
कोढ़ में खाज वाली कहावत को साकार करते हुए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पुराने और बड़े नेता ही बगावती तेवर पर उतर आए हैं. हाल में चार राज्यों में पार्टी की करारी हार हो चुकी है. आम चुनाव नजदीक हैं. अपनी 80 लोकसभा सीटों के साथ जिस उत्तर प्रदेश को राजनीतिक लिहाज से देश का सबसे अहम सूबा माना जाता है वहां का हालिया घटनाक्रम कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं लगता.
पहले तो कांग्रेस के गढ़ समझे जाने वाले अमेठी के राजा व सुल्तानपुर से कांग्रेस के सांसद संजय सिंह ने अपने जन्मदिन पर भाजपा नेताओं को घर पर बुला कर पार्टी को दुविधा में डालने का काम किया. अब पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक प्रमोद तिवारी सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की मदद से राज्यसभा का रास्ता चुन चुके हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस की हैसियत राज्यसभा सीट के लिए उम्मीदवार उतारने की नहीं थी. लेकिन सारा खेल सपा की मदद से हुआ. यह अलग बात है कि तिवारी की जिद के आगे कांग्रेस को उन्हें पार्टी का चुनाव चिन्ह देना पड़ा. कांग्रेस के ही एक नेता सवाल करते हैं, ‘अब लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में पार्टी के नेता किस मुंह से सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी या भाजपा को घेर पाएंगे?’ 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 22 लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से काफी उम्मीदें थीं. लेकिन ये 2012 के विधानसभा चुनाव में टूट गईं. उसके विधायक दहाई का भी आंकड़ा नहीं पार कर पाए. अब जब 2014 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं तो ऐन वक्त पर पार्टी के पुराने धुरंधर ही उसके लिए सिरदर्द बन रहे हैं.
सबसे पहले गांधी परिवार के गढ़ अमेठी की बात करते हैं. अमेठी राजघराने के राजा व सुल्तानपुर से सांसद संजय सिंह पार्टी से नाराज चल रहे हैं. उनकी यह नाराजगी कई बार खुले मंच से भी जाहिर हो चुकी है. राजा साहब की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण अपनी कुर्सी से जुड़ा है. जिस सुल्तानपुर लोकसभा सीट से संजय सिंह सांसद हैं, वहां से 2014 में वरुण गांधी का लड़ना तय माना जा रहा है जो उनके पुराने मित्र संजय गांधी के बेटे हैं. इसके चलते संजय सिंह को अपनी सीट भाजपा के पाले में जाती दिख रही है. दूसरी ओर जिस अमेठी राजघराने के वे राजा हैं वहां से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी खुद चुनाव लड़ते हैं. ऐसे में संजय सिंह के सामने अपनी कुर्सी को लेकर संशय बना हुआ है. सूत्र बताते हैं कि कुर्सी बचाने के लिए ही संजय सिंह आजकल भाजपा से नजदीकी बढ़ा रहे हैं. भाजपा से उनकी नजदीकियां पहले तो अंदरखाने थीं, लेकिन कुछ दिन पूर्व ये उस समय सार्वजनिक हुईं जब उनके घर पर भाजपा के नेताओं का जमावड़ा लगा. मौका था राजा साहब का जन्मदिन. जन्मदिन के बहाने राजमहल में जो राजनीतिक सरगर्मी थी उसमें वही चंद कांग्रेसी शामिल थे जिनसे राजा साहब के पारिवारिक रिश्ते थे. बाकी भीड़ भाजपा नेताओं की थी.
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब संजय सिंह अपनी ही पार्टी से नाराज हैं. इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी रानी अमिता सिंह कांग्रेस के टिकट पर अमेठी विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी थीं. चुनाव में वे खेत रहीं. उस समय भी संजय सिंह ने हार का ठीकरा राहुल व सोनिया के उन करीबी लोगों पर फोड़ा था जो अमेठी व रायबरेली का प्रबंधन देखते हैं. फिलहाल संजय सिंह तहलका से बातचीत में खुद के कांग्रेस के साथ ही रहने की बात कहते हैं, लेकिन सुल्तानपुर व अमेठी के दूसरे कांग्रेसियों को ऐसा नहीं लगता. कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे एक कांग्रेसी कहते हैं, ‘भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उत्तर प्रदेश से ही हैं और ठाकुर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं. बीच में कुछ समय संजय सिंह भाजपा के साथ भी रहे हैं. ऐसे में चुनाव के समय ऊंट किस करवट बैठेगा अभी यह कहना जल्दबाजी होगी.’