‘बहुत सही! अब तुम राजनीतिक बातें करने लगे!’
‘हा हा हा’
‘देखो बहुत मौके से याद आया.’
‘क्या दद्दा!’
‘गॉड फादर जानते हो’
‘माने जो आपको अवसर दे, जो आपका करियर, जिंदगी बनाए.’
‘तो जिनके गॉड फादर होते है उनके फादर नहीं होते होंगे.’
‘होते होंगे!’
‘लेकिन काम कौन आ रहा! एक अनजाना आदमी.’
‘दद्दा समझा नहीं!’
‘देखो यहां जैसे एक बाप से काम नहीं चलता, वैसे ही मात्र आदमी होने से काम नहीं चलता…’
‘यानी किसिम-किसिम के आदमी…’
‘हां मगर, अपना आदमी आदमी की एक खास किसिम होती है.’
‘अच्छा!’
‘जो काम दे, जिससे काम निकले… इसे यूं समझो… जिससे काम मिलना है, जिससे काम निकलवाना हो, कैसे निकलवाओगे!’
‘काबिलियत के दम पर’
‘ओय काबिलियत के दम भरने वाले! जीवन में जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ण न जाने कितने पेंच फसते हंै, इन्हीं पेंचों को ढीला करने के लिए भी… छोड़ो! एक जवाब दो!’
‘पूछें दद्दा’
‘दो समान काबिलियत के दावेदार आ जाए तो तुम किसको मौका दोगे!’
‘आप ने तो फंसा दिया!’
‘अब फर्ज करो! तुम में काबिलियत नहीं है, तो तुम दूसरे को कैसे रोकोगे! तुम दौड़ने में फिसड्डी हो तो रेस कैसे जितोगे!’
‘लंगड़ी लगाकर!’
‘यह नकारात्मक भाव है.’
‘फिर दद्दा आप बताए!’
‘इत्ती देर से समझा रहा हूं, अबे कैसा आदमी है!’
‘क्या दद्दा…’
‘अपना आदमी बन कर घोंचू.’