गीत बनने की प्रक्रिया को शॉर्टकट में बताइए.
गाने पर सबसे पहला हक और जिम्मेदारी संगीतकार की होती है. वह फिल्म और सिचुएशन के हिसाब से संगीत बनाता है. फिर बारी आती है गीतकार की जो उसे अल्फाज में पिरोता है. उसके बाद कहीं जाकर गायक का काम शुरू होता है. गायक तो बस परफॉर्मर होता है.
तो इस हिसाब से बॉलीवुड का बेस्ट परफॉर्मर कौन है?
लता दीदी. मेरे ख्याल से मैं वह पहला बच्चा हूं जिसने लता दीदी को लाल जोड़े में देखा. यही कोई दस साल का था, जब लता दीदी मेरे ख्वाब में आई थीं. ख्वाब में, मैं अपनी उम्र से बहुत छोटा था, शायद 4 महीने का. उन्होंने लाल जोड़ा पहना हुआ था, मैंने उनकी उंगली थामी हुई थी और वे कह रही थीं मैं लता हूं.
हिंदी सिनेमा में पहले भी विदेशी गीतों से धुनें प्रेरित होती थीं, लेकिन आजकल ऐसा होता है कि इंटरनेट की वजह से तुरंत ही लोग असली गाने तक पहुंच जाते हैं. धुनों की इस विदेशी प्रेरणा को कैसे देखते हैं?
प्रेरणा बहुत ही सुंदर शब्द है. यह कमाल का एहसास है. आप अपने दोस्तों के बीच उठते-बैठते हैं तो उनकी कुछ अच्छी आदतें अपना लेते हैं. उनके बोलने का ढंग सीखने लगते हैं, उस पर अमल करने लगते हैं. वैसे ही कोई गाना आपको बहुत अच्छा लगता है तो आप उससे प्रेरणा लेते हैं और उसे अपने तरीके से ‘रीजेनरेट’ करते हैं. यह तो अच्छी बात होती है. इसे प्रेरणा कहते हैं. और एक होती है चोरी. चाहे कोई अंग्रेजी गाना हो या किसी और भाषा का. चाहे हिंदी फिल्मों का ही कोई पुराना गाना हो या बेगम अख्तर की कोई पुरानी गजल हो, आप उसे उठाते हैं और उसके आगे अपना नाम ऐसे लिखवाते हैं जैसे आप ही उसके कर्ता-धर्ता हों, उसे कहते हैं चोरी. यह गुनाह है. मुझे इंडस्ट्री के उन लोगों से बड़ा ऐतराज है जो अपनी फिल्मों के क्रेडिट में उन संगीतकारों का नाम लिखते हैं जिन्होंने गाने का मुखड़ा आरडी बर्मन या नौशाद साहब के किसी गीत का उठा लिया और अंतरा बिल्कुल टूटा-फूटा बना दिया. मैं कहता हूं अगर यह डायरेक्टरों और प्रोड्यूसरों की मर्जी से हो रहा है तो कम से कम क्रेडिट में साफ-साफ लिखें कि संगीत फलां-फलां से प्रेरित है.
भारत में पड़ोसी मुल्कों से कलाकार आते रहे हैं और उनमें से कई को यहां खूब काम और शोहरत मिली है. हिंदी फिल्मों के कुछ गायक इस बात पर ऐतराज करते हैं. उनका मानना है कि बॉलीवुड के गानों पर हिंदुस्तानी गायकों का हक है.
इस पर आपकी क्या राय है?
इससे ज्यादा बेहूदा तो मुझे कुछ लगता ही नहीं. क्या कभी लता दी ने कहा कि पड़ोसी मुल्क के गायकों को यहां नहीं आना चाहिए? या रफी साहब ने, किशोर कुमार ने? नहीं, इन्होंने नहीं कहा. मैंने भी कभी ऐसा नहीं कहा. मुझे लगता है कि अगर वे यहां आकर नहीं गाएंगे तो कहां जाएंगे. वहां हालात इतने खराब हैं कि वहां उन्हें कोई नहीं पूछता. तो जहां काम होगा वे वहीं जाएंगे.
यह बताइए आपने आज तक एक ही सिंगिंग रियलिटी शो जज किया है, वह भी जब ऐसे शो टीवी पर आना शुरू ही हुए थे. बाद में कई गायक, गायिकाएं और संगीतकार इन शो में जज बनकर आने लगे लेकिन आप किसी शो में फिर नहीं आए.
मुझे रियलिटी शो वाले कहते हैं कि आपको जज नहीं बनाएंगे क्योंकि आप शो में भाग ले रही लड़कियों से बहुत फ्लर्ट करते हैं. आप उन्हें तो दस में से दस नंबर देते हैं और लड़कों को बस तीन या चार पर लाकर अटका देते हैं. असल में मुझे लगता है कि इन प्रतिभागियों को वोट नहीं मिलते. सुनिधि चौहान के बाद से कोई भी फीमेल सिंगर सिंगिंग रियलिटी शो नहीं जीती. मुझे लगता है कि कम से कम मैं ही अपनी तरफ से उन्हें अच्छे नंबर दे दूं.
‘जय हो’ को ऑस्कर मिला, मगर आप अवॉर्ड समारोह में नहीं पहुंच सके. अगर आप पहुंचते तो एआर रहमान के साथ उस मंच पर गाने का मौका मिलता. अफसोस होता है इस बात का?
मुझे सिर्फ इस बात का बुरा लगता है कि ऑस्कर या ग्रैमी में स्टेज पर परफॉर्मेंस के वक्त बैकग्राउंड में मेरी आवाज थी और उस पर एक लड़की ‘माइम’ कर रही थी. रहमान सर खुद इतने बड़े संगीतकार है, उन्हें तकनीक की अच्छी समझ है फिर ये कैसे हो गया. एक आदमी की आवाज पर औरत ‘माइम’ कर रही थी. और वे खुद भी मेरी आवाज पर मुंह चला रहे थे. मैंने जब उनसे यह शिकायत की थी तो उन्होंने हंसते हुए अपनी गलती मान ली थी.