जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिलकर टक्कर देंगे एनसी-पीडीपी
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक-दूसरे के घोर विरोधी रहे नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) राज्य विधानसभा के अगले चुनाव में मिलकर लडऩे की तैयारी में हैं। इसका कारण यह है कि दोनों का साझा राजनीतिक विरोधी एक ही है- भाजपा। कांग्रेस का भी राज्य में प्रभाव है; लेकिन अभी तय नहीं कि क्या वह किसी गठबंधन का हिस्सा बनेगी या अकेले मैदान में उतरेगी? परिसीमन की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद सम्भावना है कि इस साल के आख़िर या अगले साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं।
दरअसल जम्मू-कश्मीर में एनसी और पीडीपी गुपकर गठबंधन का हिस्सा हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भाजपा से मुक़ाबला करने के लिए दोनों दलों सहित पाँच दल साथ लडऩे के लिए तैयार हो गये हैं। गुपकार गठबंधन का गठन मोदी सरकार के 5 अगस्त, 2019 को राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म करके इसे विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश बनाने के एक दिन पहले घाटी के आठ राजनीतिक दलों ने मिलकर फ़ारूक़ अब्दुल्ला की अध्यक्षता में गुपकर (पीपल्स अलायंस फॉर गुपकर डेक्लेरेशन / पीएजीडी) गठबंधन का गठन किया था, जिसका असल मक़सद नई दिल्ली के जम्मू-कश्मीर राज्य को लेकर किये फ़ैसले का विरोध करना था।
बाद में अगस्त, 2020 में इसकी दूसरी बैठक (छ: दल) हुई, जिसमें अनुच्छेद-370 की बहाली की ज़ोरदार माँग की गयी। साथ ही डीडीसी के चुनाव साथ लडऩे का फ़ैसला किया गया। गठबंधन की इस बैठक में एनसी और पीडीपी के अलावा सीपीएम, पीपल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस और जे-के पीपल्स मूवमेंट शामिल रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 जून, 2021 को जम्मू-कश्मीर पर चर्चा के लिए जो बैठक की थी, उसमें गुपकर गठबंधन को ही बातचीत के लिए बुलाया गया था। गुपकर गठबंधन की ताक़त तब सामने आयी, जब दिसंबर 2020 में हुए डीडीसी (ज़िला विकास समितियों) के चुनाव में कश्मीर में गुपकर ने एकतरफ़ा जीत हासिल की; जबकि जम्मू में भी वह सीटें जीतने में सफल रहा। ज़ाहिर है भाजपा लाख कोशिशों के बाद भी कश्मीर घाटी में पैर जमाने में नाकाम रही है।
सन् 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद पीडीपी (28) और भाजपा (25) ने मिलकर सरकार बनायी थी, जबकि सन् 2018 में भाजपा ने पीडीपी से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था।
गुपकर गठबंधन के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘हाँ, यह सही है। हम साथ चुनाव लड़ेंगे। हमें अपने एक सहयोगी दल ने सूचित किया है कि वे अब हमारे साथ नहीं, लिहाज़ा अब पाँच पार्टियाँ मिलकर लड़ेंगी। हमें पहले से ही इस दल को लेकर कुछ आशंकाएँ थीं। हमारा एजेंडा वही है, जो हमने अब तक कहा है; जिसमें अनुच्छेद-370 की बहाली की माँग भी शामिल है।’
चतुर रणनीति