किया जाने लगा। सन् 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और सन्त हरचंद सिंह लौंगोवाल के बीच अन्य कुछ शर्तों के साथ समझौता हुआ। इसमें चंडीगढ़ पंजाब को देने की बात भी थी। लेकिन बाद में इस शर्त पर लिखित समझौता नहीं हो सका। यही वजह रही कि चंडीगढ़ किसी एक राज्य की नहीं, बल्कि संयुक्त तौर पर राजधानी बनी रही।

चंडीगढ़ पर हरियाणा के मुक़ाबले पंजाब की भागीदारी ज़्यादा है। इस पर हरियाणा को कभी ऐतराज़ नहीं रहा। पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासक के तौर पर काम करते हैं। इसके अलावा उपायुक्त और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जैसे अहम पद पर दोनों राज्यों की भागीदारी है। चंडीगढ़ पर पंजाब का हिस्सा 60 फ़ीसदी, जबकि हरियाणा का 40 फ़ीसदी है।

दोनों राज्यों के ज़्यादातर मुख्यालय भी यहीं पर हैं। किसी भी तरह की कोई दिक़्क़त नहीं है; लेकिन नये फ़ैसले से दोनों मुख्यमंत्रियों में अब जैसे तलवारें खिंच गयी हैं। चंडीगढ़ नगर निगम की विशेष बैठक में शहर को केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर ही रहने पर चर्चा हुई। मेयर सरबजीत कौर के मुताबिक, दिल्ली की तरह चंडीगढ़ की भी अलग विधानसभा हो और इसे केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर ही रखना चाहिए। यहाँ सब काम सुचारू रूप से चल रहे हैं। ज़्यादातर लोग भी किसी एक प्रदेश की राजधानी नहीं, बल्कि केंद्र शासित के तौर पर ही देखना चाहते हैं।

 

“केंद्र का चंडीगढ़ प्रशासन के सर्विस रूल्स में बदलाव का फ़ैसला पंजाब के हितों पर कुठाराघात है। चंडीगढ़ पर पंजाब का हक़ है और यह उसे तुरन्त प्रभाव से हस्तांतरित किया जाना चाहिए। हमारी सरकार ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर बता भी दिया है। जल्द ही हम इस मुद्दे पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को राज्य के लोगों की भावनाओं से अवगत कराएँगे। पूर्व की केंद्र सरकारों ने चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को माना है।“

                                भगवंत मान

मुख्यमंत्री, पंजाब

 

“पंजाब और हरियाणा भाई-भाई हैं। पंजाब बड़े भाई जैसा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि छोटे भाई के अधिकार का हनन करे। अगर बड़ा भाई छोटे का हक़ मारने की कोशिश करेगा, तो यह (छोटा भाई) चुप कैसे बैठ सकता है? चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी है और रहेगी। केंद्र ने प्रशासन कर्मियों के सर्विस रूल्स में बदलाव करके देश के संघीय ढाँचे से किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की है। चंडीगढ़ पर हरियाणा का हक़ भी पंजाब जितना ही है।“

                             मनोहर लाल खट्टर

मुख्यमंत्री, हरियाणा

 

कर्मचारियों का फ़ायदा

चंडीगढ़ प्रशासन में कर्मियों के सर्विस रूल्स में बदलाव ही मुद्दे की असली जड़ है। इसके बाद से ही दोनों राज्यों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ है। फ़ैसले से चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों को हर क्षेत्र में फ़ायदा होगा। फ़ैसले से पहले चंडीगढ़ प्रशासन में पंजाब जैसे वेतनमान और अन्य नियम हैं; लेकिन अब उन्हें केंद्रीय कर्मियों जैसी सुविधाएँ मिलेंगी। शिक्षकों और नर्सों को नये सर्विस रूल्स से काफ़ी फ़ायदा होगा। सेवानिवृत्ति की आयु में ही दो साल की वृद्धि हो जाएगी। इसके अलावा और बहुत से फ़ायदे मिलेंगे। विभिन्न कर्मचारी संगठन केंद्र के फ़ैसले से ख़ुश हैं। केंद्र के सर्विस रूल्स में बदलाव से दबा हुआ मुद्दा फिर गर्म हो गया है। सम्भव है कि केंद्र के इस फ़ैसले के कई निहितार्थ हों।